एक समय था, जब दुनिया में सबसे ज्यादा धूम्रपान दक्षिण-पूर्व एशिया में किया जाता था. लेकिन अब यहां धूम्रपान करने वालों की संख्या घट गई है. अब यूरोप इसका नया केंद्र बन रहा है.तंबाकू का इस्तेमाल खत्म करने में कोशिश में दक्षिण-पूर्व एशिया सबसे आगे है. साल 2010 के बाद से यहां तंबाकू के सेवन में भारी कमी आई है. पहले यहां तंबाकू का प्रति व्यक्ति सेवन पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा था, लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नई सूची में यह दूसरे स्थान पर आ गया है. अब यूरोप इस सूची में सबसे ऊपर है.
वेपिंग: सिगरेट छोड़ने में मददगार या खुद भी हानिकारक?
दक्षिण-पूर्व एशिया में दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी रहती है. 21वीं सदी की शुरुआत में यहां 15 साल या उससे अधिक आयुवर्ग में हर दो में से एक व्यक्ति तंबाकू का सेवन करता था. लेकिन बदलते रुझान के बीच अनुमान है कि 2030 तक यहां पांच में से केवल एक व्यक्ति ही तंबाकू का इस्तेमाल करेगा.
ब्रिटेन की यॉर्क यूनिवर्सिटी के सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रोफेसर कामरन सिद्दीकी ने बताया, "यह वाकई उल्लेखनीय है, लेकिन यह दुनिया के बाकी हिस्सों में देखे गए रुझान के अनुरूप ही है."
साल 2010 में डब्ल्यूएचओ ने आगामी 15 वर्षों में तंबाकू सेवन को 30 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा था. अब तक केवल दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और अमेरिका ही इस लक्ष्य को हासिल करने की राह में हैं. तंबाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है. तंबाकू इस्तेमाल करने और उसके धुएं के संपर्क में आने से फेफड़े का कैंसर, स्ट्रोक और अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
क्या बताते हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े?
डब्ल्यूएचओ के ताजा आंकड़े बताते हैं कि तंबाकू के इस्तेमाल में हर जगह कमी आ रही है. साल 2010 के मुकाबले आज दुनिया में कम-से-कम 12 करोड़ कम लोग धूम्रपान करते हैं. यानी पिछले 15 सालों में लगभग 27 फीसदी की गिरावट आई है.
दक्षिण-पूर्व एशिया में 50 प्रतिशत से ज्यादा धूम्रपान करने वाले लोगों ने यह लत छोड़ दी है. यह अच्छी खबर है क्योंकि तंबाकू का इस्तेमाल करने वाले लोग जैसे ही यह लत छोड़ते हैं, तकरीबन तुरंत ही शारीरिक तौर पर सुधार आना शुरू हो जाता है.
गर्भावस्था में धूम्रपान का नुकसान बेटी से ज्यादा बेटे को
हालांकि, दुनिया की लगभग 20 प्रतिशत आबादी अब भी तंबाकू का सेवन करती है, और यह केवल सिगरेट तक ही सीमित नहीं है. इन उत्पादों में चबाने वाला तंबाकू और ई-सिगरेट भी शामिल हैं.
आंकड़े दिखाते हैं कि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में जहां तंबाकू के सेवन में कमी आई है, वहीं ज्यादा आमदनी वाले देशों में तंबाकू उत्पादों के सेवन की दर धीमी गति से कम हो रही है.
अमेरिका में सिगरेट पीने वाले इतने कम कभी ना थे
तंबाकू हर साल करीब 70 लाख लोगों की जान ले लेता है. इसके अलावा खुद सिगरेट ना पीने वाले, लेकिन धुएं के संपर्क में आकर जान गंवाने वालों की संख्या करीब 16 लाख है. तंबाकू का सेवन करने वाले अधिकांश लोग पुरुष होते हैं. इस वजह से ज्यादातर स्वास्थ्य अभियान उन्हीं को ध्यान में रखकर चलाए जाते हैं. हालांकि, यह नीति केवल दक्षिण-पूर्व एशिया और अमेरिका में ही प्रभावी साबित हुई है.
तंबाकू के सेवन को कैसे घटा पाया दक्षिण-पूर्व एशिया?
साल 2000 में जहां इस क्षेत्र के 70 फीसदी पुरुष तंबाकू का सेवन करते थे, वहीं अब यह संख्या घटकर आधी रह गई है.
अमेरिका की एमोरी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और भारत में स्वास्थ्य केंद्र के संस्थापक रवि महरोत्रा के अनुसार, "इस क्षेत्र में कई विशेषज्ञों ने बहुत मेहनत की है." इन विशेषज्ञों में स्वास्थ्य क्षेत्र के शोधकर्ता, नीति-निर्माता, नेता और कानून लागू करने वाले अधिकारी शामिल हैं.
सिगरेट न पीने वालों में बढ़ रहा है फेफड़ों का कैंसर: रिपोर्ट
सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण ही इतना बड़ा बदलाव आया है. कई देशों ने तंबाकू उत्पादों पर स्वास्थ्य चेतावनी और संदेश अनिवार्य किया, सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध लगाया और स्कूलों में जागरूकता अभियान शुरू किए.
इसके अलावा कलाकारों और खिलाड़ियों को सकारात्मक आदर्श के रूप में पेश करके भी तंबाकू सेवन के खिलाफ मुहिम चलाई गई. इन कोशिशों की वजह से न केवल लोगों ने तंबाकू छोड़ना शुरू किया, बल्कि पहली बार इसे आजमाने वालों की संख्या में भी भारी गिरावट आई.
एशियाई देशों ने इसके लिए कुछ अनोखे तरीके भी अपनाए हैं. जैसे भारत में यह नियम है कि हर फिल्म, टीवी शो या ऑनलाइन कार्यक्रम की शुरुआत में तंबाकू के उपयोग से होने वाले नुकसान दिखाए जाते हैं. साथ ही, वहां तंबाकू उत्पादों पर स्वास्थ्य चेतावनी देना भी अनिवार्य है.
बिना धुएं वाला तंबाकू बन रहा है नई चुनौती
भारी गिरावट के बावजूद दक्षिण-पूर्व एशिया अब भी दुनिया के एक-चौथाई तंबाकू उपभोक्ताओं का घर है. यहां सिगरेट पीने वालों की संख्या में तो भारी गिरावट आई है, लेकिन बिना धुएं वाले उत्पादों जैसे चबाने वाला तंबाकू, गुटखा आदि का इस्तेमाल काफी बढ़ा है.
यहां हर चार में से एक पुरुष ऐसे उत्पादों का उपयोग करता है, और हर सात में से एक महिला भी इसका सेवन करती है. इसके अतिरिक्त 13 से 15 वर्ष के आयुवर्ग में लगभग हर सात में से एक किशोर ई-सिगरेट (इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट) का उपयोग करता है. हालांकि, सभी आयुवर्गों को मिलाकर देखें तो यह संख्या हर 1,000 में से एक व्यक्ति है.
दुनिया भर में धूम्रपान करने वालों की संख्या में गिरावट
प्रोफेसर कामरन सिद्दीकी का कहना है कि दक्षिण-पूर्व एशिया का तंबाकू संकट बाकी दुनिया से अलग है. दूसरे क्षेत्रों में जहां सिगरेट का इस्तेमाल ज्यादा होता है, वहीं दक्षिण-पूर्व एशिया में सूखे तंबाकू उत्पादों का उपयोग भी लगभग उतने ही लोगों द्वारा किया जाता है. इन उत्पादों की निगरानी करना काफी कठिन है.
उन्होंने बताया, "हमारे पास दक्षिण-पूर्व एशिया से तंबाकू के सभी रूपों के इस्तेमाल संबंधी उतने मजबूत आंकड़े नहीं हैं, जितने सिगरेट पर हैं. गैरकानूनी तंबाकू यहां अब भी काफी आम है और ज्यादातर सूखे तंबाकू उत्पाद अवैध रूप से बिकते हैं. हम इस दिशा में और सुधार लाना चाहते थे."
शोध: भारत में 60 फीसदी युवा आ सकते हैं ई-सिगरेट की चपेट में
कामरान सिद्दीकी ने कहा कि सेकंड-हैंड स्मोकिंग और बिना धुएं वाले तंबाकू उत्पादों की चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं. उनके अनुसार, "धूम्रपान में पूरी दुनिया में कमी आ रही है, लेकिन अगर दक्षिण-पूर्व एशिया ने अपने स्थानीय कारकों जैसे सूखे तंबाकू को बेहतर ढंग से समझा और संभाला होता, तो यहां और भी बड़ी गिरावट देखी जा सकती थी."
टैक्स और कड़े पैकेजिंग नियम दे सकते हैं समाधान
अगर दक्षिण-पूर्व एशिया को तंबाकू के इस्तेमाल में और कमी लानी है, तो उसे व्यापक रणनीति पर काम करना होगा. जैसे, अपनी स्थानीय चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए खास कदम उठाने होंगे और दुनिया में सफल साबित हुई नीतियों को भी अपनाना होगा.
प्रोफेसर सिद्दीकी और रवि महरोत्रा दोनों का मानना है कि ज्यादा टैक्स और साधारण पैकेजिंग (यानी रंगीन ब्रैंडिंग की जगह सिर्फ स्वास्थ्य चेतावनियां हों) इसमें मदद कर सकते हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, तंबाकू उत्पाद की कुल कीमत का 70 फीसदी टैक्स होना चाहिए.
रवि महरोत्रा का कहना है कि "परोक्ष विज्ञापन" यानी अप्रत्यक्ष प्रचार जिससे तंबाकू ब्रांड अन्य उत्पादों के नाम पर विज्ञापन करते हैं, उनपर भी कड़े नियंत्रण लगाना मददगार साबित हो सकता है.













QuickLY