श्रीलंका के हंबनटोटा में स्थित मट्टला राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रबंधन की जिम्मेदारी भारत और रूस की कंपनियों को सौंपी गई है. इस फैसले को चीन के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है. यह हवाई अड्डा 209 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से बनाया गया था. एक समय पर, उड़ानों की कमी के कारण, इसे दुनिया का सबसे खाली हवाई अड्डा कहा जाता था. मट्टला हवाई अड्डे का नाम पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के नाम पर रखा गया है. महिंदा राजपक्षे के लगभग एक दशक लंबे शासनकाल के दौरान कई बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की गईं, जिनमें से यह एक है.
भारत और रूस को मिला प्रबंधन का जिम्मा
सरकारी प्रवक्ता और मंत्री बंडुला गुणवर्धने ने कहा कि श्रीलंका के मंत्रिमंडल ने 9 जनवरी को संभावित पार्टियों से रुचि की अभिव्यक्ति आमंत्रित करने को मंजूरी दी थी. इसके बाद 5 प्रस्ताव मिले. कैबिनेट द्वारा नियुक्त सलाहकार समिति ने भारत की शौर्य एरोनॉटिक्स (प्राइवेट) लिमिटेड और रूस की एयरपोर्ट्स ऑफ रीजन मैनेजमेंट कंपनी को 30 साल के लिए प्रबंधन समझौता देने का फैसला किया. गुणवर्धने ने कहा कि कैबिनेट ने नागरिक उड्डयन और हवाई अड्डा सेवा मंत्री द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
🚨 Sri Lanka transfers Rajapaksa International Airport from Chinese to Indian & Russian Companies for 30-Year Period. pic.twitter.com/6qTV7ifCv9
— Indian Tech & Infra (@IndianTechGuide) April 27, 2024
चीन के कर्ज जाल में फंसा श्रीलंका
चीन ने इस परियोजना के लिए उच्च ब्याज दर पर वाणिज्यिक ऋण दिया था. इस परियोजना पर 209 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए गए थे, जिसमें से 190 मिलियन अमेरिकी डॉलर चीन के एक्ज़िम बैंक द्वारा उच्च ब्याज दर पर प्रदान किए गए थे. श्रीलंका सरकार 2016 से इस हवाई अड्डे के प्रबंधन के लिए एक वाणिज्यिक भागीदार की तलाश कर रही थी क्योंकि इसे भारी नुकसान हो रहा था. यहां यात्रियों की संख्या कम होने के कारण उड़ानों की संख्या में लगातार कमी आई. साथ ही यह हवाई अड्डा पर्यावरण की दृष्टि से भी काफी संवेदनशील था. लगातार नुकसान के कारण हवाई अड्डे के निर्माण पर सवाल उठ रहे थे. कई विशेषज्ञों ने कहा कि इस हवाई अड्डे का निर्माण करके चीन ने श्रीलंका को एक और कर्ज जाल में फंसा दिया. अब देखना होगा कि भारतीय और रूसी कंपनियों को प्रबंधन की जिम्मेदारी मिलने के बाद क्या बदलाव आएंगे.