साल 2022 युद्ध में मरने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से इस सदी में सबसे बुरा साबित हुआ है. 1994 में रवांडा के जनसंहार के बाद संघर्ष में सबसे ज्यादा लोगों की मौत 2022 में हुई है.दुनिया भर में चल रहे संघर्ष में मरने वाले लोगों की संख्या पिछले साल 238,000 के पार चली गई. इस लिहाज से 2022 संघर्ष में मरने वाले लोगों की संख्या के मद्देनजर बीते लगभग तीन दशकों में सबसे घातक साल रहा.
इस से पहले 1994 में संघर्षों में इतनी संख्या में लोगों की जान गई थी. उस साल रवांडा में जनसंहार हुआ था. 21वीं सदी में एक साल के भीतर इतने लोगों की जान इससे पहले कभी नहीं गई. लंदन के इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने ग्लोबल पीस इंडेक्स जारी किया है. यह इंडेक्स 163 देशों में 23 गुणात्मक और मात्रात्मक संकेतों के आधार पर तैयार की जाती है. इसके जरिये सबसे ज्यादा और सबसे कम शांतिपूर्ण देश का पता लगाया जाता है. इस सूचकांक के मुताबिक दुनिया लगातार 9वें साल कम शांतिपूर्ण होने की तरफ बढ़ रही है.
कहां हुई ज्यादा मौतें
इथियोपिया के टिगरे में चल रहे संघर्ष ने पिछले साल सबसे ज्यादा लोगों की जान ली. साल 2022 के दौरान इस संघर्ष में एक लाख से ज्यादा लोगों की जान गई है. इसमें इथियोपिया और एरिट्रिया की सेनाओं और विद्रोहियों के बीच चले संघर्ष से ज्यादा लोगों की मौत भूखमरी के वजह से हुई. दोनों वजहों से हुई मौत में दोगुने का फर्क है.
इसके बाद यूक्रेन में रूसी सेना के हमले की वजह से मारे गए लोगों की संख्या है. 2022 में यूक्रेन जंग ने कम से कम 82,000 लोगों की जान ली है.
20 साल पहले शुरू हुई जंग में अब भी जल रहा है इराक
आईईपी के विशेषज्ञों का आकलन है कि यूक्रेन में 20 से 24 साल की उम्र के 65 फीसदी पुरुष या तो जंग में मारे गए या फिर भाग गए. यूक्रेन के 30 फीसदी से ज्यादा लोग या तो अपने ही देश में या फिर दूसरे देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए हैं.
ग्लोबल पीस इंडेक्स के लिए जिन संकेतों को ध्यान में रखा गया है उनमें आंतरिक या बाहरी संघर्ष, हत्या की दर, सैन्यीकरण का अंश, हथियारों का निर्यात, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता और कैदियों की संख्या शामिल हैं. यह किसी सशस्त्र संघर्ष की आर्थिक कीमत का भी आकलन करता है. पिछले साल इनकी कीमत 17.5 हजार अरब अमेरिकी डॉलर थी पूरी दुनिया की जीडीपी का करीब 13 फीसदी है.
दुनिया के सबसे अशांत देश
आईईपी के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष स्टीव किलेलिया का कहना है,"अफगानिस्तान इराक और सीरिया की जंग के बाद अब यूक्रेन युद्ध जाहिर तौर पर ऐसी जंग बन गई है जिसमें दुनिया की सबसे ताकवर सेनाएं भी अच्छे संसाधन वाली स्थानीय आबादी पर जीत नहीं पा सकतीं." आईईपी की तरफ से जारी बयान में किलेलिया ने यह भी कहा है, "युद्ध मोटे तौर ऐसा बन गया है जिसे जीता नहीं जा सकता और इसका आर्थिक बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है."
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, और चीन यानी सिर्फ पांच देश दुनिया भर में एक तिहाई हथियारों का निर्यात करते हैं.
आईसलैंड, डेनमार्क और आयरलैंड दुनिया के सबसे शांतिपूर्ण देश हैं जबकि अफगानिस्तान, यमन और सीरिया सबसे कम शांतिपूर्ण. जर्मनी इस सूची में 15वें नंबर पर है जो पहले से दो ज्यादा है. उधर ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड पांचवें और 10वें नंबर पर है. भारत इस सूची में 126 नंबर पर है और पिछले साल की तुलना में उसकी स्थिति थोड़ी सी बेहतर हुई है. सबसे नीचे यानी 163 वें नंबर पर अफगानिस्तान है इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिणी सूडान, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, रूस और तब यूक्रेन है. रूस तीन स्थान नीचे आया है जबकि यूक्रेन 14 स्थान.
एनआर/एसबी (डीपीए)