ब्रिक्स समूह में हाल में कई देश शामिल हुए हैं. इन देशों के बीच एक समानता है कि वे सभी चीन के साथ व्यापार करते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन के वर्चस्व वाले इस समूह में अब भी भारत सहज महसूस कर पाएगा?अक्टूबर के आखिर में रूस के दक्षिण-पश्चिमी शहर कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन होना है. ब्रिक्स में शामिल सभी देशों के नेता इसके लिए तैयारी कर रहे हैं. वहीं, भारत इस समूह के भीतर अलग ही स्थिति में दिख रहा है.
दरअसल, ब्रिक्स में पहले ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे, लेकिन जनवरी 2024 में इस समूह का विस्तार हुआ. अब मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी इस समूह में शामिल हो गए हैं.
एक तरफ चीन, रूस और ईरान हैं जो पश्चिमी दुनिया के देशों के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए हैं. इसके विपरीत सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र जैसे अन्य सदस्य देश पश्चिमी देशों और चीन के साथ मजबूत आर्थिक संबंधों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए हुए हैं.
उदाहरण के लिए, भारत और ब्राजील को छोड़कर ब्रिक्स के सभी सदस्य देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा हैं. भले ही ब्राजील आधिकारिक तौर पर बीआरआई का हिस्सा नहीं है, लेकिन चीन उसे लुभाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि वह ब्राजील से निर्यात होने वाली चीजों का लगभग एक-तिहाई हिस्सा खरीदता है.
ऐसे में भारत ही एक मात्र ऐसा ब्रिक्स सदस्य है जो चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध होने के बावजूद भी पश्चिम के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को मजबूत कर रहा है.
भारत और चीन के बीच की प्रतिद्वंद्विता की एक वजह यह भी है कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं और दोनों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद के कारण तनाव बना हुआ है. इस सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के रूप में जाना जाता है. इसके बारे में भारत का दावा है कि यह 3,488 किलोमीटर (2,167 मील) लंबी है और चीन का कहना है कि यह छोटी है.
ब्रिक्स में कैसी हो सकती है भारत की रणनीति
संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है. भारतीय थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष हर्ष पंत कहते हैं, "रूस की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है. इसमें सुधार होने की उम्मीद काफी कम नजर आ रही है. दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील आज संघर्षरत अर्थव्यवस्थाएं हैं. इसलिए, ब्रिक्स के मूल पांच देश यानी ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के आपसी संबंध समय के साथ बदल गए हैं.”
पंत ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस समूह में नए देशों के शामिल होने के बाद स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ गई है. ब्रिक्स में बातें तो काफी ज्यादा हो रही है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल रहा है.”
पंत कहते हैं, "भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के वर्चस्व का मुकाबला करने के लिए पश्चिमी देशों के रणनीतिक गठबंधन में शामिल हो गया है, जैसे कि ‘क्वाड' समूह. ऐसे में भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह ब्रिक्स जैसे समूह से क्या हासिल कर पाता है, क्योंकि इस समूह के देशों के बीच जो विरोधाभास है वह साफ तौर पर नजर आता है और इसे छिपाया नहीं जा सकता.”
जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के डीन श्रीराम चाउलिया का मानना है कि जिस उद्देश्य को लेकर ब्रिक्स समूह का गठन हुआ था अब वह बदल रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर इस समूह में नए देश नहीं जुड़े होते, तो यह ऐसा समूह होता जहां सिर्फ बातें होती हैं और कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता है. उस स्थिति में रणनीतिक और आर्थिक फायदे के हिसाब से, यह समूह भारत के लिए ज्यादा अहम नहीं रह जाता. हालांकि, अब इस समूह का विस्तार हो गया है, तो प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है और हम यह जगह चीन के लिए नहीं छोड़ना चाहते हैं.”
ब्रिक्स में नए देशों के शामिल होने के बाद, इन सभी देशों का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 37 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी है, जो कि यूरोपीय संघ के दोगुने से भी अधिक है.
पश्चिमी देशों से मुकाबले की कोशिश में है चीन
चीन ने पांच देशों के ब्रिक्स समूह में नए देशों को जोड़ने के लिए पूरी कोशिश की. इसे देखते हुए यह माना जा रहा है कि वह वैश्विक स्तर पर, खास तौर पर यूरोपीय संघ और अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है.
चाउलिया ने कहा, "चीन निश्चित तौर पर विस्तारित ब्रिक्स समूह को पश्चिम पर निशाना साधने के माध्यम के रूप में देख रहा है और वह इसी तरह की कोशिश भी कर रहा है. हालांकि, समूह के विस्तार के बावजूद, चीन का वर्चस्व पूरी तरह कायम नहीं हुआ है.”
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हाल ही में, पाकिस्तान ने भी ब्रिक्स समूह में शामिल होने का आवेदन दिया था, जिसे चीन और रूस ने समर्थन दिया. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के कट्टर दुश्मन को समूह में शामिल किए जाने की संभावना न के बराबर है.
चाउलिया ने कहा, "पाकिस्तान पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ है. आईएमएफ ने इसे कई बार राहत दी है. ऐसे में यह देश ब्रिक्स में क्या योगदान देगा? इस स्थिति में तो यह समूह दूसरे की मदद करने वाले क्लब की जगह भिखारियों का क्लब बन जाएगा.”
उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कि ब्रिक्स में प्रतिस्पर्धा बढ़ने वाली है. हालांकि, चीन के लिए इस समूह का नेतृत्व करना या उस पर हावी होना आसान नहीं होगा, लेकिन सौदेबाजी की संभावनाएं काफी ज्यादा बढ़ सकती हैं.”
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार, चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऋणदाता है और यह आधे से ज्यादा ऋण विकासशील देशों को देता है. चीन की अर्थव्यवस्था का आकार, भारत की अर्थव्यवस्था से लगभग पांच गुना ज्यादा है. हालांकि, भारत दुनिया में सबसे बड़ी युवा आबादी के साथ सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है.
कजान में आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में, इस समूह में नए देशों को शामिल करने के तरीके पर निर्णय लिए जाने की संभावना है. यह ऐसा बिंदु है जिस पर भारत उत्सुकता से आगे बढ़ रहा है.
रूस के साथ रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिश
संभावना जताई जा रही है कि इस सम्मेलन के दौरान भारत रूस के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश करेगा. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और रूस के बीच गहरे रक्षा और तकनीकी संबंध हैं और वह वहां चीन के प्रभाव को संतुलित बनाए रखने की कोशिश करेगा.
पंत कहते हैं, "चीन ने रूस को पश्चिम के खिलाफ एक सुरक्षा घेरा दिया है, जिसे भारत न तो देने की स्थिति में है और न ही देना चाहेगा. यहां भारत के लिए चुनौती रूस के साथ ऐसे संबंध बनाए रखना है जो उसके बुनियादी हितों को पूरा करता हो, चाहे वह रक्षा, मध्य एशिया या ऊर्जा से जुड़ा हो.”
भारत के विदेश मंत्रालय में आर्थिक संबंधों के पूर्व सचिव राहुल छाबड़ा का कहना है कि रूस हमेशा चीन के साथ नहीं जुड़ा रह सकता है. उन्होंने कहा, "चीन रूस की कमजोरी नहीं है. रूस को पता है कि उसे चीन से क्या समस्याएं हैं और वह उन समस्याओं को अनदेखा या नजरअंदाज नहीं करता है, भले ही वे समस्याएं हमेशा सामने नहीं आती हैं.”
भारत के लिए नेतृत्व का एक और मौका
जब 2010 में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका को इस समूह में शामिल किया गया था, तब छाबड़ा वहां मौजूद थे. उनके मुताबिक, ब्रिक्स समूह को भारत के लिए उपलब्ध अन्य मंचों से अलग करके नहीं देखा जा सकता है. वह कहते हैं कि समूह में नए देशों के जुड़ने से भारत को भी ऐसा मंच मिलता है जिससे वह अपने आर्थिक हितों को साध सकता है.
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छाबड़ा इस बात पर जोर देते हैं कि ब्रिक्स समूह में पेट्रोलियम का उत्पादन करने और उपभोग करने वाले प्रमुख देश शामिल हैं. इस लिहाज से यह काफी अलग समूह है.
उन्होंने कहा, "अब इस समूह में ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के शामिल होने के बाद, यह समूह पूरी दुनिया में लगभग 40 फीसदी तेल बेचने और खरीदने वाले देशों का समूह बन गया है. जबकि, ओपेक सिर्फ तेल उत्पादक देशों का समूह है.”
छाबड़ा ने कहा, "इस समूह में व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भरता घटाने पर चर्चा होनी बाकी है. अगर वे अपने व्यापार के लिए ब्रिक्स पे या किसी दूसरे तरीके का इस्तेमाल करने पर सहमत होते हैं, तो इसका बहुत बड़ा प्रभाव होगा. निश्चित रूप से इससे चीन को फायदा होगा, लेकिन भारत को भी फायदा होगा.”
फिलहाल, भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस और ईरान पर काफी हद तक निर्भर है. छाबड़ा कहते हैं, "अलग-अलग प्रभावशाली मंचों वाली दुनिया में हर मंच महत्वपूर्ण है जहां भारत अपने हितों की तलाश कर रहा है. यह एक ऐसा मंच है जहां हम मुख्य रूप से पांच देशों के हिस्से के तौर पर नियम तय कर रहे हैं. यह एक सादा कैनवास है, जहां आप जैसा चाहें वैसा चित्र बना सकते हैं.”