सोमवार को तुर्की के लोगों की जब तक आंखें खुलीं वहां राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे चरण में जाने की ऐतिहासिक संभावना उभर चुकी थी. राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने चुनाव में बढ़त ले ली.चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने एर्दोवान को पहली बार राष्ट्रीय चुनाव में छह पार्टियों के गठबंधन से हार मिलने के संकेत दिए थे. तुर्की पर नजर रखने वाले इस बार के चुनाव को उस्मानियाई साम्राज्य के बाद के दौर का सबसे अहम चुनाव बता रहे थे. हालांकि 69 साल के एर्दोवान ने रविवार को हुए मतदान में हार की संभावनाओं को नकार दिया. मुमकिन है कि दो दशकों से तुर्की पर एकक्षत्र राज कर रहे एर्दोवान अभी कुछ साल और सत्ता पर काबिज रहें.
तुर्की में अब कितने जरूरी रह गये हैं एर्दोवान
50 फीसदी वोट किसी को नहीं
चुनाव में जीत के लिए जरूरी 50 फीसदी वोटों का आंकड़ा दोनों में कोई उम्मीदवार हासिल नहीं कर सका. यह 99 फीसदी वोटों की गिनती के बाद की स्थिति है. सरकारी समाचार एजेंसी अनादोलू ने खबर दी है कि एर्दोवान 49.42 फीसदी वोट के साथ कुरुचदारू से आगे चल रहे हैं. कुरुचदारु को 44.95 फीसदी वोट मिले हैं. तीसरे उम्मीदवार सिनान ओगनान पांच फीसदी वोट हासिल कर किंगमेकर के रूप में उभरे हैं हालांकि अब तक उन्होंने किसी को समर्थन देने की घोषणा नहीं की है.
इस्लामी जड़ों वाली एर्दोवान की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी और उनके धुर दक्षिणपंथी सहयोगी रविवार को हुए संसदीय चुनाव में भी बहुमत पाने के करीब हैं.
बाजार पर नतीजों का असर
चुनाव परिणामों का नतीजा तुर्की के बाजारों पर तुरंत नजर आने लगा. एर्दोवान की गैरपारंपरिक आर्थिक नीतियों के लागू रहने की आशंका से तुर्क मुद्रा लीरा की कीमत में काफी गिरावट आई. दूसरी तरफ बोरसा इस्तांबुल इंडेक्स समोवार को गिरावट के साथ खुला और 11 बजे सुबह तक इसमें 4.5 की गिरावट देखी गई.
जर्मन तुर्कों को क्यों भाते हैं एर्दोवान
चुनाव के नतीजे कुरुचदारु और उनकी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के समर्थकों के लिए काफी निराश करने वाले हैं. सोमवार को तुर्की का आकाश काले मेघों से ढंका था, जैसे विपक्षी दलों के लिए कोई संकेत दे रहा हो हालांकि ऐतिहासिक दूसरे चरण के नतीजों को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है.
इस्तांबुल में हामदी कुरुमाहमुत ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "एर्दोवान जीतने जा रहे हैं. वह सच्चे नेता हैं. तुर्की के लोगों का उन पर भरोसा है और उनके पास तुर्की के लिए एक दृष्टि है." पर्यटन क्षेत्र में काम करने वाले 40 साल के कुरुमाहमुत का यह भी कहना है, "निश्चित रूप से कुछ चीजों को बेहतर करने की जरूरत है, अर्थव्यवस्था में, शिक्षा में या शरणार्थी नीति में. हालांकि हम जानते हैं कि वही हैं जो इन सब का समधान निकाल सकते हैं."
विपक्ष पर भरोसा
26 साल की बेतुल इल्माज के मन में कुरुचदारू की जीत का भरोसा कायम है. उनका कहना है कि अगर कुरुचदारू ओगान के साथ गठबंधन कर लें तो वो जीत जाएंगे.
मतगणना चालू रहने के दौरान ही 33 साल की एमीन सेर्बेस्त ने कहा, "अगर कुरुचदारू जीते तो हमारे लिए अच्छा वक्त आएगा. मैं उसके बारे में नहीं सोचना चाहती जब एर्दोवान जीत जाएंगे."
सरकार समर्थक सबाह अखबार ने एर्दोवान के अनापेक्षित मजबूत प्रदर्शन को "शानदार सफलता" कहा है. कुरुचदारू एर्दोवान समर्थित उम्मीदवारों से हारते आए हैं. एक साल तक गठबंधन में शामिल दलों की बहस और कड़ी खींचतान के बाद आखिर उन्हें गठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया. ये दल किसी तरह एक साथ आ तो गए हैं लेकिन उनमें धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेद बहुत गहरे हैं. अब गठबंधन के सामने दूसरे चरण के चुनाव के लिए संगठित होने की चुनौती है. उधर एर्दोवान को गतिशील बने रहने के लिए जरूरी उर्जा मिल गई है.
यूरेशिया ग्रुप कंसल्टेंसी के एमरे पेकर का कहना है, "राष्ट्रपति अपनी रेटिंग को बरकरार रखने में सफल रहेंगे ऐसा लग रहा है, संसद में चौंकाऊ जीत और सत्ताधारी होने का फायदा उन्हें चुनाव जीतने में मदद करेगा." पेकर का यह भी कहना है कि संसदीय चुनाव में पहचान, आतंकवाद और सुरक्षा के मुद्दों ने अच्छा काम किया और एर्दोवान के रुढ़िवादी आधार का विस्तार हुआ है, इन्हीं के दम पर राष्ट्रपति ने आर्थिक कमियों पर विजय पा लिया है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)