जर्मनी ने 2024 के लिए सीओ2 के उत्सर्जन का लक्ष्य तो हासिल कर लिया है लेकिन वह यूरोपीय संघ के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका. उत्सर्जन में कमी को अर्थव्यवस्था की मंदी से भी जोड़ कर देखा जा रहा है.जर्मनी ने ग्रीनहाउस गैसों में कटौती का अपना 2024 का राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल कर लिया. हालांकि वह यूरोपीय संघ के लिए तय लक्ष्य को हासिल करने से पीछे रह गया, जो ज्यादा कठिन है. थिंक टैंक अगोरा एनर्गीवेंडे का कहना है कि जर्मनी ने पिछले साल 65.6 करोड़ मिट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइ़ड गैस समतुल्य का उत्सर्जन किया. इस टर्म का अलग अलग गैसों के उत्सर्जन के लिए उपयोग किया जाता है. यह मात्रा पिछले साल के 67.4 करोड़ मिट्रिक टन से करीब 2.7 फीसदी कम है. थिंक टैंक का कहना है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए यह ऐतिहासिक रूप से निचला स्तर है.
यूरोपीय संघ के लक्ष्य तक नहीं पहुंचा
1990 में जर्मनी के एकीकरण के बाद से अगर तुलना करें तो उत्सर्जन की मात्रा करीब 48 फीसदी नीचे गई है. यूरोपीय संघ ने 2030 तक इसे 55 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य रखा है. थिंक टैंक का कहना है, "जर्मनी ने जलवायु संरक्षण एक्ट के तहत सालाना कमी के लक्ष्य में 3.6 करोड़ टन की कमी हासिल की है." हालांकि इस कमी के बावजूद जर्मनी यूरोपीय संघ के उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका.
थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में बताया है, "निर्माण और परिवहन क्षेत्र में पर्याप्त कमी नहीं होने के कारण जर्मनी यूरोपीय जलवायु लक्ष्य से 1.2 करोड़ टन सीओटू से पीछे रह गया, जिस पर एफर्ट शेयरिंग रेग्यूलेशन (ईएसआर) के तहत सहमति बनी थी." ईएसआर के तहत यूरोपीय संघ के देश जलवायु के लिए नुकसानदेह उत्सर्जन को तेजी से घटाने पर सहमत हुए थे. इनमें खासतौर से निर्माण, कृषि, परिवहन और कचरा प्रबंधन को शामिल किया गया था.
आर्थिक मंदी जैसे हालात
2024 में उत्सर्जन में कमी का राष्ट्रीय लक्ष्य तो हासिल हो गया लेकिन औद्योगिक उत्सर्जन लगभग 2 फीसदी बढ़ गया. यह हाल तब है जबकि देश में सामान्य रूप से आर्थिक मंदी जैसे हालात हैं. थिंक टैंक का कहना है कि बिजली क्षेत्र को छोड़ कर उद्योग, निर्माण और परिवहन में कोई संरचनात्मक बदलाव नहीं दिखा है. हीट पंपों की बिक्री पिछले साल की तुलना में 44 फीसदी गिर गई है तो नई इलेक्ट्रिक कारों का रजिस्ट्रेशन भी 26 फीसदी तक घटा है. इमारतों से होने वाले उत्सर्जन में जो मामूली कमी आई है, उसकी वजह भी देश का मौसम है जो उतना ठंडा नहीं हो रहा है.
जर्मनी में अगोरा एनर्गीवेंडे के निदेशक साइमन म्यूलर कहते हैं, "जलवायु संरक्षण के लिए हाल के वर्षों में जो कदम उठाए गए हैं उनका बिजली क्षेत्र पर काफी असर हुआ है." म्यूलर ने आगे कहा, "अक्षय ऊर्जा में अहम बढ़ोत्तरी और ग्रिड एक्सपेंशन में अहम विस्तार की वजह से जर्मनी सभी क्षेत्रों में सफल बदलाव के लिए रास्ता बना रहा है."
म्यूलर का मानना है कि देश को घटते उत्सर्जन और बिजली विनिमय की सस्ती कीमतों से भी फायदा हो रहा है. बिजली विनिमय से यहां मतलब जीवाश्म ऊर्जा के बदले बिजली के इस्तेमाल से है. हालांकि जर्मनी में उत्सर्जन में कमी की दर काफी सुस्त है. मुख्य रूप से इसकी वजह हरित ऊर्जा में उद्योग और परिवारों का कम निवेश है. थिंक टैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से कारोबार और परिवार दोनों का हरित ऊर्जा में निवेश घटा है.
जर्मनी के ऊर्जा नियामक का कहना है कि पवन, सौर और बायोमास जैसे अक्षय ऊर्जा क्षेत्रों की बिजली उत्पादन में हिस्सेदारी 59 फीसदी तक चली गई है जो इससे पहले के साल में 56 फीसदी थी. पिछले साल जो उत्सर्जन में कमी हुई, उसका कारण 80 फीसदी अक्षय ऊर्जा के रिकॉर्ड उत्पादन और कोयले से चलने वाले बिजली घरों का बंद होना ही है. म्यूलर ने चुनाव अभियान में जुटे राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे बिजली क्षेत्र की तरह ही दूसरे क्षेत्रों में सुधारों को लागू करें.
निर्माण क्षेत्र का बुरा हाल
दिसंबर के महीने में भी जर्मनी का निर्माण क्षेत्र मंदी में ही घिरा रहा. बीते अप्रैल से ही निर्माण क्षेत्र सिकुड़ रहा है. बीते चार महीनों में आवासीय निर्माण का रजिस्ट्रेशन लगातार नीचे गया है. सिविल इंजिनियरिंग भी नीचे की ओर ही जा रही है. कंपनियों के पास पर्याप्त ऑर्डर नहीं हैं. लोग महंगाई को देखते हुए घर खरीदने जैसी परियोजनाओं में फिलहाल हाथ डालने से बच रहे हैं. निर्माण क्षेत्र में रोजगार घट रहा है. निर्माण सामग्री की कीमतें चार महीने पहले बढ़ीं थीं और अब तक नीचे नहीं आई हैं.
राजनीतिक अस्थिरता इसकी एक बड़ी वजह बताई जा रही है. इसकी वजह से कंपनियां इंतजार करने को ही बेहतर मान रही हैं. उन्हें उम्मीद है कि शायद नई सरकार कोई ऐसी नीति लेकर आए जिससे हालात सुधर सकें. ऐसी हालत में अगर उत्सर्जन घटा भी है तो उसे बड़ी उपलब्धि भला कौन मानेगा.
एनआर/आरपी (डीपीए, एएफपी)