हाल के दिनों में चीन ने कई अभूतपूर्व शिखर सम्मेलनों की मेजबानी की है और अमेरिका पर आरोप लगाया है कि वो उसके विकास को ‘रोकने’ की कोशिश कर रहा है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के प्रयासों का प्रभाव कमजोर पड़ सकता है.हाल ही में कूटनीतिक विवादों की एक श्रृंखला के बाद, चीन और अमेरिका के संबंध और भी जटिल होते जा रहे हैं. पिछले हफ्ते, वार्षिक विधायी बैठकों के दौरान, चीन के शीर्ष नेतृत्व ने अमेरिका पर चीन को व्यापक तरीके से रोकने और दमन करने का अभियान चलाने का आरोप लगाया, जिससे द्विपक्षीय संबंध बिगड़ते रहे.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, "अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने चीन को चारों से नियंत्रित करने, घेरने और दमन करने की कोशिश की है जो हमारे देश के विकास के लिए अभूतपूर्व गंभीर चुनौतियां लेकर आया है.”
चीन के विदेश मंत्री किन गांग ने भी दोनों देशों के बीच संभावित संघर्ष की चेतावनी दी. बतौर विदेश मंत्री अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में किन ने कहा, "यदि संयुक्त राज्य अमेरिका बिना ब्रेक लगाए गलत रास्ते पर तेजी से बढ़ना जारी रखता है तो उसे पटरी से उतरने से कोई भी नहीं रोक सकता और इससे निश्चित तौर पर संघर्ष और टकराव होगा.”
अमेरिका के बकनेल विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रोफेसर झिकुन झू कहते हैं कि चीन और अमेरिका के बीच चल रहे तनाव ने चीन की कूटनीति की दिशा को सीधे तौर पर प्रभावित किया है. वो कहते हैं कि इन घटनाओं ने चीन को ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के साथ संबंधों को सुधारते हुए विकासशील दुनिया में पारंपरिक सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करने के लिए प्रेरित किया है.
शांतिदूत की भूमिका में चीन?
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "शी ने ईरान, बेलारूस और तुर्कमेनिस्तान के नेताओं के साथ शिखर सम्मेलन किया, लेकिन उन्होंने बीजिंग में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्त्ज का भी स्वागत किया, जबकि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री एंथनी अल्बनीस के इस साल के अंत में चीन की यात्रा करने की संभावना है. ये सभी चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रयास को पीछे धकेलने की कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं.”
विशेषकर, यूक्रेन में चल रहे युद्ध के आलोक में चीन को लगता है कि उसकी बाहरी सीमाएं अनिश्चितता और अप्रत्याशित वजहों से घिरी होंगी.
हेलसिंकी विश्वविद्यालय में एक विजिटिंग रिसर्चर सारी अरहो हैवरेन कहती हैं कि चुनौतीपूर्ण बाहरी वातावरण ने चीन को कई क्षेत्रों में अपनी विदेश नीति को फिर से तैयार करने के लिए मजबूर किया है.
वो कहती हैं, "अपनी विदेश नीति के पुनर्गठन के पीछे एक मुख्य कारण यह भी है कि चीन अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव को नियंत्रित करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश में लगा है. साथ ही, खुद को शांतिपूर्ण वैश्विक सुरक्षा मुहैया कराने वाला और संतुलन बनाकर चलने वाले देश के रूप में प्रस्तुत कर रहा है. जबकि अमेरिका को वह एक आक्रामक देश के रूप में चित्रित करता है जो संघर्ष रोकने की कोशिश करने के बजाय अन्य देशों को उकसाता है.”
चीन ने ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों को बहाल करने के लिए पिछले हफ्ते सफलतापूर्वक एक समझौता कराया था. इस समझौते के बाद, चीन अब मध्य पूर्व में भी एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है जो संभावित रूप से तेल-समृद्ध क्षेत्र में अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देता है.
यूक्रेन और वैश्विक सुरक्षा की पहल
लात्विया में रीगा स्ट्रैडिन्स यूनिवर्सिटी में चाइना स्टडीज सेंटर की प्रमुख उना सेरेनकोवा कहती हैं कि चीन ऐसे किसी भी देश के साथ अनिवार्य रूप से जुड़कर अपनी वैश्विक भूमिका और प्रभाव को बढ़ावा देना चाहता है जो अमेरिका के साथ नहीं आ सकते या फिर वो मौजूदा अंतरराष्ट्रीय सिस्टम के बारे में नकारात्मक विचार रखते हों.
वो कहती हैं, "चीन हर किसी से बात करने की कोशिश कर रहा है और उनका दृष्टिकोण वैचारिक से अधिक व्यावहारिक है. चीन इन प्रयासों से क्या प्राप्त कर सकता है वो ये कि अन्य देशों के प्रमुखों में यह संदेश जाए कि चीन एक महत्वपूर्ण देश है और यदि वह साथ में है तो वे भी उसके साथ रहकर वैश्विक सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं.”
यूक्रेन के मामले में, चीनी विदेश मंत्री किन ने हाल ही में एक बार फिर दोहराया कि संघर्ष और प्रतिबंधों से वहां युद्ध समाप्त नहीं होगा. साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि शांति वार्ता की प्रक्रिया जल्द से जल्द होनी चाहिए.
उनकी यह टिप्पणी चीन द्वारा रूस-यूक्रेन युद्ध पर पर अपना पक्ष रखने के लिए जारी किए गए 12-सूत्रीय बयान के बाद आई. लेकिन खुद को शांति दूत के रूप में पेश करने की चीन की कोशिशें कुछ शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों के मन में संदेह पैदा करती हैं.
इसके अलावा, चीन ने इस महीने की शुरुआत में वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) संबंधी एक अवधारणा पत्र जारी किया. चीनी की सरकारी मीडिया का कहना है कि इस दस्तावेज ने वैश्विक शांति और सुरक्षा के संबंध में चीन की मूल अवधारणाओं और सिद्धांतों को स्पष्ट किया है.
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के चीन मामलों के एक जानकार ड्र्यू थॉम्पसन ने यूक्रेन में युद्ध पर GSI और चीन के बयान को रणनीति दस्तावेजों के बजाय ‘उम्मीदों और वरीयताओं के बयान' के रूप में वर्णित किया है.
वो कहते हैं, "इसे इसलिए डिजाइन किया गया है ताकि चीनी स्टेकहोल्डर्स को चीन की सुरक्षा और राजनीतिक प्राथमिकताओं की बेहतर समझ हो सके. चीन के शासन के तरीके को लागू करने और संचालित करने के लिए इन व्यापक दस्तावेजों का उपयोग कैसे कर सकते हैं, यह तय करने का काम चीन के अधिकारियों पर छोड़ दिया गया है.”
बकनेल यूनिवर्सिटी के झू का कहना है कि हालांकि GSI कॉन्सेप्ट पेपर और यूक्रेन पर 12-सूत्रीय बयान में यूक्रेन और अन्य जगहों पर शांति को बढ़ावा देने संबंधी कई बातें एक जैसी हैं, लेकिन समस्या यह है कि GSI व्यावहारिक नहीं है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने और सभी देशों की वैध चिंताओं को गंभीरता से लेने के लिए चीन की प्रतिबद्धताओं को दोहराता है. यह ऐसी योजना नहीं है जिस पर कोई कार्रवाई की जाए.”
रूस से घनिष्ठता बनी रहेगी
हेलसिंकी विश्वविद्यालय की हैवरन कहती हैं कि चीन और अमेरिका की बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा वाले मौजूदा भू-राजनीतिक संदर्भ में, चीन शायद रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखेगा. क्योंकि इस प्रतिद्वंद्विता में अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी धड़े की तुलना में चीन, रूस को ‘बहुमूल्य मल्टीलेयर भागीदार' के रूप में देखता है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "चीन एक प्रभावशाली सैन्य और परमाणु शक्ति के रूप में रूस की भूमिका को स्वीकार करता है और रूस की सुरक्षा चिंताओं को भी समझता है और अपने हितों के सुरक्षा क्षेत्रों के प्रति सहानुभूति रखता है. वैश्विक व्यवस्था को बदलने में उनके हित एक जैसे हैं. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के एक साल बाद, चीन और रूस के संबंध केवल घनिष्ठ हुए हैं.”
ताइपे में ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन में पोस्टॉक्टोरल फेलो सना हाशमी कहती हैं कि भारत-प्रशांत क्षेत्र के देश आक्रामक और महत्वाकांक्षी चीन का जवाब दे सकते हैं और यह क्षेत्र ‘सामूहिक पहल के दौर' में प्रवेश कर गया है, जहां क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज्यादा से ज्यादा देश मजबूत भागीदार बन रहे हैं.
वो कहती हैं, "सुरक्षा प्रदान करने के लिए अमेरिका को एकमात्र देश के रूप में नहीं देखा जाता है, और भारत जैसे देश तेजी से सुरक्षा के लिए मजबूत भागीदार बन रहे हैं. सुरक्षा उपाय करने और शांति और स्थिरता का वातावरण बनाना एक साझा जिम्मेदारी है.”