पेंशन के बोझ से दबते चीन ने बढ़ाई रिटायरमेंट की उम्र
चीन में पेंशन घाटे को भरने और कामगारों की संख्या बढ़ाने के लिए यह जरूरी कदम माना जा रहा था.
चीन में पेंशन घाटे को भरने और कामगारों की संख्या बढ़ाने के लिए यह जरूरी कदम माना जा रहा था. एक बच्चा नीति के नतीजे अब चीन को परेशान करने लगे हैं.चीन की सर्वोच्च वैधानिक शक्ति 'नेशनल पीपल्स कांग्रेस' की स्टैंडिंग कमेटी ने बीते हफ्ते एलान किया कि रिटायरमेंट की आयु पांच साल तक बढ़ाई जाएगी. जनवरी 2025 से शुरू होकर अगले 15 साल में धीरे-धीरे रिटायरमेंट की उम्र बढ़ती जाएगी.
पुरुष 60 की जगह 63 साल में रिटायर होंगे. महिला कर्मी 55 की जगह 58 साल में रिटायर होंगी. शारीरिक श्रम करने वाली महिला कामगार (ब्लू कॉलर वर्कर) जो 50 साल की उम्र में रिटायर होती थीं, अब 55 साल तक काम करेंगी. सुधारों के तहत, साल 2030 से पेंशन फंड में कर्मचारियों के जरूरी योगदान की अवधि 15 साल से बढ़कर 20 साल कर दी जाएगी.
चीन को रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की जरूरत क्यों पड़ी?
2022 तक दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश, चीन हर साल और ज्यादा बूढ़ा होता जा रहा है. अप्रैल 2023 में भारत चीन से आगे निकलकर सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बना. युवा भारतीय आबादी के मुकाबले चीन की जनसंख्या उम्र के ढलान पर है. इसके कई कारण हैं, मसलन लंबी होती जीवन अवधि और घटती जन्म दर. बीते साल चीन में 60 साल या इससे ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या करीब 30 करोड़ पर पहुंच गई. यानी, उसकी कुल आबादी का लगभग 21.1 फीसदी हिस्सा. उसके एक साल पहले यह आंकड़ा करीब 28 करोड़ था.
चीन रिटायरमेंट की उम्र क्यों बढ़ाना चाहता है?
चीन उन देशों में है, जहां आबादी सबसे ज्यादा तेजी से उम्रदराज हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, साल 2040 तक वहां 60 बरस से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या आबादी का लगभग 28 फीसदी होगी. आबादी में बुजुर्गों की इतनी बड़ी संख्या चीन के लिए नीतिगत स्तर पर बड़ी चुनौती है. इन्हीं चिंताओं में से एक है, पेंशन मद में बढ़ते भुगतान का आर्थिक दबाव.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, चीन में पेंशन का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पांच फीसदी से अधिक है. चीन की अकैडमी ऑफ साइंसेज का अनुमान है कि 2035 तक सरकारी पेंशन व्यवस्था में फंड खत्म हो जाएगा. ऐसे में रिटायरमेंट और पेंशन सुधारों को बेहद जरूरी माना जा रहा था.
जनसांख्यिकी विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों की राय में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाना, पेंशन घाटे और कामगारों की सिकुड़ती संख्या से निपटने की दिशा में एक शुरुआती और छोटा कदम है. एक बड़ी चुनौती धीमी अर्थव्यवस्था है. चीन की आर्थिक विकास दर 2000 के शुरुआती दशकों में करीब आठ फीसदी थी. मौजूदा समय में यह पांच प्रतिशत के करीब है.
इन्वेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी नैटिसिक्स में एशिया-प्रशांत क्षेत्र की चीफ इकोनॉमिस्ट अलीसिया गार्सिया हेरेरो अनुमान जताती हैं कि एक दशक बाद साल 2035 तक यह गिरकर एक फीसदी तक पहुंच सकती है. रॉयटर्स से बातचीत में हेरेरो बताती हैं, "उन्हें पेंशन समस्या को अभी ही सुलझाने की जरूरत है क्योंकि घाटे को भरने के लिए फिलहाल उनके पास थोड़ी आर्थिक वृद्धि है."
कैसा है चीन का पेंशन सिस्टम?
बाकी देशों की तरह चीनी नागरिक भी रिटायर होने पर पेंशन पाते हैं. बड़ी आबादी होने के कारण चीन की सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था का ढांचा भी सबसे बड़ा है. रॉयटर्स के मुताबिक, चीन में पेंशन व्यवस्था के तीन प्रकार हैं. एक, बेसिक पेंशन सिस्टम जो सरकारी है. दूसरा है, स्वैच्छिक कर्मचारी पेंशन योजना जो कंपनियां-दफ्तर देते हैं. तीसरी है, निजी स्वैच्छिक पेंशन योजनाएं.
सबसे ज्यादा वित्तीय दबाव सरकारी पेंशन योजना पर है. रॉयटर्स ने चीनी मीडिया के हवाले से बताया कि साल 2022 के अंत तक 'नेशनल बेसिक पेंशन' से जुड़े लोगों की संख्या करीब 100 करोड़ थी. इनमें योगदान देने वाले और भुगतान पाने वाले, दोनों शामिल हैं. 2021 की जनगणना में सामने आया कि आबादी में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और काम करने की उम्र वाले लोगों की संख्या सिकुड़ती जा रही है.
शहरी इलाकों में मिलने वाली मासिक पेंशन देखें, तो कम विकसित प्रांतों में यह रकम लगभग 3,000 युआन (करीब 425 डॉलर) तक है. शंघाई जैसे बड़े शहरों में यह रकम 6,000 युआन (800 डॉलर से ज्यादा) तक है. ग्रामीण इलाकों में मिलने वाली पेंशन, जिसे साल 2009 में देशव्यापी स्तर पर लागू किया गया था, बहुत मामूली है.
मूडीज रेटिंग्स में विश्लेषक जॉन वांग ने ताजा सुधारों पर बात करते हुए रॉयटर्स को बताया कि ये बदलाव चीन की जनसंख्या संबंधी चुनौतियों के लिए सामाजिक जोखिम पैदा कर सकते हैं और इससे आय में असमानता बढ़ सकती है. वह कहते हैं, "चीन की रिटायरमेंट उम्र से जुड़े सुधारों को सफलतापूर्वक लागू करना जोखिमों के प्रबंधन पर निर्भर करेगा. जैसे कि बूढ़ी होती आबादी की कार्यक्षमता और कौशल, उपलब्ध नौकरियां और तकनीक व नवाचारों में हो रही प्रगति को अपनाने की क्षमता."
धीमा जन्मदर, बढ़ते बुजुर्ग
बहुत रफ्तार से बढ़ती जनसंख्या पर लगाम कसने के लिए 1980 के दशक में चीन ने "वन चाइल्ड पॉलिसी" लागू की थी. करीब 35 साल बाद 2016 में सरकार ने इस नीति में ढील दी और चीनी जोड़ों को दो बच्चे पैदा करने की इजाजत मिली. जन्मदर में आई बड़ी गिरावट इस नीतिगत बदलाव का कारण बना. "टू चाइल्ड पॉलिसी" के बावजूद जन्मदर धीमी बना रही.
आबादी घटने की आशंका से चिंता में पड़ा चीन
बड़ी जनसंख्या के कारण सस्ते श्रम की सहज उपलब्धता लंबे समय से चीन की आर्थिक प्रगति को ईंधन मुहैया कराती आ रही है. लाइटर से लेकर मशीनों के पुर्जे तक, "मैन्युफैक्चरिंग हब" चीन के कारखानों में बना सामान दुनियाभर में इस्तेमाल हो रहा है.
धीमी जन्मदर और बुजुर्ग आबादी, ना केवल सामाजिक बल्कि आर्थिक और कारोबारी चिंता का भी विषय हैं. इसी के मद्देनजर देश के केंद्रीय बैंक "पीपल्स बैंक ऑफ चाइना" ने मार्च 2021 की अपनी एक रिपोर्ट में अनुशंसा की, "शैक्षणिक और तकनीकी प्रगति जनसंख्या में गिरावट की भरपाई नहीं कर सकते हैं. 2035 में दीर्घकालीन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए चीन को बच्चों के जन्म को पूरी तरह उदार बनाना होगा और इसे प्रोत्साहित करना होगा."
ऐसे तो आधी रह जाएगी चीन की आबादी!
रिपोर्ट में यह भी कहा गया, "चीन को स्वीकार करना चाहिए कि जनसंख्या संबंधी स्थितियां बदल गई हैं. चीन की आबादी में हो रहा बदलाव बहुत तेज है. बूढ़ी होती आबादी की समस्या और सब-रीप्लेसमेंट फर्टिलिटी बहुत गंभीर है." यहां सब-रीप्लेसमेंट फर्टिलिटी से तात्पर्य धीमी प्रजनन दर है. इसकी वजह से उतने बच्चे पैदा नहीं होते, जो बुजुर्ग होती आबादी को रीप्लेस कर सकें. जन्मदर के इस संकट के मद्देनजर मई 2021 में चीन ने एक और बड़ा नीतिगत बदलाव लाते हुए कहा कि अब लोग तीन बच्चे पैदा कर सकते हैं.
हालांकि, इन बदलावों के बावजूद जन्मदर के मामले में चीन को बहुत राहत नहीं मिली है. पिछले साल यहां बच्चों के जन्म में 90 लाख की और कमी आई. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अगर चीन में प्रजनन दर मौजूदा स्तर पर ही रही, तो साल 2050 में (2010 के मुकाबले) में उसकी काम करने वाली आबादी लगभग 40 फीसदी तक कम हो जाएगी.
क्या 2024 ड्रैगन ईयर में चीन में ज्यादा बच्चे पैदा होंगे?
चीन में आई आर्थिक और सामाजिक तरक्की के कारण औसत उम्र भी बढ़ी है. 1960 के दशक में लाइफ एक्सपेक्टेंसी (जीवन प्रत्याशा) करीब 44 साल थी. 2021 में यह बढ़कर 78 हो गई. 2050 तक यह और बेहतर होकर 80 साल होने का अनुमान है. लोग जितना लंबा जिएंगे, उतनी ही लंबी अवधि तक वह पेंशन भी लेंगे.
एसएम/ओजे (रॉयटर्स, एपी)