वैज्ञानिकों को जुड़वां बच्चे बहुत भाते हैं. माना जाता है कि प्रयोग करने के लिए जुड़वां बच्चे या लोग बहुत सटीक होते हैं. लेकिन ऐसा क्यों हैं?नेटफ्लिक्स पर एक डॉक्युमेंट्री है, ‘यू आर वट यू ईट'. इसमें जुड़वां लोगों पर अलग-अलग तरह का खाना खाने के असर दिखाए गए हैं. आठ हफ्ते तक जोड़े में से एक शख्स वीगन खाना खाता है जबकि दूसरा सर्वाहारी है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह प्रयोग का बेहतरीन तरीका है क्योंकि जिन लोगों के जीन्स एक जैसे हों, उनकी सेहत लगभग एक जैसी है इसलिए प्रयोग के नतीजों की सटीकता की संभावना बहुत ज्यादा होती है. विज्ञान के लिए जुड़वां लोग बेहद अहम और काम के होते हैं.
1875 में ब्रिटिश वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गैल्टन ने सबसे पहले जुड़वां लोगों के बीच समानताओं को उजागर किया था. उन्होंने अपने अध्ययन में तर्क दिया कि इंसान की सेहत और स्वभाव में कुदरत का बहुत योगदान होता है. उसके बाद से वैज्ञानिक शोध में जुड़वां लोगों का खूब इस्तेमाल हुआ है.
बड़े काम के जुड़वां
वैज्ञानिक कहते हैं कि जुड़वां लोग तुलनात्मक अध्ययन के लिए बहुत बढ़िया मिसाल होते हैं. सिडनी की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थव्यवस्था के सीनियर लेक्चरर नेथन केटलवेल कहते हैं कि जुड़वां लोगों में सारे जीन्स लगभग साझा होते हैं. इसके अलावा वे आमतौर पर एक ही घर में, एक जैसे वातावरण में पलते-बढ़ते हैं, अक्सर एक ही स्कूल में जाते हैं और उनके आस-पास का पूरा माहौल एक जैसा होता है.
एक लेख में केटलवेल कहते हैं, "तुलनात्मक अध्ययन के लिए रैंडमाइज्ड ट्रायल सबसे सटीक मानी जाती हैं. ऐसी ट्रायल के लिए जुड़वां लोगों की जरूरत तो नहीं होती. बल्कि, बहुत कम ट्रायल ऐसी होती हैं जिनमें जुड़वां लोगों पर प्रयोग हों. लेकिन अगर जुड़वां लोग हों तो यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि जिन दो समूहों पर प्रयोग हो रहे हैं, वे एक जैसे हों. जब शोध में प्रतिभागियों की संख्या कम हो, तब तो यह बात और भी ज्यादा अहम हो जाती है.”
कितने हैं जुड़वां लोग?
वैज्ञानिकों के मुताबिक जब से दस्तावेजीकरण शुरू हुआ है, तब से जुड़वां बच्चों की संख्या शादियों और परिवारों के आकार के मुताबिक बदलती रही है. शोधकर्ता पीसों जी और अदातो एवी ने जुड़वां बच्चों की संख्या पर 2006 में किए अपने अध्ययन में बताया था कि उम्रदराज महिलाओंऔर उच्च जन्मदर वाले समाजों में जुड़वां बच्चों की संख्या ज्यादा होती है.
लेकिन पिछले तीन दशकों से जुड़वां बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. इसकी वजह मेडिकल तकनीक में हुई तरक्की है, जिसके कारण डॉक्टरों की मदद से पैदा हो रहे बच्चों में जुड़वां बहुत ज्यादा होते हैं. हालांकि डॉक्टरों में अब भी इस बात पर सहमति नहीं है कि तकनीक जुड़वां बच्चों के लिए कितनी जिम्मेदार है क्योंकि बच्चों के पैदा होने में जनगणना की प्रकृति का योगदान भी होता है.
यही वजह है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जुड़वां बच्चों की संख्या अलग-अलग हो सकती है. ब्रिटेन और फ्रांस के विश्वविद्यालयों के क्रिस्टियान मोंडेन, गिलेस पिसों और जेराँ स्मिट्स ने 2021 में इस बारे में अध्ययन किया था. उन्होंने पाया कि 1980 के दशक के बाद से कई देशों में जुड़वां बच्चों की संख्या में अलग-अलग देशों में बहुत बदलाव आया है.
वे लिखते हैं, "ऐसे सबूत हैं कि कुछ ऐसे देशों में जहां जुड़वां बच्चों की संख्या कुदरती तौर पर ज्यादा होती है, वहां (तकनीक विकसित होने के बाद भी) संख्या स्थिर रही है. इसलिए वैश्विक स्तर पर संख्या बढ़ी है क्योंकि मां बनने की औसत आयु और तकनीक में विकास का बहुत योगदान रहा है.”
मोंडेन, पिसों और स्मिट्स ने अपने शोध में बताया कि 1980 के दशक के बाद से जुड़वां बच्चों के पैदा होने की दर एक तिहाई तक बढ़ी है. हर 1000 बच्चों पर पहले 9.1 जुड़वां बच्चे पैदा होते थे जो बढ़कर 12 तक पहुंच गए और अब हर साल करीब 16 लाख जोड़े पैदा हो रहे हैं.
वैज्ञानिकों को पसंद हैं जुड़वां
वैज्ञानिक कहते हैं कि जुड़वां बच्चे बहुत वजहों से वैज्ञानिक प्रयोगों में मददगार और फायदेमंद साबित हो सकते हैं. केटलवेल कहते हैं कि आय पर शिक्षा के प्रभाव से लेकर धूम्रपान का फेफड़ों के कैंसर पर असर जैसे तमाम विषयों पर अध्ययन में जुड़वां लोग फायदेमंद साबित हो सकते हैं.
वैज्ञानिकों ने अक्सर ऐसे विषयों पर जुड़वां लोगों के माध्यम से अध्ययन किया है. जैसे कि जुड़वां लोगों में से एक धूम्रपान करता है और दूसरा नहीं, तो दोनों पर प्रभावों की सटीक तुलना की जा सकती है.
केटलवेल लिखते हैं, "जुड़वां बच्चों के बीच अंतरों पर ध्यान रखकर हम जेनेटिक और पारिवारिक कारकों को अलग कर सकते हैं और तब कारणों पर हमारा भरोसा ज्यादा होगा. ऐसा नहीं है कि जुड़वां लोगों पर प्रयोग से सारी समस्याएं हल हो जाती हैं लेकिन उन्हें कम करने में मदद मिलती है.”