अलास्कापॉक्स वायरस को पहली बार 2015 में खोजा गया था. संक्रमण की पहचान के बाद अब तक छह और मामले ही सामने आए हैं. इस समूह के कई विषाणु इंसान और जानवर, दोनों को संक्रमित करते हैं.नवंबर 2023 की बात है, जब अलास्का के सुदूर केनाई प्रायद्वीप में रहने वाले एक बुजुर्ग को अस्पताल में भर्ती कराया गया. जनवरी में उनकी मौत हो गई. अब अलास्का के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने अलास्कापॉक्स को मौत की वजह बताया है. यह इस वायरस से हुई पहली ज्ञात मौत बताई जा रही है. अधिकारियों ने मृतक का नाम और उम्र जैसे ब्योरों का खुलासा नहीं किया है. मृतक का पहले से ही कैंसर का इलाज चल रहा था. दवाओं के कारण उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो चुकी थी.
पहली बार कब मिला यह वायरस
अलास्कापॉक्स वायरस को पहली बार 2015 में खोजा गया था. पहले संक्रमित मरीज की पहचान अलास्का के ही फेयरबैंक्स शहर में हुई थी. अलास्कापॉक्स, ऑर्थोपॉक्सवायरस समूह का एक विषाणु है. इस समूह के कई विषाणु इंसान और जानवर, दोनों को संक्रमित करते हैं. इस संक्रमण के कारण त्वचा पर फोड़े-फुंसियां उभर सकती हैं, कुछ-कुछ चेचक की तरह.
अलास्का के स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, यह स्मॉलपॉक्स, काऊपॉक्स और मंकीपॉक्स की श्रेणी का संक्रमण है. 2015 में पहली बार इस संक्रमण की पहचान के बाद अब तक छह और मामले ही सामने आए हैं. इनमें से पांच मामले फेयरबैंक्स और एक केनाई प्रायद्वीप से जुड़ा है. हालांकि अन्य मरीजों में संक्रमण बहुत व्यापक नहीं था और बिना अस्पताल में भर्ती हुए ही वे ठीक हो गए.
छोटे स्तनधारी जीव हो सकते हैं कैरियर
स्वास्थ्य महकमे ने जानकारी दी है कि अब तक मौजूद सारे प्रमाण इस वायरस की मुख्य रूप से छोटे स्तनधारी जीवों में उभरने का संकेत देते हैं. फेयरबैंक में छोटे स्तनधारी जानवरों की सैंपलिंग में यह विषाणु खासतौर पर वोल्स और श्रू जीवों में मिला. वोल, चूहा परिवार का एक सदस्य है और श्रू, छछूंदरों जैसी एक प्रजाति है. यह आशंका भी जताई गई है कि शायद अलास्का के छोटे स्तनधारी जीवों की आबादी में बड़े स्तर पर इस वायरस की मौजूदगी हो. यह भी संभावना है कि और भी इंसान अलास्कापॉक्स से संक्रमित हुए हों, लेकिन इन मामलों की जानकारी ना हो.
अलास्कापॉक्स से जिस बुजुर्ग की मौत हुई, वह जंगली इलाके में रहते थे. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, उन्होंने न तो हाल ही में कोई यात्रा की और न ही ऐसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आए. साथ ही, उन्होंने किसी बीमारी या संक्रमण में उभरने वाले फोड़े-फुंसी के भी संपर्क में ना आने की बात कही.
क्या इंसानों से भी फैलता है वायरस
वायरस कैसे फैलता है और संक्रमण के संचार का पूरा रास्ता क्या है, इसकी ठीक-ठीक समझ अभी नहीं बन पाई है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह जानवरों से इंसानों में पहुंच सकता है. मुमकिन है कि यह संक्रमण वन्य जीवों के रास्ते इंसानों में दाखिल होता हो और कई बार पालतू जीव इन दोनों कड़ियों के बीच संचार का जरिया बनते हों. अंदेशा है कि कुत्ते और बिल्ली जैसे पालतू जीव विषाणु के प्रसार में संभावित भूमिका निभा सकते हैं. अब तक एक इंसान से दूसरे इंसान में इसके प्रसार का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है.
बुलेटिन के अनुसार, बुजुर्ग ने बताया कि उन्होंने एक बिल्ली की देखभाल की थी, जो उनकी पालतू नहीं थी. उस बिल्ली की भी जांच हुई, लेकिन वह नेगेटिव पाई गई. उसके भीतर ऑर्थोपॉक्सवायरसेज और उससे जुड़ी एंटीबॉडीज भी नहीं पाई गईं. लेकिन यह पता चला कि वह बिल्ली "अक्सर छोटे स्तनधारी जीवों का शिकार करती थी और बुजुर्ग को खरोंचती भी थी." उसने बुजुर्ग की कांख में खरोंचा था और इसी के बाद वो बीमार पड़े और उनमें संक्रमण के लक्षण उभरे.
शुरुआती लक्षणों के क्रम में उनकी कांख में एक घाव उभरा, जिससे शुरू हुआ दर्द कंधे तक फैलता गया और हालत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. जांच में उनकी कांख और कंधे की मांसपेशियों में बेहद सूजन पाई गई. काफी इलाज के बाद भी उन्हें नहीं बचाया जा सका. घाव ना भरने, कुपोषण, किडनी और फेफड़े के काम ना करने के कारण उनकी मौत हो गई.
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, स्वास्थ्य विभाग ने संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को अच्छी तरह हाथ धोने, स्किन लीजन्स से प्रभावित त्वचा को बैंडेज से ढकने, फोड़े-फुंसियों के संपर्क में आने पर कपड़ों और चादरों को अलग से धोने की सलाह दी है. साथ ही, अलास्का के निवासियों से यह अपील भी की है कि वे वन्यजीवन के आसपास होने पर संबंधित स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का पालन करें. अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने सलाह दी है कि वन्यजीवों या उनके मल के संपर्क में आने के बाद साबुन और पानी से अच्छी तरह हाथ साफ करें.