Playing Eleven Of India’s First Test Match: इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का खुमार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है. तो बदलाव के लिए क्यों न अतीत में झांका जाए और उन खिलाड़ियों को भी याद किया जाए जिन्होंने भारत को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पहला कदम बढ़ाया था, 11 खिलाड़ी जिन्होंने भारत के पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में अंतिम एकादश में रहकर इतिहास रचा था. टीम में एक ऐसा खिलाड़ी भी था जिसने एक बार नहीं बल्कि दो बार मौत को धोखा दिया, पहला जानलेवा हमले से बचकर और दूसरा मौत की सज़ा से बचकर भरतीय टेस्ट क्रिकेट को आगे बढाया. आज हम उन्ही खिलाड़ियों के ज़िन्दगी के बारे में चर्चा करेंगे. यह भी पढ़ें: एमएस धोनी, जीवा ने रांची में अपने पालतू कुत्तों के साथ की मस्ती, देखें वायरल वीडियो!
1971 में एक दिवसीय क्रिकेट के आगमन तक, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का केवल एक ही प्रारूप था, टेस्ट मैच आज का सबसे लोकप्रिय प्रारूप, टी-20 क्रिकेट, हाल ही में 2005 में शुरू हुआ - ठीक उसी साल फरवरी में जिसका उद्घाटन मैच इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच मेलबर्न में हुआ था.
आज का क्रिकेटर एक खिलाड़ी से ज्यादा एक स्टार बन गया है. हम उनके निजी जीवन के बारे में उतना ही जानते हैं, जितना उनके खेल के बारे में नहीं. सबका रेंज अलग-अलग है, पाकिस्तान के खिलाफ मैच सबसे पसंदीदा है. किस खिलाड़ी का पसंदीदा कार या मोटरसाइकिल; पत्नी या प्रेमिका कौन है, बच्चों के शौक क्या हैं. लेकिन इन मामलों में हमें उतना ही रोमांच मिलता है, भले ही वे बहुत अर्थहीन हों - जितना क्रिकेट के मैदान पर उनके कारनामों में होता है. वैसे भी, मीडिया को भी सेलिब्रिटी परेड में अधिक और महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों में कम रुचि है.
जब हम अपने देश के पहले क्रिकेट खिलाड़ियों के जीवन को याद करते हैं और खेल की सराहना करना सीखते हैं तो दिलचस्प और दिल छू लेने वाली कहानियाँ सामने आती हैं. 25 जून 1932 को इंग्लैंड के ऐतिहासिक लॉर्ड्स मैदान पर भारत के पहले टेस्ट मैच में पहली गेंद का सामना करने वाले खिलाड़ी का नाम जनार्दन नवले था. अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत वर्ष 1877 में हो गई थी लेकिन भारत को क्रिकेट खेलने वाले देश के रूप में पहचान 1932 में मिली. नावले टीम के विकेटकीपर भी थे, इसके बाद सिर्फ एक मैच और खेला और क्रिकेट से संन्यास ले लिया.सन्यास के बाद नवले ने पुणे में एक चीनी मिल में चौकीदार के रूप में काम किया. हां, चौकीदार ज़माना अलग था, विज्ञापन से कमाई का सपना देखना भी गुनाह होता होगा और खेल कोटे से कोई नौकरी नहीं मिलती थी. नौमल जियामल उनके सलामी जोड़ीदार थे, जो कराची में जन्मे लेकिन उनकी मृत्यु मुंबई में हुई थी.
वीडियो देखें:
India's First Test Ever#OnThisDay in 1932, India became the 6th Test Playing Nation when they played against England at @HomeOfCricket.
Here is a small clip from India's very first test.
What’s your favourite memory of India’s Test history?
— Cricketopia (@CricketopiaCom) June 25, 2023
1933-34 में इंग्लैंड के साथ घरेलू श्रृंखला के मद्रास टेस्ट में गेंदबाज नोबी क्लार्क की एक तेज़ गेंद जियामल के चेहरे पर लगी और उस झटके के कारण उनके क्रिकेट करियर का अंत हो गया. 1950 के दशक में कुछ समय के लिए वह पाकिस्तान टीम के कोच रहे लेकिन फिर 1971 में वह भारत आ गये.
इसके विपरीत वजीर अली लंबे समय तक भारत के लिए खेले. सीके नायडू के बाद उन्हें टीम का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज माना जाता था, लेकिन उन्हें दूसरे सर्वश्रेष्ठ के खिताब से नाराजगी थी और वे खुद को सर्वश्रेष्ठ मानते थे. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि नायडू के प्रति उनकी अत्यधिक ईर्ष्या को उनकी खेल प्रतिभा की तुलना में अधिक मान्यता मिली. वह 1947 में पाकिस्तान में बस गए और तीन साल बाद अत्यधिक गरीबी की स्थिति में उनकी मृत्यु हो गई. उनका बेटा खालिद पाकिस्तान के लिए खेल चुका है. वज़ीर के छोटे भाई नज़ीर अली भी भारतीय टीम के प्रमुख बल्लेबाजों में से एक थे. पटियाला के महाराजा को उनका खेल इतना पसंद आया कि उन्होंने नज़ीर को पढ़ाई और क्रिकेट कोचिंग के लिए इंग्लैंड भेजा था. नज़ीर भी अपने भाई की तरह विभाजन के समय पाकिस्तान चले गये. लेकिन उनका जीवन अच्छा और खुशहाल था; वह पाकिस्तान टीम के चयनकर्ता और बाद में क्रिकेट बोर्ड के सचिव बने.
टीम के सबसे चर्चित खिलाड़ी कप्तान सीके नायडू रहे हैं. यह किसी चमत्कार से कम नहीं कि वे 63 वर्ष की आयु तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते रहे; उस समय का प्रथम श्रेणी क्रिकेट अधिक चुनौतीपूर्ण था, निश्चित रूप से आज की कई प्रतियोगिताओं से कम नहीं. उनका उपनाम कर्नल था, इसलिए शायद दिलीप वेंगसरकर, जिन्होंने बाद में यह उपनाम अपनाया, नकलची रहे होंगे।. वास्तव में, नायडू को यह उपाधि होल्कर के राजा द्वारा दी गई थी. उनके प्रशंसक राजा ने उन्हें इंदौर में रहने के लिए आमंत्रित किया और उन्हें अपने राज्य की सेना में पहले कैप्टन और बाद में कर्नल के पद से सम्मानित किया. नायडू को उपभोक्ता उत्पाद - बाथगेट लिवर टॉनिक का प्रचार करने वाले पहले क्रिकेटर होने का श्रेय भी दिया जाता है.
बाएं हाथ के बल्लेबाज और ऑफ स्पिनर फिरोज पालिया मैच की पहली पारी में क्षेत्ररक्षण करते समय घायल हो गए थे, लेकिन दूसरी पारी में गंभीर दर्द के बावजूद आखिरी खिलाड़ी के रूप में बल्लेबाजी करने आए. एक समृद्ध कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले इस खिलाड़ी ने क्रिकेट छोड़ने के बाद बेंगलुरु में लकड़ी और फर्नीचर का सफल कारोबार चलाया.
इंग्लैंड के इस दौरे के दौरान सोहराबजी कोलाह का टीम के कप्तान नायडू के साथ लगातार किसी न किसी मुद्दे पर विवाद चल रहा था, जिसके कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है. मामला इस हद तक बढ़ गया कि उन्होंने खुलेआम वापसी के दौरान नायडू को जहाज से बाहर समुद्र में फेंकने की धमकी दे दी थी.
पश्तून तेज गेंदबाज जहांगीर खान इस दौरे के बाद इंग्लैंड में ही रुक गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक छात्र के रूप में दाखिला लिया. लॉर्ड्स में घरेलू क्रिकेट खेलते समय उनकी एक गेंद एक पक्षी को लगी जो तुरंत मर गया, उस पक्षी से भरी क्रिकेट गेंद आज भी मैदान के मियुजियम की शोभा बढ़ाती है. जहाँगीर खान भारत और पाकिस्तान दोनों टीमों के चयनकर्ता रहे. उन्होंने 1934 के राष्ट्रमंडल खेलों में भाला फेंक स्पर्धा में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था. पाकिस्तान के प्रसिद्ध क्रिकेटर माजिद खान और इमरान खान जो हाल तक पाकिस्तान के प्रधान मंत्री रहे - उनके परिवार के वंशज हैं.
अमर सिंह एक तूफानी तेज गेंदबाज थे. इस मैच में उन्होंने दसवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए भी अर्धशतक लगाया था. यह टेस्ट क्रिकेट में भारत का पहला व्यक्तिगत अर्धशतक था.. बेहद प्रतिभाशाली अमर सिंह रणजी ट्रॉफी में 1,000 रन बनाने और 100 विकेट लेने वाले पहले खिलाड़ी थे. अफ़सोस की बात यह है कि मात्र 29 वर्ष की छोटी उम्र में निमोनिया से उनकी मृत्यु हो गई.
अमर सिंह के तेज़ गेंदबाज़ी साथी मोहम्मद निसार उस समय दुनिया के सबसे तेज़ गेंदबाज़ माने जाते थे. उन्होंने मैच की शुरुआत में ही अपने दूसरे ओवर में इंग्लैंड के दो शीर्ष बल्लेबाजों को आउट करके इंग्लैंड की पारी को हिलाकर रख दिया.
लाल सिंह एक बेहतरीन फील्डर माने जाते थे. उनकी क्रिकेट की कहानी से ज्यादा उनकी निजी जिंदगी का नाटकीय रोमांच, सनसनी और रहस्य है. भारत का उद्घाटन टेस्ट मैच मलेशियाई मूल के सिख खिलाड़ी लाल सिंह द्वारा खेला गया एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय मैच था. वह पटियाला के महाराजा के बहुत करीब थे, इस तरह दरबारियों और दुश्मनों के बीच ईर्ष्या का कारण थे. महाराजा के विरोधियों ने उन पर जानलेवा हमला किया, लेकिन वे किसी तरह बच निकले और भविष्य के हमलों से खुद को बचाने के लिए पेरिस भाग गये.
पेरिस में लाल सिंह को एक अफ़्रीकी-अमेरिकी नर्तकी से प्यार हो गया. दोनों ने मिलकर एक नाइट क्लब खोला. उसने महिला की तस्वीर अपने माता-पिता को भेजी और लिखा, “यह वह है और यह मैं हूं. बहुत जल्द हम तीन हो सकते हैं.” लेकिन ये रिश्ता जल्द ही टूट गया और लाल सिंह मलेशिया चले गए. कुछ ही दिनों में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया और मलेशिया पर जापानी सेना का कब्ज़ा हो गया. लाल सिंह और उनके भाई को जापानियों ने गिरफ्तार कर लिया और मौत की सजा सुनाई. फांसी दिए जाने से पहले लाल सिंह को बोर्नियो में नजरबंद कर दिया गया था लेकिन वह भागने में सफल रहे. इस दौरान कुपोषण और प्रताड़ना के कारण वह इतने कमजोर हो गए थे कि घर लौटने पर उनकी मां भी उन्हें पहचान नहीं पाईं. स्वास्थ्य लाभ के बाद उन्होंने क्रिकेट से नाता बनाए रखा और क्रिकेट मैदानों के क्यूरेटर बन गए. लाल सिंह की 1985 में मृत्यु हो गई. मलेशिया के स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट का नाम उनके नाम पर रखा गया है.
ये थे भारत के पहले टेस्ट मैच के ग्यारह खिलाड़ी. आज के क्रिकेटरों या क्रिकेट सितारों के जीवन की चकाचौंध, तड़क-भड़क और रोमांच निश्चित रूप से युवा पीढ़ी को प्रभावित करता है, लेकिन क्रिकेट के सबसे पुराने दिग्गजों के जीवन और अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. आइए हम उन्हें न भूलें. रिकॉर्ड के लिए आपको बता दे कि अंतिम स्कोरकार्ड में भारत के पहले टेस्ट मैच के लिए इंग्लैंड 259 और 275/8 (घोषित) और भारत 189 और 187 बनाये थे, वह मुकाबला इंग्लैंड ने 158 रनों से जीता था.