बिहार क्रिकेट एसोसिएशन प्रबंधन को अयोग्य करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका, लगाया गया ये आरोप

क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार (सीएबी) ने याचिका में कहा है कि बीसीए सचिव रविशंकर प्रसाद सिंह पिछले दस साल से पदासीन हैं जो शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले का उल्लंघन है.

सुप्रीम कोर्ट (Photo Credits: PTI/File Image)

बिहार क्रिकेट एसोसिएशन प्रबंधन (Bihar Cricket Association Management) को अयोग्य करार देने के लिए उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गयी है और आरोप लगाया गया है कि यह शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है. यह याचिका बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) की प्रतिद्वंद्वी संस्था क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार ने दायर की है, जिसकी याचिका पर शीर्ष अदालत ने बीसीसीआई (BCCI) में बड़े पैमाने पर सुधार का आदेश दिया था और अदालत की तरफ से उसकी निगरानी की गयी. क्रिकेट एसोसिएशन आफ बिहार (CAB) ने याचिका में कहा है कि बीसीए सचिव रविशंकर प्रसाद सिंह पिछले दस साल से पदासीन हैं जो शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले का उल्लंघन है.

उच्चतम न्यायालय ने नौ अगस्त 2018 के फैसले में कहा था कि राज्य एसोसिएशनों और बीसीसीआई में कोई भी अधिकारी केवल लगातार छह साल तक पद पर आसीन रह सकता है. सीएबी के सचिव आदित्य कुमार वर्मा की तरफ से दायर इस याचिका में बीसीए प्रबंधन समिति को अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत दंडित किये जाने की मांग की गयी है. इसमें कहा गया है कि 12 साल तक पदासीन रहना न केवल अवमाननापूर्ण है बल्कि शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन है. याचिका के अनुसार सिंह कोषाध्यक्ष के पद पर 2008 से 2015 तक विराजमान थे. इसके बाद वह मानद सचिव चुन लिये गए. सिंह का यह कार्यकाल भी 23 सितंबर 2018 को समाप्त हो गया लेकिन इसके बावजूद वह अबतक इस पद पर बने हुए हैं. यह भी पढ़ें-

इस बीच, दिल्ली की एक महिला ने शीर्ष अदालत में एक अलग आवेदन दायर करके बीसीसीआई के लोकपाल को उस समिति की रिपोर्ट मंगाने का निर्देश देने की मांग की है जिसमें बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहुल जौहरी को यौन उत्पीड़न के मामले में क्लीन चिट दी गयी थी. आवेदन में कहा गया है कि अदालत को लोकपाल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) डी के जैन को जौहरी के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के मामले की जांच का निर्देश दिया जाना चाहिए. इसमें कहा गया है कि जौहरी को उनके पद से मुक्त किया जाना चाहिए ताकि आरोपों की ‘‘निष्पक्ष जांच’’ करायी जा सके.

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