अधिकांश धर्मों में पूजा या इबादत के समय सर पर कपड़े क्यों रखते हैं? जानें इसका धार्मिक एवं वैज्ञानिक पहलू!
धार्मिक स्थलों पर अथवा धार्मिक कर्मकांडों या इबादत के समय सर पर रूमाल, कपड़ा (स्त्रियां आंचल अथवा दुपट्टा) रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह विधान केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि मुस्लिम एवं सिख धर्म में भी देखने को मिलता है.
धार्मिक स्थलों पर अथवा धार्मिक कर्मकांडों या इबादत के समय सर पर रूमाल, कपड़ा (स्त्रियां आंचल अथवा दुपट्टा) रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह विधान केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि मुस्लिम एवं सिख धर्म में भी देखने को मिलता है. गुरुद्वारों, मस्जिदों और दरगाहों में तो सर पर बिना कपड़ा बांधे आप प्रवेश भी नहीं कर सकते, और यह नियम केवल स्त्रियों में ही नहीं, बल्कि पुरुषों के लिए भी उतना ही मान्य है. क्या यह ईश्वर के प्रति सम्मान दर्शाने का प्रतीक है? या कुछ और? आइये जानें इस संबंध में विस्तार से...
धार्मिक पहलू
* सिर पर रूमाल अथवा कपड़े आदि रखने के संदर्भ में पंडित शिवम पाण्डेय बताते हैं, मंदिर में अथवा धार्मिक कर्मकांडों के समय स्त्री-पुरुष दोनों के सर पर रूमाल अथवा आंचल (स्त्रियों के लिए) रखना कई कारणों से आवश्यक होता है. जिस तरह घर की बहु अपनों से बड़ों के सामने जाने से पूर्व सर पर आंचल रखकर उसे सम्मान देती है, उसी तरह पूजा-पाठ के समय स्त्री एवं पुरुष दोनों सिर पर आंचल एवं रुमाल रखकर ईश्वर के प्रति सम्मान दर्शाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर यानी बालों के जरिये नकारात्मक शक्तियां हमें अपनी ओर खींचती हैं, जबकि बालों को ढंकने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं.
* सिर को ढकने के पीछे विद्वान एक तर्क यह भी देते हैं, कि पूजा में रखी पवित्र सामग्रियों एवं प्रसाद आदि में सर के बाल न गिरें, क्योंकि बालों को अशुद्ध माना जाता है, और प्रसाद आदि में बाल गिरने से वह अशुद्ध हो सकता है, और भगवान अशुद्ध पूजा सामग्री स्वीकारते नहीं हैं.
* गरुड़ पुराण के अनुसार पूजा करते समय जातक ईश्वर की पूजा एकाग्रता से कर पाता है. खुले बालों के साथ पूजा करने से मन इधर-उधर भटक सकता है.
* हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा में काले रंगों का इस्तेमाल वर्जित होता है, क्योंकि काला रंग (काले बाल) नकारात्मकता का प्रतीक होते हैं. बाल खुले होने के कारण पूजा करते समय नकारात्मक शक्तियां मानसिक रूप से परेशान करती हैं, इसलिए इससे बचने के लिए पूजा के समय सिर को ढक कर रखना चाहिए.
वैज्ञानिक पहलू
* वैज्ञानिक धारणाओं के अनुसार आकाशीय विद्युत तरंगें खुले सर पर प्रत्यक्ष प्रभावित करती हैं. इस वजह से व्यक्ति विशेष को क्रोध, सिर दर्द, तनाव, आंखों में परेशानी आदि समस्याएं हो सकती है.
* एक अन्य तर्क के अनुसार बालों में चुंबकीय शक्ति होती है, इसलिए वातावरण में व्याप्त कीटाणु आसानी से बालों के संपर्क में आते हैं और पूरे शरीर को रोग ग्रस्त बनाते हैं. यही वजह है कि ऑपरेशन करते समय इलाज करने वाले चिकित्सक अपने सर को कपड़े से ढक कर रखते हैं.
* हवन करते समय भी सर पर पल्लू अथवा रूमाल (पुरुषों के लिए) आवश्यक रूप से रखा जाता है. इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि सर ढक कर हवन में बैठने से आग की लपटों से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है.