क्या होता है कलावा अथवा मौली? जानें इसकी दिव्य शक्ति, महत्व एवं नियम! क्या यह विज्ञान सम्मत है?

लाल एवं पीले रंगों में कच्चे सूत से बने कलावे को रक्षा-सूत्र, कलाई नारा अथवा मौली के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में आमतौर पर घरों में विशिष्ट धार्मिक कर्मकाण्डों अथवा सत्यनारायण की पूजा आदि के समय पुरोहित से कलावा बंधवाने की परंपरा है. मान्यता है कि इसे बांधने से आपकी रक्षा और दुश्मनों पर विजय प्राप्ति होती है.

Kalava or Molly (Photo Credits: twitter)

लाल एवं पीले रंगों में कच्चे सूत से बने कलावे को रक्षा-सूत्र, कलाई नारा अथवा मौली के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म में आमतौर पर घरों में विशिष्ट धार्मिक कर्मकाण्डों अथवा सत्यनारायण की पूजा आदि के समय पुरोहित से कलावा बंधवाने की परंपरा है. मान्यता है कि इसे बांधने से आपकी रक्षा और दुश्मनों पर विजय प्राप्ति होती है. कलाई में मौली बांधने के धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी हैं. आइये जानते हैं कि पूजा के दरम्यान बांधा जाने वाला यह मौली किन-किन तरह से आपको लाभ पहुंचा सकता है और इसे बांधने के क्या नियम एवं मंत्र आदि हैं, तथा कब इसे उतारना चाहिए.

पौराणिक महत्व

सनातन धर्म के अनुसार अभिमंत्रित कलावा में कई दैवीय शक्तियां व्याप्त होती हैं, जो व्यक्ति को तमाम समस्याओं, नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरी शक्तियों से बचाती हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवी लक्ष्मी ने पहली बार राजा बलि को अपना भाई बनाकर उनकी रक्षा स्वरूप उनकी कलाई में कलावा बांधा था. मान्यता है कि कलाई पर बंधे कलावे वाले व्यक्ति की त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश रक्षा करते हैं और उन पर शक्ति की प्रतीक तीन देवियां पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती की भी विशेष कृपा होती है.

वेदों में उल्लेखित है कि जब इंद्र व्रतासुर नामक दैत्य से युद्ध के लिए जा रहे थे, तब इंद्राणी शची ने उनकी दाहिनी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था, और इसके बाद व्रतासुर का संहार कर सुरक्षित इंद्र वापस आये थे.

इसका वैज्ञानिक महत्व

धार्मिक अनुष्ठानों के दरम्यान कलाई पर बांधे जाने वाले लाल-पीले धागों के कुछ वैज्ञानिक महत्व भी बताये गये हैं. दरअसल शरीर की कुछ प्रमुख नसें व्यक्ति की कलाई से होते हुए सीधा ह्रदय से जुड़ती हैं, आपकी कलाई में बंधा कलावा इन नसों के संपर्क में रहते हुए उस पर नियंत्रण रखता है. कलाई पर कलावा अथवा मौली बांधने से व्यक्ति की मधुमेह, रक्तचाप, पक्षाघात और ह्रदय रोग जैसी समस्याएं नियंत्रण में रहती हैं. यह भी पढ़ें : Devika Rani’s Birth Anniversary 2022: अशोक कुमार, दिलीप कुमार और मधुबाला को स्टारडम देनेवाली देविका रानी की खुद की जिंदगी ज्वारा-भाटा सी क्यों रही? जानें उनके जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलू!

कलावा बांधने के लिए नियम एवं मंत्र

ज्योतिषियों के अनुसार पुरुष एवं अविवाहित महिलाओं को दाईं और विवाहित महिलाओं को बाईं कलाई में तीन बार कलावा लपेट कर बांधा जाता है. कलावा बंधवाते समय मुट्ठी बंद होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए, जबकि महिलाओं को सिर पर आंचल अथवा दुपट्टा होना चाहिए. कलावा बांधते समय निम्न मंत्र का जाप करने से ही कलावा का पूरा लाभ प्राप्त होता है. मंत्र इस प्रकार है

'येन बढ़ो बलि राजा, दानवेंद्रो महाबलः, दस ट्वान मनुबधनमी, रक्षामाचल मचाल'।

कलावा निकालने के नियम

हिंदू शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक अमावस्या के दिन पुराने कलावे को निकाल देना चाहिए. इसके अलावा ग्रहण काल समाप्त होने के बाद भी कलावा को बदलना आवश्यक होता है. ग्रहण काल में सूतक के बाद कलावा अशुद्ध माना जाता है, और इसकी शक्ति क्षीण अथवा खत्म हो जाती है. उतारे हुए कलावे को कूड़ा-करकट में फेंकने के बजाय जल में प्रवाहित करना चाहिए या पीपल के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए.

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