Dwijapriya Sankashti Chaturthi 2024: क्या है द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी? जानें इसका आध्यात्मिक महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-विधि इत्यादि!
हिंदू धर्म शास्त्रों में संकष्टी चतुर्थी का अलग-अलग महत्व बताया गया है, लेकिन ज्योतिषियों के अनुसार फाल्गुन मास की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी, का विशेष महत्व है. इस दिन गणेशजी की विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान किये जाएं तो जातक के जीवन की सारी बाधाएं एवं पाप मिट जाते हैं.
हिंदू धर्म शास्त्रों में संकष्टी चतुर्थी का अलग-अलग महत्व बताया गया है, लेकिन ज्योतिषियों के अनुसार फाल्गुन मास की द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी, का विशेष महत्व है. इस दिन गणेशजी की विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान किये जाएं तो जातक के जीवन की सारी बाधाएं एवं पाप मिट जाते हैं. जरूरतमंदों को संतान, अच्छी नौकरी, एवं व्यवसाय में भारी सफलता प्राप्त होती है. आइये जानते हैं, इस वर्ष 2024 में फाल्गुन मास संकष्टी 27 फरवरी को मनाई जाएगी या 28 फरवरी 2024 को, साथ ही जानेंगें, इस व्रत के आध्यात्मिक महत्व एवं पूजा-व्रत आदि के क्या नियम हैं.
संकष्टी चतुर्थी तिथि और शुभ मुहूर्त
फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 01.53 AM (28 फरवरी 2024, बुधवार)
फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्तः 04.18 AM (28 फरवरी 2024, गुरूवार)
उदयातिथि के 28 फरवरी 2024 को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा करना होगा.
फाल्गुन द्विजप्रिय संकष्टी आध्यात्मिक का महत्व
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी गणेश भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. फाल्गुन मास संकष्टी चतुर्थी, जिसे द्विजप्रिय संकष्टी भी कहते हैं, इस दिन दिन भगवान गणेश के 32 स्वरूपों में से छठे स्वरूप एवं भगवान शिव और देवी पार्वती की षौडशोपचार विधि से पूजा की जाती है. गौरतलब है कि गणपति के इस छठे स्वरूप की पूजा और गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त करना अत्यधिक शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इस अवसर पर विवाह, सगाई, मुंडन अथवा गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य किये जाते हैं.
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
फाल्गुन संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-दान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान गणेशजी का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके बाद पूरे घर एवं विशेषकर मंदिर में स्थिति देवी-देवताओं पर गंगाजल का छिड़काव करें. अब एक चौकी पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाकर गणेशजी, भगवान शिव एवं माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें. अब धूप दीप प्रज्वलित करें, एवं निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा जारी रखें.
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति. करो दूर क्लेश ।।
गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठों के साथ लाल पुष्प, लाल चंदन, रोली, सिंदूर, पान, सुपारी, जनेऊ अर्पित करें. प्रसाद मोदक अथवा लड्डू चढ़ाए. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें. अब गणेश चालीसा का पाठ करें. अंत में लोगों को प्रसाद वितरित करें.