Vishwakarma Puja 2019: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना गया है. इसीलिए उन्हें ब्रह्माण्ड का पहला इंजीनियर एवं वास्तुकार की उपाधि दी गई है. कहा जाता है कि उन्होंने ही त्रेता युग में सोने की लंका, द्वापर युग में द्वारिका नगरी, देवताओं के स्वर्ग और पुष्पक विमान का निर्माण किया था. इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर मंगलवार के दिन यानी आज मनाई जा रही है. आइए जानते हैं, कि भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर उनकी पूजा-अर्चना कैसे और किस मुहूर्त पर करें.
शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म माघ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था, इसलिए कुछ पुराणों में उन्हें भगवान शिव का अवतार भी बताया गया है. भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार और इंजीनियर माना जाता है. इसके पीछे तर्क यही है कि वेदकाल में जितनी भी अद्भुत वस्तुओं का निर्माण हुआ, उसके सृजनकर्ता भगवान विश्वकर्मा ही थे, जितने भी अस्त्र-शस्त्र थे, उनकी उपयोगिता, उसकी शक्ति और उसकी क्षमता का पूर्व आकलन कर उसका भी निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था.
सनातन धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा जी ने ही देवी-देवताओं के लिए दिव्य एवं अद्भुत महल, इंद्र के लिए अलौकिक स्वर्ग और देवी-देवताओं के लिए अमोघ कहे जाने वाले शस्त्रों, जिसमें भगवान विष्णु जी का सुदर्शन चक्र, शिवजी का त्रिशूल, कर्ण का कुण्डल, इंद्र का वज्र इत्यादि का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था. इसीलिए उन्हें दुनिया का पहला इंजीनियर कहा जाता है.
भगवान विश्वकर्मा की जयंती के अवसर पर मुख्यतया कल-कारखानों की पूजा की जाती है. कारोबारी और व्यवसायी इनकी पूजा पूरी शिद्दत एवं श्रद्धा से करते हैं. वह अपने महलों, दुकानों एवं दफ्तरों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना इसीलिए करवाते हैं, ताकि उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे. भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा से पहले हम ये जान लें कि दुनिया का यह पहला इंजीनियर कौन था.
कौन थे विश्वकर्मा
मान्यतानुसार श्री हरि की नाभि से निकले कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई. ब्रह्मा जी जिन्होंने सृष्टि का निर्माण किया, प्रकृति को सौंदर्य प्रदान किया. उन्हीं के पुत्र थे धर्म और धर्म की सातवीं संतान वास्तु हैं. माना जाता है कि वास्तु देव की पत्नी अंगिरसी की संतान थे विश्वकर्मा.
विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त
संक्रांति समय 07:02 सुबह
कैसे करें विश्वकर्मा जी की पूजा
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर विश्वकर्मा जी का ध्यान करें. इसके पश्चात घर की मशीनरी वस्तुओं की अच्छे से सफाई करें. पूजा स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा अथवा तस्वीर लगाएं. पूजा शुरू करने से पूर्व अक्षत अर्थात चावल, पीला अथवा सफेद फूल, मिठाई, फल रोली, सुपारी, धूप, दीप, रक्षा सूत्र, मेज, दही इत्यादि की व्यवस्था कर लें. अब अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाकर भगवान विश्वकर्मा को रोली का तिलक लगाकर पीले या सफेद रंग के फूल चढ़ाएं, उनके सामने सुगंधित धूप एवं दीप प्रज्जवलित करें. फिर सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ कहें- हे विश्वकर्मा जी आइए, मेरी पूजा स्वीकार कीजिए. अंत में आरती उतारें. इस दिन घर में रखे प्रत्येक औजारों, गाड़ियों, मशीनरी चीजों आदि की पूजा करने का भी विधान है. दफ्तर या कल कारखानों में लगी मशीनों की पूजा कर प्रसाद वितरण करें.
बढ़ गया है विश्वकर्मा पूजा का महत्व
भगवान विश्वकर्मा की पूजा मुख्यतया उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती. कारीगरों की आस्था है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से सभी मशीनें जल्दी खराब नहीं होती, सुचारु तरीके से काम करती हैं और किसी का जीवन जोखिम में नहीं पड़ने देते.
बढ़ती मशीनरी, कल-पुर्जों की उपयोगिताओं के कारण वर्तमान में विश्वकर्मा जी पूजा का महत्व बढ़ता जा रहा है. पहले सिर्फ शिल्पकार ही इनकी पूजा करते थे, अब जब घर-घर छोटे-मोटे मशीनरी का उपयोग होने लगा है तो अधिकांश लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा बड़ी शिद्दत से करने लगे हैं.