Vallabh Acharya Jayanti 2024: कब है श्री वल्लभाचार्य जयंती? जानें कैसे बनें वह श्रीवल्लभ से श्री वल्लभाचार्य?
Vallabh Acharya Jayanti

वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी यानी वरुथिनी एकादशी के दिन ही श्री वल्लभाचार्य की जयंती भी मनाई जाती है. श्री वल्लभाचार्य जी भारतीय दार्शनिक थे. उन्होंने ब्रज में श्रीकृष्ण घोषणा समझौते और वैष्णववाद के अद्वैत दर्शन की स्थापना की थी. मान्यता है कि श्री वल्लभाचार्य ने गोवर्धन पर्वत पर भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात दर्शन किये थे, इसलिए उपासक वल्लभाचार्य जयंती भव्य उत्सव के रूप में मनाते हैं. कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि वल्लभाचार्य एकमात्र ऐसे संत थे, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने श्रीनाथजी के रूप में दर्शन दिया था. श्री वल्लभाचार्य जी की जयंती के अवसर पर मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. आइये जानते हैं श्री वल्लभाचार्य की 545वीं जयंती (4 मई 2024) पर उनसे संबंधित कुछ रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियां...

श्री वल्लभाचार्य जयंती का महत्व

श्री वल्लभाचार्य द्वारा श्रीकृष्ण के श्रीनाथ स्वरूप की पूजा की शुरुआत हुई थी, इसलिए श्रीनाथ जी के मंदिरों में इस दिन भव्य उत्सव मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी वल्लभाचार्य जयंती बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं. इस दिन तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, समेत पूरे महाराष्ट्र के श्रीनाथ जी के मंदिरों में बड़ी भक्ति भाव एवं विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है, यहां भारी संख्या में भक्त उपस्थित होते हैं. यह भी पढ़ें : International Workers’ Day 2024 Messages: श्रमिक दिवस की हार्दिक बधाई! शेयर करें ये हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings और SMS

कौन हैं श्री वल्लभाचार्य?

पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक श्री वल्लभाचार्य का जन्म साल 1479 में दक्षिण भारत के कांकरवाल ग्राम (वर्तमान में छत्तीस के चंपारण), में एक तैलंग ब्राह्मण परिवार में माँ इल्ला गारू के गर्भ से हुआ था, पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था, कहा जाता है कि उनका जन्म इल्ला गारू के गर्भ से अष्टम में हुआ था. उन्हें मृत समझकर माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया. बाद में श्रीनाथ जी ने स्वप्न में माता इल्ला गारो को दर्शन दिया, और सारी बातें बताई, और कहा कि वह जीवित हैं. माता-पिता उनके बताई जगह लेने जब पहुंचे. तो उन्होंने उन्हें एक अग्निकुंज के पास अंगूठा चूसते देखा. अग्निकुंड के इर्द-गिर्द 7 औघड़ साधु बैठे थे. उन्होंने उन्होंने शिशु को अग्निकुंड से निकाला. इसलिए उन्हें अग्नि-अवतार भी कहते हैं. चंपारण आज भी पुष्टिमार्गीय साधना का स्थल माना जाता है. वह श्रीकृष्ण के परब्रह्म स्वरूप को स्वीकारते हैं. उनके लोक को विष्णु लोक से ऊपर बताते हैं.

श्री वल्लभ कैसे बनें श्री वल्लभाचार्य?

एक बार विजयनगर में श्री वल्लभ ने माधव और वैष्णवों के बीच की बहस में शामिल होने का फैसला किया. बहस का विषय था, ‘ईश्वर द्वैतवादी है या गैर द्वैतवादी’? 11 साल की छोटी उम्र में, वल्लभ ने राजा कृष्ण देवराय के सामने अपनी राय और विचारों का प्रतिनिधित्व किया. 27 दिनों तक चली निरंतर बहस के बाद, राजा राजा कृष्णदेव राय ने श्रीवल्लभ को कनक अभिषेक कर सम्मानित किया. इसके बाद ही उन्हें उन्हें आचार्य ’और जगद्गुरु’ का नाम मिला. राजा ने युवा श्री वल्लभ को 100 मन सोने के वजन के बर्तन भेंट किये, लेकिन श्री वल्लभाचार्य ने इंकार करते हुए अनुरोध किया कि उन्हें गरीबों को बांट दिया जाये.

श्री वल्लभाचार्य ने ली जल समाधि

1530 में, श्री वल्लभाचार्य ने त्याग की प्रतिज्ञा लेने के पश्चात काशी स्थित गंगा नदी तट पर हनुमान घाट चले गए. एक महीने के बाद, उन्होंने अपने बेटों गोपीनाथ और विट्ठलनाथ को बुलाया और 18 या 19 साल के गोपीनाथ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया. कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में उन्होंने गंगा जी में जल समाधि ले ली.