Ugadi 2023: कब और कैसे मनाते हैं उगादी पर्व? जानें इस महापर्व के बारे में कुछ रोचक जानकारियां!
pooja ki thali (Photo Credit : pti )

उगादी एक तेलुगू पर्व है, जिसे संपूर्ण दक्षिण भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को पड़ता है. दक्षिण भारत में इसे हिंदू नववर्ष के आगमन की ख़ुशी में सेलिब्रेट किया जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. उदाहरण के लिए कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश एवं कोंकणी समुदाय के लोग इसे युगादी, तमिलनाडु में उगादी, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, गोवा में संवत्सर पड़वा, राजस्थान में थापना, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में साजिबु नोंगमा पांबा या मेइतेइ चेइरोबा के नाम से मनाते हैं. संस्कृत में इसका अर्थ है नये युग का आरंभ. मान्यता अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी. यह पर्व पूरे भारत में अपनी-अपनी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया जाता है. उत्तर भारत में इस दिन से चैत्र नवरात्रि का पर्व शुरू होता है.

उगादी पर्व का महत्व

धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन विष्णु जी ने पृथ्वी पर मत्स्यवतार रूप में जन्म लिया था. इसलिए इस दिन विष्णु जी की परंपरागत तरीके पूजा की जाती है. आंध्रप्रदेश में इस दिन ब्रह्माजी की पूजा होती है. यह दिन बहुत शुभ होता है, इसलिए इस दिन बहुत से व्यवसायी अपनी नये दुकान की शुरुआत करते हैं. नये व्यवसाय के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है. लोग अपने-अपने घरों की साज-सज्जा करते हैं. इस दिन लोग सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्ति होने के बाद नये वस्त्र पहनते हैं. मुख्यद्वार को आम्र पल्लव एवं फूलों से बना तोरण लगाते हैं. घर के चौखट एवं आंगन में रंगोली सजाते हैं. आम्र पल्लव का तोरण इसीलिए लगाते हैं, क्योंकि भगवान शिव के पुत्रों भगवान कार्तिकेय एवं गणेश जी को आम्र-पल्लव बहुत पसंद है. मान्यता अनुसार इससे घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है. घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करने पाती. यह भी पढ़ें : Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि के पहले दिन इस शुभ मुहूर्त में करें कलश-स्थापना एवं प्रज्वलित करें अखंड-दीप! जानें इसका महात्म्य!

उगादी का मुहूर्त

तेलुगु संवत्सर 2080 शुरू

प्रतिपदा आरंभः 22.55 PM (21 मार्च, 2023) से

प्रतिपदा समाप्तः 20.23 PM (22 मार्च, 2023) तक

पूजा विधि

सुबह स्नान आदि के पश्चात घर के मुख्यद्वार एवं आंगन (अगर है तो) को गाय के गोबर लीपकर वहां रंगोली बनाते हैं. इस अवसर पर घर के मंदिर को केले के पत्तों एवं फूलों से सजाते-संवारते हैं. इसके बाद घर के सभी सदस्य मिलकर अपने ईष्ट देव की पूजा एवं मंगल कामना करते हैं. पूजा के पश्चात सभी लोग एक दूसरे को उगादि की शुभकामनाएं देते हैं, और सभी लोग इस दिन विशेष रूप से बनाये पारंपरिक भोजन का आनंद लेते हैं.

हर घर में बनता है पचड़ी काढ़ा

इस पर्व पर दक्षिण भारतवासियों के घर में तमाम तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं, लेकिन एक पेय पदार्थ विशेष रूप से तैयार किया जाता है. एक मिट्टी के बर्तन में नीम के फूल, नारियल, गुड़, इमली, कच्चा आम. नमक एवं मिर्च मिलाकर एक विशेष प्रकार का काढ़ा बनाया जाता है, जिसे पचडी  कहते हैं. पूजा के पश्चात सर्वप्रथम यह काढ़ा पिलाया जाता है. बहुत से लोग इसे आस-पड़ोस में भी बांटते हैं. माना जाता है कि इस काढ़ा को पीने से ऋतु परिवर्तन में होने वाली बीमारियों की संभावनाएं खत्म हो जाती है. यह काढ़ा हमारी रोग-प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है. लेकिन इस काढ़े में प्रयुक्त वस्तुओं का हमारी भावनाओं के साथ गहरा संबंध होता है. जिसका जिक्र नीचे किया गया है.

सामग्री                स्वाद         संवेदना

नीम फूल              कड़वा      उदासी

गुड़                   मीठा         ख़ुशी

मिर्च                  तीखा        क्रोध

नमक                 नमकीन       भय

इमली का रस         खट्टा         घृणा

कच्चा आम           तेज़ स्वाद    आश्चर्य

कर्नाटक के लोग इसका सेवन बेवू बेल्ला के रूप में करते हैं. उगादी पचडी इस दिन प्रसाद के रूप में खाई जाती है. युगादी पर्व पर सबसे पहले लोग उगादी पच्छाड़ी का ही सेवन करते हैं.  इसके बाद अन्य व्यंजनों मसलन ओंबट्टू, पूरन पोली एवं होलिगे खाते हैं.

उगादी का सेलिब्रेशन!

उगादी के दिन लोग करीब स्थित मंदिर के परिसर में एकत्र होते हैं. यहां मंदिर के ब्राह्मण अथवा घर के बुजुर्ग लोग सभी को साल के नये पंचांग के बारे में एवं उसमें प्रकाशित राशिफल सुनाते हैं. बहुत सी जगहों पर पूजा के बाद कवि-सम्मेलनों का आयोजन भी होता है. बहुत सी जगहों पर इस दिन नायाब कला अष्टावधानम्, षठावधानम्, और सहस्रावधानम् का प्रदर्शन करते हैं.