Teej Sindhara 2024: तीज से एक दिन पहले मनाया जाता है सिंजारा! जानें इसका महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-परंपरा इत्यादि के बारे में!

राजस्थान के महत्वपूर्ण पर्वों में एक है सिंजारा, जिसे धमोली भी कहते हैं. तीज से एक दिन पूर्व मनाए जाने वाले इस पर्व को विवाहित महिलाएं बहुत खास तरीके से मनाती हैं. इस दिन घरों में महिलाएं विशेष किस्म के व्यंजन पूरी, गट्टे एवं आलू की सब्जियां, कबूली (चावल की नमकीन) बनाती हैं. इस पूरे दिन महिलाएं सिर्फ पानी पीकर उपवास रखती हैं.

Teej Sindhara 2024 (img: file)

राजस्थान के महत्वपूर्ण पर्वों में एक है सिंजारा, जिसे धमोली भी कहते हैं. तीज से एक दिन पूर्व मनाए जाने वाले इस पर्व को विवाहित महिलाएं बहुत खास तरीके से मनाती हैं. इस दिन घरों में महिलाएं विशेष किस्म के व्यंजन पूरी, गट्टे एवं आलू की सब्जियां, कबूली (चावल की नमकीन) बनाती हैं. इस पूरे दिन महिलाएं सिर्फ पानी पीकर उपवास रखती हैं.

क्या है सिंजारा और इसकी परंपरा

सिंजारा का दिन सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. सिंजारा के रूप में मिठाई और श्रृंगार का सामान दिया जाता है. यदि बेटी ससुराल में है तो सिंजारा उसके मायके से भेजा जाता है और बहू मायके में है तो सिंजारा ससुराल से आता है. सिंजारा के साथ आई मेहंदी महिलाएं अपने हाथों में रचाती हैं और फिर अगले दिन हरियाली तीज का व्रत रखती हैं. यह भी पढ़ें : World mosquito Day 2024: कब और क्यों मनाते हैं विश्व मच्छर दिवस? जानें इसका इतिहास, महत्व एवं मच्छर जनित बीमारियां!

'सिंजारा' सामग्री की सूची

सिंजारा की सुहाग की चीजों में निम्न वस्तुएं रखी जाती हैं.

हरी चूड़ी, काजल, मेहंदी, नथ, बिंदी, सिंदूर, गजरा, सोने के आभूषण, मांग टीका, कमरबंद, बिछिया, पायल, झुमके, बाजूबंद, अंगूठी, कंघा आदि. वहीं मिठाई में घेवर, रसगुल्ला, खोये की बर्फी आदि भेजी जाती है. इसके साथ-साथ कपड़े भेजे जाते हैं.

सिंजारा मनाने की विधि

सिंजारा पर्व के अंतर्गत सूर्योदय से पूर्व तमाम किस्म की मिठाइयां, फल, सूखे मेवे और किस्म-किस्म के पकवानों का नाश्ता किया जाता है. इसके पश्चात दांतों की अच्छे से सफाई करते हैं. इसके बाद से व्रत का सिलसिला प्रारंभ होता है. व्रत की यह परंपरा काफी कुछ करवा चौथ की सरगी की तरह होती है. इसके पश्चात व्रती सो जाते हैं. अगली सुबह यानी तीज के दिन तीजणियां स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं. इसके पश्चात वे करीब के शिव-पार्वती के मंदिर जाती हैं. शिव-पार्वती की दर्शन-पूजा के पश्चात सोलह बार झूला झूलने का रस्म निभाती हैं.

संध्याकाल में तलाई पूजा के पश्चात सुहागन महिलाएं चंद्रमा का दर्शन कर जल अर्पित करती हैं, उनकी पूजा-अर्चना के पश्चात देवी पार्वती की पूजा करती हैं. इसके पश्चात सत्तू, मौसमी फल और फैदड आदि का सेवन कर व्रत का पारण करती हैं.

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