Tanaji Malusare Punyatithi 2024: जब तानाजी ने ‘शहादत’ देकर शिवाजी की ‘ख्वाहिश’ पूरी की! जानें तानाजी की शौर्य गाथा!
पुणे स्थित कोंढाणा किला आज भी तानाजी मालुसरे के शौर्य की स्मृतियों को ताजा करता है. गौरतलब है कि कोंढाणा स्थित यह किला और इसके आसपास के क्षेत्र को जिसे सूबेदार तानाजी ने मुगलों से युद्ध कर जीता था.
पुणे स्थित कोंढाणा किला आज भी तानाजी मालुसरे के शौर्य की स्मृतियों को ताजा करता है. गौरतलब है कि कोंढाणा स्थित यह किला और इसके आसपास के क्षेत्र को जिसे सूबेदार तानाजी ने मुगलों से युद्ध कर जीता था. इसके पश्चात छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने मित्र सूबेदार की स्मृति में कोंढाणा किले का नाम बदलकर‘सिंहगढ़’रखा था.
मराठा इतिहास के पन्नों में अनगिनत योद्धाओं के नाम दर्ज हैं, जिनके शौर्य की चर्चाएं आज भी होती रहती है. छत्रपति शिवाजी की वीरगाथाएं तो जगचर्चित हैं, लेकिन उनकी सेना में भी ऐसे कई वीर थे, जिन्होंने अपने महाराज एवं स्वराज्य के लिए अपने प्राणों की बलि दी. ऐसे ही ही बलशाली योद्धा थे तानाजी मालुसरे, जिन्होंने कोंढाणा (आज का सिंहगढ़) के युद्ध में अपने प्राणों की बलि दी. आइये जाने क्या थी वह शौर्यगाथा
सिंहगढ़ विजय की प्रस्तावना
साल 1670 में दिल्ली में मुगल बादशाह औरंगजेब का परचम लहरा रहा था. वस्तुतः 1665 में मुगल साम्राज्य और शिवाजी के बीच पुरंदर संधि के तहत कोंडा किला औरंगजेब को मिला था, लेकिन इस किले के साथ ही 23 और दूसरे किले भी मुगलों को मिल गए थे. शिवाजी को यह समझौता खटक रहा था. वे इसे किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहते थे. 1670 में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस किले की देखरेख औरंगजेब के विश्वस्त सेनापति उदयभान राठौड़ कर रहे थे. जनवरी 1670 में तानाजी अपने बेटे के विवाह की तैयारी कर रहे थे. वह विवाह का न्योता देने जब शिवाजी के पास पहुंचे तो उन्हें पता चला कि शिवाजी सिंहगढ़ विजय की रणनीति बना रहे हैं. शिवाजी और तानाजी के बीच विचार-विमर्श के बीच तय हुआ कि तानाजी मालुसरे अपने पुत्र की शादी के बाद पहले सिंहगढ़ किला जीतने की कोशिश की जाएगी, लेकिन तानाजी मालुसरे अपने भाई सूर्या मालुसरे के साथ सिंहगढ़ विजय के लिए निकल पड़े. चूंकि सिंहगढ़ का किला पहाड़ियों पर सीधी चढ़ाई पर स्थित था, इसलिए मुगल सैनिकों को चकमा देकर आगे बढ़ना आसान नहीं था. यह भी पढ़ें : Indian Coast Guard Day 2024 Messages: हैप्पी इंडियन कोस्ट गार्ड डे! शेयर करें ये हिंदी Slogans, WhatsApp Wishes, GIF Greetings और Photo SMS
किला तो मिला मगर हमारा शेर चला गया
तानाजी अपने सैनिकों के साथ रात के समय किले पर चढ़ाई करने लगे. तानाजी अपने भाई के साथ किले के मुख्य द्वार पर पहुंचकर मुख्य दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगे. इसी बीच तानाजी के कुछ सैनिक किले के अंदर घुसकर मुख्य द्वार खोल दिया. तब तक उदयभान को तानाजी के हमले की खबर मिल गई. दोनों तरफ से भयंकर युद्ध छिड़ गया. तानाजी युद्ध में बुरी तरह घायल हो गये. 04 फरवरी 1670 को उन्होंने किले पर कब्जा तो कर लिया, लेकिन वह स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गये. तानाजी ने मरते-मरते शिवाजी की ख्वाहिश पूरी कर दी. शिवाजी को जब यह खबर मिली तो उनके निधन से शिवाजी ने अत्यंत भावुक शब्दों में कहा था, ‘गड आला पण सिंह गेला’ (किला तो मिला, मगर शेर चला गया). शिवाजी ने तानाजी की तुलना शेर से की थी. तानाशाह मालुसरे की वीरता से प्रभावित होकर छत्रपति शिवाजी ने कोंढाणा किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया था, और आज भी उसे उसी नाम से पुकारा जाता है.
किला तो मिला, मगर हमारा शेर चला गया
सिंहगढ़ का युद्ध तानाजी मालुसरे की शहादत के रूप में जाना जाता है. इस युद्ध में 4 फरवरी 1670 को तानाजी मालुसरे शहीद हो गये. बता दें कि तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र एवं मराठा सेना के वफादार सरदार और सेना में जनरल थे. तानाजी का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था.