Spiritual Story and Legends of Holi 2024: होलिका-दहन से लेकर रंगों की होली तक से जुड़ी कुछ पौराणिक किंवदंतियों की गाथा!
सनातन धर्म के अन्य धार्मिक महापर्वों की तरह होली का पर्व भी बुराई पर अच्छाई की जीत स्वरूप मनाया जाता है. फिर बात चाहे होलिका-दहन की हो अथवा रंग और अबीर की मस्ती भरी होली की हो. आज देश ही नहीं दुनिया भर में होली बड़े पारंपरिक तरीके से सद्भावना एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है.
सनातन धर्म के अन्य धार्मिक महापर्वों की तरह होली का पर्व भी बुराई पर अच्छाई की जीत स्वरूप मनाया जाता है. फिर बात चाहे होलिका-दहन की हो अथवा रंग और अबीर की मस्ती भरी होली की हो. आज देश ही नहीं दुनिया भर में होली बड़े पारंपरिक तरीके से सद्भावना एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है. होलिका-दहन अथवा होली को आध्यात्मिक पर्व इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन श्रीहरि के भक्त प्रहलाद की रक्षार्थ भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था, तथा रंगों की होली का पर्व भगवान श्रीकृष्ण एवं राधा के प्रेम प्रसंगों की स्मृतियों को ताजा करता है. होली के इस महापर्व पर आइये जानते हैं, इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथाओं एवं किंवदंतियों के बारे में..
विष्णु का नृसिंह अवतार
होली की शुरुआत एरच (झांसी) से हुई थी, जो हिरण्यकश्यप की राजधानी थी. राक्षस हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था, कि वह न दिन में मरेगा, न रात में, न घर में ना बाहर, न जमीन पर ना आसमान पर. न उसे मनुष्य मार सकेगा, ना पशु. अहंकारवश उसने जनता से उसी की पूजा का आदेश दिया. हिरण्यकश्यप-पुत्र प्रहलाद विष्णु-भक्त होने के नाते इंकार कर दिया. क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उसे डिकोली पर्वत से नीचे फेंक दिया, इसका उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण में किया गया है. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका, जिसके पास अग्निरोधक दिव्य चुनरी थी, से कहा कि वह प्रहलाद को जलाकर मार दे. हरि-कृपा से चुनरी उड़ गई, होलिका मर गई और प्रहलाद जीवित बच गया. गोधूलि बेला में श्री हरि ने नृसिंह अवतार लेकर घर की दहलीज पर हिरण्यकश्यप को गोद में लेकर उसका पेट फाड़ दिया. तभी से होलिका-दहन मनाया जाता है. यह भी पढ़ें : Holi 2024 Wishes: होली के इन शानदार हिंदी Quotes, WhatsApp Messages, GIF Greetings को भेजकर दोस्तों-रिश्तेदारों को दें शुभकामनाएं
किशोर कृष्ण की छेड़छाड़ जब उत्सव (होली) बन गया.
होली से जुड़ी एक अन्य किंवदंती के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पूरे बृज में अपनी चंचल हरकतों के लिए मशहूर थे. खेल-खेल में वह अक्सर गांव की गोपियों पर कभी पानी, कभी रंगीन पाउडर (अबीर-गुलाल) तो कभी रंग मिले पानी फेंक कर उन्हें रंगों से सराबोर कर देते थे. किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते कृष्ण-राधा के प्रेम का प्रतीक भी होली बना. धीरे-धीरे यह एक उत्सव का रूप में संपूर्ण भारत में फैलता चला गया, जिसे कालांतर में होली का नाम दिया गया. मस्ती भरे उत्सव का यह स्वरूप लोगों को इतना पसंद आया कि हर कोई होली के इस रंग में रंगने के लिए मचल उठा.
राधा के प्रति ईर्ष्या का प्रतीक
होली का प्रसंग भगवान श्रीकृष्ण और उनकी प्रेमिका राधा से भी जुड़ा है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जिनका रंग सांवला था, राधा के गोरे रंग से वह अकसर ईर्ष्या करते थे. एक दिन अपने समान दिखने के लिए उन्होंने सोती हुई राधा को अपने रंग में रंग दिया. कहा जाता है कि तभी से रंगों का यह पर्व एकजुटता और समानता के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है.
इस तरह आपने देखा कि होली का संबंध किस तरह अधर्म पर धर्म की जीत, कृष्ण की बाल सुलभ मस्ती एवं राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक साबित हुआ.