सनातन धर्म में पूजनीय दशावतारों सोलह कलाओं वाले श्री हरि के आठवें अवतार हैं भगवान श्रीकृष्ण. बालगोपाल श्रीकृष्ण का जन्म संवत 3168 की भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त ब्रह्माण्ड को प्रेम, स्नेह और सहिष्णुता का संदेश दिया. उनकी हर लीलाओं में किसी न किसी रूप में प्रेम ही दृष्टिगत होता है. हमारे शास्त्रों में उन्हें परब्रह्म माना गया है.
घर-घर में कृष्णलला जन्म की धूम
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव वैष्णव समाज का अद्भुत एवं महान पर्व माना जाता है. भादों माह की अष्टमी की रात समूचे विश्व में जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. ऐसे में श्रीकृष्ण की जन्मभूमि संपूर्ण ब्रज मानों कृष्णमय हो जाता है. यहां के लगभग सभी कृष्ण मंदिर की छटा देखते बनती है. सर्वत्र भक्ति रस ही बरसता है. ब्रज में बालकृष्ण के प्रति जो वात्सल्य दिखाई देता है, उसकी अन्यंत्र कल्पना भी नहीं की जा सकती. घर-घर में उत्साह और हर्ष का जो माहौल नजर आता है, मानों हर घर में कृष्ण लला का आगमन होनेवाला हो.
मथुरा के प्रायः हर मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव से एक दिन पूर्व भाद्रपद कृष्णपक्ष की सप्तमी को सायंकाल में यशोदा महारानी का सीरा-पूड़ी व रसीले पदार्थों से भोग लगाया जाता है. बाललला के जन्म की खुशी में घर-आंगन से लेकर गली-मोहल्लों तक को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. घर-घर में तमाम पकवान बनते हैं.
नंद के आनंद भये, जय कन्हैया लाल की
भाद्रपद की अष्टमी को सूर्योदय से ही अधिकांश घरों में श्रीकृष्ण के आगमन की खुशी में उपवास रखा जाता है, कुछ लोग निर्जल उपवास भी रखते हैं. मंदिर हो या घर सभी जगहों पर कीर्तन-भजन चलते रहते हैं. सायंकाल के समय धनिया की पंजीरी और पंचामृत बनाया जाता है. रात्रि को जैसे ही बारह बजते हैं, शंख, घंटा, घड़ियाल आदि की गूंज से ब्रज ही नहीं संपूर्ण मथुरा मानों कृष्णमय हो जाता है. सभी भक्त अपने-अपने घरों में ठाकुर एवं विग्रहों का पंचामृत से अभिषेक करते हैं. कृष्णमय हुए भक्त श्रीकृष्ण को झूले पर झुलाते हुए गाते हैं,
नंद के आनंद भये, जय कन्हैया लाल की|
ज्वानन कूं हाथी-घोड़ा, बूढ़न कूं पालकी||
संपूर्ण ब्रज में दीपावली जैसी धूम
इसके साथ-साथ ब्रज के सभी मंदिरों में ठाकुर जी का नयनाभिराम श्रृंगार होता है. कहीं फूलों से तो कहीं स्वर्ण एवं चांदी के आभूषणों से. समूचे ब्रज में दीपावली जैसी जगमगाहट एवं धूम रहती है. मंदिरों से सोहर और बालकृष्ण संबंधित बधाई गान होता है. असंख्य श्रद्धालु प्रातःकाल से ही गोवर्धन पर्वत की परिक्रमाएं करना शुरू कर देते हैं. जगह-जगह श्रीमद्भागवत के उन अध्यायों की कथा होती है, जिनमें श्रीकृष्ण के जन्म लीला होती है.
सैकड़ों वर्षों पुरानी है नंदभवन में समाज गायन की परंपरा
कृष्ण जन्मोत्सव के उपलक्ष में पूर्णिमा से ही बरसाना के गोस्वामी समाज के लोग नंदभवन पहुंचने लगते हैं. पूर्णिमा से एकम तक रात्रि में समाज गायन का आयोजन किया जाता है. दूज से दोपहर में ‘आज बधायौ ब्रजराज के रानी जायौ मोहन पूत…’ पद से जन्म बधाइयों का गायन प्रारंभ हो जाता है. इस गायन में कृष्ण लल्ला के जन्म की बधाइयां गायी जाती हैं. समाज गायन के बाद बरसाना गोस्वामी समाज को लड्डू भेंट किये जाते हैं. रात्रि 10 बजे मंदिर परिसर में ढांढ पुरोहित नंदबाबा की वंशावली का बखान करते हैं. मध्यरात्रि में जन्म के पश्चात मंदिर में पंचामृत से बालगोपाल के श्रीविग्रह का गुप्त अभिषेक किया जाता है. यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है.