हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं एक शुक्लपक्ष में और दूसरा कृष्णपक्ष में. चूंकि प्रदोष व्रत 13वीं तारीख को पड़ता है, इसीलिए इसे त्रयोदशी व्रत भी कहा जाता है. यह त्रयोदशी जब शनिवार के दिन पड़ती है तो इसे शनि त्रयोदशी के नाम से मनाई जाती है. इस दिन सूर्यास्त के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है, लेकिन शनि प्रदोष की स्थिति में कर्म फल देने वाले शनिदेव की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है और उसका फल भी जातक को मिलता है. शनि त्रयोदशी मुख्यतः दक्षिण भारत में बड़ी धूमधाम एवं पुरानी रीति-रिवाजों के साथ मनाते हैं, आइये जानते हैं शनि त्रयोदशी का महात्म्य, पूजा विधि एवं अन्य जानकारियां...
शनि प्रदोष का महत्व!
शिव पुराण में उल्लेखित है कि भगवान शिव अपने नाम के अनुरूप भोले हैं, और बहुत जल्दी अपने भक्तों पर प्रसन्न हो जाते हैं. इसके लिए प्रदोष का दिन बहुत लाभकारी माना जाता है. मान्यता है कि शनि प्रदोष के दिन उपवास एवं शिव-पार्वती जी की पूजा-अनुष्ठान से जातक के सभी कष्ट एवं ग्रह-दोष खत्म हो जाते हैं. भगवान शिव की कृपा से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है. ज्योतिषियों का भी मानना है कि निसंतान दम्पत्ति को शनि प्रदोष का व्रत अवश्य रखना चाहिए. यह भी पढ़ें : International Womens Day 2023: ‘भारत-रत्न’ पाने में भी पीछे नहीं हैं देश की बेटियां, जानें इस प्रतिष्ठित अवार्ड से सम्मानित पांच महिलाएं!
शनि प्रदोष (फाल्गुन) तिथि एवं पूजा मुहूर्त
शनि प्रदोष प्रारंभः 10.13 AM (04 मार्च 2023)
शनि प्रदोष समाप्त 12.37 PM (05 मार्च 2023)
चूंकि यह पूजा प्रदोष काल में होती है, इसलिए यह पूजा 4 मार्च 2023 को की जायेगी.
पूजा का शुभ मुहूर्तः 06.35 PM से 08.54 PM (4 मार्च 2023)
रवि योगः शास्त्रों के अनुसार रवि योग में भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा करने से जातक को कई गुना ज्यादा लाभ प्राप्त होगा.
शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
शनि प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नानादि करके शिवजी एवं देवी पार्वती का ध्यान कर एक दीप प्रज्वलित करें, तथा व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. प्रदोष व्रत के दिन शिव-पार्वती की पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए. शुभ मुहूर्त काल में भगवान शिव एवं माता पार्वती की प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें, एवं निम्न मंत्र का जाप करें.
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्
अब शिवलिंग पर गाय का दूध, घी, शहद, दही और गंगाजल से बनें पंचामृत से शिवलिंग करें. इसके बाद शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करें और सफेद चंदन का लेप लगाकर बिल्व पत्र, मदार, पुष्प एवं भांग अर्पित करें. ध्यान रहे यह पूजा अनुष्ठान शाम 06.35 बजे से शाम 08.54 बजे के भीतर कर लेनी चाहिए.
शनि त्रयोदशी व्रत-अनुष्ठान के लाभ
ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार शनि त्रयोदशी का व्रत करने से कई तरह के शुभ फल प्राप्त होते हैं. शनि त्रयोदशी व्रत के दिन शिवजी के साथ देवी पार्वती की पूजा-अर्चना करने से मानसिक अशांति, भ्रम और चंद्र दोष से राहत मिलती है. नौकरी और व्यवसाय में तरक्की एवं पदोन्नति होती है. इसके साथ जातक दीर्घायु होता है, उसे शनि महाराज की कृपा प्राप्त होती है, साथ ही भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं. उनके आशीर्वाद से पुत्र प्राप्ति होती है, नकारात्मकता दूर होती है.