केरल के पहाड़ी स्थित सबरीमाला में मकरविलक्कू (Makaravilakku) के पर्व में शामिल होने के लिए हजारों की तादाद में श्रद्धालु ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करने यहां आते हैं. यहां प्रस्तुत है मकरविलक्कू के समय, इतिहास, महत्व, रीति-रिवाज के बारे में...
मकरविलक्कू केरल के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में एक माना जाता है, जिसका आयोजन हर वर्ष मकर संक्रांति उत्सव के दौरान प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में किया जाता है. मकरविलक्कू (प्रकाश या लौ) के अवसर पर भगवान अयप्पा के दर्शन करने के लिए यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. गौरतलब है कि ज्योति पोन्नाला मेडु शाम 6 बजे से रात 8 बजे के बीच आता है. इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु भगवान अयप्पा से आशीर्वाद मांगने यहां उपस्थित होते हैं. आज बात करेंगे दक्षिण भारत के इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझे जाने वाले पर्व मकरविलक्कू के सेलिब्रेशन के समय, इतिहास, महत्व, रीति-रिवाजों के बारे में...
पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर में मकरविलक्कू के इस उत्सव में थिरुवा भरणम (भगवान अय्यप्पा के पवित्र आभूषण) का दर्शन के लिए जुलूस के साथ यहां पहुंचते हैं. कहा जाता है कि इस उत्सव में प्रतिवर्ष करीब पांच लाख श्रद्धालु पूजा-अनुष्ठान एवं दर्शन के लिए सबरीमाला आते हैं. यह भी पढ़ें : Uttarayan 2023 Messages: उत्तरायण की इन हिंदी WhatsApp Wishes, Facebook Greetings, Quotes, SMS के जरिए दें शुभकामनाएं
मकरविलक्कू तिथि और मकर-ज्योति का समय
मकरविलक्कू संक्रांति शुभ मुहूर्त रात 08.57 बजे (15 जनवरी 2023)
मकर ज्योति का समय शाम 06.00 बजे से रात 08.00 बजे के बीच देखा जायेगा (14 जनवरी 2023)
मकरविलक्कू का इतिहास, पूजा-अनुष्ठान एवं समारोह
मकरविलक्कू एक धार्मिक अनुष्ठान है, जो अतीत काल से मलयाराय जनजाति द्वारा शुरू किया गया था. मान्यता है कि यह जनजाति पोन्नम्बलम डु (वह स्थान जहां मकरविलक्कू प्रकट होते हैं) के जंगलों में मलायमन के वंशज हैं. मकरविलक्कू का यह उत्सव सैकड़ों वर्षों से भी अधिक समय से इस जनजाति द्वारा आयोजित किया जा रहा है. प्राप्त अभिलेखों के अनुसार पोन्नम्बलम में एक मंदिर आज भी आम जनता के लिए नहीं खोला गया है, क्योंकि यह मंदिर केरल सरकार के वन विभाग के नियंत्रण में है. जब मकरम प्रथम को आकाश में सीरियस स्टार (Sirius Star) दिखाई देता है, तभी ये जनजाति इस मंदिर में अपने अनुष्ठान आदि करती हैं.
इस अवसर पर सबरीमाला मंदिर में एक पात्र में कपूर और घी मिश्रित दीपक जलाकर प्रतिमा के चारों ओर परिक्रमा करते हुए आरती उतारी जाती है. सबरीमाला मंदिर में प्रज्वलित इस अग्नि मकर को मकर ज्योति कहा जाता है, लेकिन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पोन्नाबलमेडु में प्रज्वलित अग्नि ही वास्तविक मकरविलक्कू है. बता दें कि मंदिर में दीपराधना (आरती) के समय जलाये जाने वाले दीपक को मकरविलक्कू के नाम से पुकारते हैं. मकर ज्योति एक स्टार है, जो 14 या 15 जनवरी (मकर संक्रांति के दिन) के दिन आता है, जिसकी हर वर्ष मकर संक्रांति पर भारी तादाद में तीर्थ यात्री केरल के सबरीमाला मंदिर में पूजा-अनुष्ठान आदि करते हैं. ऐसा माना जाता है कि देवता अयप्पन अपने भक्तों को आशीर्वाद देने स्वयं को मकर ज्योति के रूप में अवतरित होते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम एवं उनके भाई लक्ष्मण सबरीमाला नामक एक आदिवासी भक्त से मिले थे. शबरी ने भगवान श्रीराम को एक-एक फल (बेर) चखकर परोसे थे और भगवान श्रीराम ने उन जूठे बेर को भी ह्रदय से स्वीकार किया था. इस घटना की वर्षगांठ मकरविलक्कू दिवस पर मनाई जाती है.
मकरविलक्कू उत्सव सात दिनों तक चलता है और प्रत्येक वर्ष सभी श्रद्धालु द्वारा इस उत्सव को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. बहुत से आम श्रद्धालु पर्व की समाप्ति एवं कुरु थी पूजा होने तक सबरीमाला मंदिर में रुकते हैं.