मंगलवार विशेष: सांवेर स्थित उल्टे हनुमान जी की अति प्राचीन प्रतिमा, करते हैं सबकी मन्नत पूरी

यहां पवनपुत्र हनुमान जी अपने पांव आकाश और सिर धरती की ओर करके विश्राम मुद्रा में नजर आते हैं. हनुमान जी की यह मूर्ति सिंदूर से लिपटी हुई है. इस प्राचीन मंदिर और दुनिया की इकलौती हनुमान जी की उल्टी प्रतिमा के संदर्भ में मान्यता है कि हनुमान जी यहां आने वाले हर भक्तों की मन्नतें पूरी करते हैं.

भगवान हनुमान (Photo Credits: Wikimedia Commons)

महाबली हनुमान जी की माया अद्भुत है. दुनिया भर में उनके विविध स्वरूप और कथाएं देखने-सुनने को मिलती हैं. उनके एक ऐसे ही स्वरूप का दर्शन होता है, इंदौर से उज्जैन जाते समय सांवेर के एक अति प्राचीन मंदिर में. यहां पवनपुत्र हनुमान जी अपने पांव आकाश और सिर धरती की ओर करके विश्राम मुद्रा में नजर आते हैं. हनुमान जी की यह मूर्ति सिंदूर से लिपटी हुई है. इस प्राचीन मंदिर और दुनिया की इकलौती हनुमान जी की उल्टी प्रतिमा के संदर्भ में मान्यता है कि हनुमान जी यहां आने वाले हर भक्तों की मन्नतें पूरी करते हैं. इस धर्मस्थल में लगभग हर धर्म सम्प्रदाय के ल़ोग आते हैं, मन्नतें मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर वे दुबारा यहां आते हैं.

अहिरावण ने श्रीराम को पाताललोक में बंदी बनाया

इन उल्टे लेटे हनुमान जी की प्रतिमा के संदर्भ में पौराणिक कथा कुछ इस तरह है. कहा जाता है कि जब श्रीराम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था, तब रावण के कहने पर उसके मित्र पातालराज अहिरावण ने एक षड़यंत्र रचा. अपनी वेशभूषा बदल कर वह श्रीराम की सेना में शामिल हो गया. एक रात जब वानर सेना विश्राम कर रही थी, अहिरावण ने अपनी मायावी शक्ति के दम पर श्रीराम और लक्ष्मण को मुर्च्छित कर उनका अपहरण कर उन्हें पाताल लोक कैद कर दिया. सुबह होते ही जब श्रीराम और लक्ष्मण का दर्शन किसी को नहीं हुआ तब वानर सेना में हंगामा मच गया. लोग दुःखी भी थे और क्रोधित भी कि प्रभु श्रीराम को कौन यहां से ले गया होगा. उसी समय एक कबूतर और कबूतरी की बातचीत से पता चला कि श्रीराम और लक्ष्मण जी को अहिरावण पाताल लोक ले गया है, जहां अहिरावण उनकी बलि देने की तैयारी कर रहा है. यह समाचार जब हनुमान जी को मिली तो वह तुरंत पाताललोक पहुंच गये. वहां अहिरावण का वध करके वह श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर वापस आते हैं.

मंदिर का महात्म्य

स्थानीय लोग इस मंदिर को रामायण काल के समय का बताते हैं. ऐसी मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से हनुमानजी ने पाताल लोक जाने हेतु पृथ्वी में प्रवेश किया था. मंदिर के प्रति लोगों को आस्था है कि कोई श्रद्धालु यहां पर तीन या पांच मंगलवार को हनुमान जी के दर्शन कर लेता है तो हनुमान जी उसके सारे संकट दूर कर देते हैं. उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि मंदिर परिसर में पहुंचकर भक्त भगवान के अटूट भक्ति में लीन होकर सभी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं इस मंदिर में हनुमान जी को उनका प्रिय वस्त्र चोला चढ़ाने की भी काफी पुरानी परंपरा है. सांवेर स्थित इस अति प्राचीन मंदिर में हनुमान जी के साथ-साथ श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण जी की भी मूर्ति स्थापित है. इनके अलावा यहां भगवान शिव एवं माता पार्वती की भी प्रतिमाएं हैं.

मंदिर परिसर में सैकड़ों साल पुराने दो पारिजात के वृक्ष भी हैं. पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि पारिजात वृक्ष में हनुमानजी का वास होता है. मंदिर परिसर में सैकड़ो तोते झुंड बनाकर पेड़ों पर वास करते हैं, इस संदर्भ में किंवदंतियां हैं कि तोता वास्तव में ब्राह्मण का अवतार माना जाता है. हनुमानजी ने भी तुलसीदास जी के लिए तोते का रूप धारण कर उन्हें श्रीराम के दर्शन कराए थे.

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