कुंभ मेला 2019: विश्व का सबसे प्राचीन वटवृक्ष है 'अक्षयवट', जहां वनवास काल के दौरान भगवान राम ने 3 दिनों तक किया था निवास
विश्व का सबसे प्राचीन अक्षयवट (Photo Credits:Facebook)

कुंभ मेला 2019: आस्था का प्रतीक कुंभ (Kumbh Mela 2019) अपनी दिव्य साज-सज्जा के साथ तैयार है. देश-विदेश से आए संत महात्मा और श्रद्धालु त्रिवेणी में डुबकी लगा रहे हैं. स्नान के बाद दूर-दराज से आए स्नानार्थी कुंभ के इर्द-गिर्द स्थित आध्यात्मिक केंद्रों पर पहुंच रहे हैं. ऐसे में साढ़े चार सौ साल तक अकबर के किले में कैद अक्षयवट (AkshayaVat) और सरस्वती कुण्ड (Saraswati Kund) सबके आकर्षण का केंद्र बन रहा है. प्रमुख स्नान के दिनों के अलावा श्रद्धालु और पर्यटक इस किले में प्रवेश कर सकेंगे.

गौरतलब है कि पिछले दिनों उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने श्रद्धालुओं के लिए वटवृक्ष और सरस्वती कुण्ड के दर्शन-पूजन के लिए किले के दरवाजे खुलवा दिये हैं. आखिर क्या है महिमा दुनिया के सबसे पुराने इस अक्षयवट की. 

दुनिया भर में हैं केवल चार वटवृक्ष

  • प्रयागराज में अक्षयवट
  • उज्जैन में सिद्धवट
  • गया में गयावट (बौद्ध वट)
  • मथुरा-वृंदावन में वंशीवट

हम चर्चा करेंगे प्रयागराज (Prayagraj) स्थित अक्षयवट (AkshayaVat) की. अक्षय का आशय जिसका कभी क्षय न हो. अक्षयवट का जिक्र रामचरित मानस (RamCharit Manas) समेत तमाम पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेखित है. कहा जाता है कि 14 वर्ष के वनवासकाल में श्रीराम (Lord Rama)सीता (Sita) और लक्ष्मण (Laxman) ने तीन दिनों तक इस वटवृक्ष के नीचे निवास किया था. एक किंवदंती यह भी है कि राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात भगवान राम उनकी श्राद्ध की तैयारियों में कहीं गये हुए थे, तभी वटवृक्ष के नीचे राजा दशरथ प्रकट हुए. उन्होंने सीता जी से कहा कि जल्दी से मेरा पिंडदान कर दो. सीता जी को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने अक्षयवट के नीचे ही बालू का पिण्ड बनाकर दशरथ के नाम से दान कर उन्हें मुक्ति दिलाई. जब भगवान राम अक्षयवट पहुंचे तो उन्हें बताया पिंड दान हो गया. इसके पश्चात सीताजी ने अक्षय वट को आशीर्वाद देते हुए कहा कि संगम स्नान के पश्चात तुम्हारा पूजन-दर्शन करने के बाद ही, स्नानार्थी को स्नान लाभ प्राप्त होगा.  यह भी पढ़ें: कुंभ मेला 2019: नागा बाबाओं का रहस्यमय जीवन, जानें कहां से आते हैं और कहां हो जाते हैं गुम ?

पुराणों में उल्लेखित एक अन्य कथा के अनुसार एक ऋषि ने विष्णुजी से उन्हें ईश्वरीय शक्ति दिखाने की चुनौती दी तब विष्णु जी ने अपनी माया से पूरी धरती को जलमग्न कर दिया. संपूर्ण पृथ्वी के जलमग्न होने के बावजूद अक्षयवट नजर आ रहा था. हालांकि बाद में विष्णुजी ने अपनी माया से उत्पन्न जल को सुखा दिया. यहीं पर सरस्वती कूप भी है. माना जाता है कि सरस्वती नदी यहीं पर गंगा-यमुना में मिलती थीं. 

अक्षयवट का इतिहास

अक्षयवट का उद्भव कब हुआ, इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. हांलाकि महाकवि कालीदास ने रघुवंश में प्रयागराज स्थित अक्षयवट का जिक्र किया है. कहा जाता है कि अक्षयवट के पास ही कामकूप नामक एक तालाब भी था और वृक्ष के नीचे पाताल पुरी मंदिर था. अक्षयवट के प्रति अंधश्रद्धा का आलम यह था कि मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग अक्षयवट पर चढ़कर तालाब में कूदकर जान देते थे। सन 643 ई में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग जब भारत आया तो कुंभ स्नान के दौरान उसने अक्षयवट का भी दर्शन किया. अपने संस्मरण में इस वटवृक्ष का उल्लेख करते हुए उसने बहुत दुःखी मन से लिखा कि मोक्ष की आस में श्रद्धालु अक्षयवट पर चढ़कर कामकूप तालाब में कूदकर जान दे देते हैंजिसकी वजह से तालाब में भारी संख्या में नरकंकाल इकट्ठा हो गये थे. 

आदमखोर वृक्ष

इतिहासकारों ने अक्षयवट को अलग-अलग नजरिये से देखा और उसका वर्णन किया है.  सन 1030 में एक फारसी विद्वान, लेखक और वैज्ञानिक अलबरूनी महमूद गजनवी भारत दर्शन की व्याक्या करते हुए वटवृक्ष के संदर्भ में अपनी पुस्तक किताब-उल-हिंद में लिखा कि यह बहुत ही अजीबोगरीब पेड़ हैजिसकी कुछ शाखाएं ऊपर तो कुछ नीचे की तरफ जाती हैंइसमें पत्तियां नहीं होतीं. 11वीं शताब्दी में भारत आये एक अन्य अफगानी इतिहासकार महमूद गरदीजी ने इस वृक्ष का जिक्र करते हुए लिखा कि गंगा-यमुना किनारे स्थित एक वृक्ष हैजिस पर चढकर लोग आत्महत्या करते हैं. 13वीं शताब्दी के एक मुस्लिम साहित्यकार फजैलउल्लाह रशीउद्दीन अब्दुल खैर और अकबर के समकालीन इतिहासकार बदायुनी ने भी अक्षयवट का जिक्र कुछ इन्हीं शब्दों में किया कि हिंदुस्तानी मोक्ष की उम्मीद में इस पेड़ (अक्षयवट) पर चढ़कर आत्महत्या करते हैं. उनकी नजर में अक्षयवट किसी आदमखोर वृक्ष की तरह था. 

क्यों लगवाया अकबर ने वटवृक्ष पर पाबंदी

 1556 में जब हुमायु पुत्र अकबर शहंशाह बना तो दो नदियों से घिरे संगम तट को सुरक्षा की नजर से बेहतर देखते हुए, उसने एक किला का निर्माण करवाया। लेकिन जब उसे वटवृक्ष और उससे जुड़ी हिंदुओं की श्रद्धा एवं मोक्ष प्राप्ति की जानकारी मिली, तब उसने किले की सुरक्षा को देखते हुए वटवृक्ष को पहले कटवाने और फिर जलाकर समूल नाश करने की कोशिश कीलेकिन वटवृक्ष पुनः उग गया.  अंततः उसने तालाब को पटवा कर मंदिर को तुड़वा दिया। इसके पश्चात किले में आम लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगवा दी. यद्यपि इस संदर्भ में यह भी कहा गया कि अकबर ने ऐसा इसीलिए किया ताकि लोग मोक्ष के नाम पर आत्महत्या न कर पायें. यह भी पढ़ें: कुंभ मेला 2019: प्रमुख स्नान पर्व पर नहीं हो सकेगें अक्षयवट के दर्शन

अकबर के बाद जहांगीर ने भी इस अक्षयवट को जड़ से कटवा दिया था, लेकिन वह अक्षयवट को पुनः उगने से नहीं रोक सका. जहांगीर के बाद औरंगजेब ने तो अक्षयवट की जड़ों में तेजाब तक डलवा दिया कि यह दुबारा नहीं उगने पायेलेकिन अक्षयवट पूरी दिव्यता के साथ आज भी बरकरार है. ब्रिटिश काल में यह किला अंग्रेजों के अधीन रहा. स्वतंत्रता के बाद से किले की देखरेख सेना कर रही है. यहां सेना का आयुध सेंटर है. सेना के पुजारी हीवटवृक्ष की पूजा-अर्चना करते हैं.