हिंदू धर्म में कार्तिक मास बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस माह श्रीहरि अर्थात भगवान विष्णु योग निद्रा से बाहर आकर भक्तों पर विशेष कृपा रखते हैं. इसी माह अक्षय नवमी का पर्व भी सेलीब्रेट करते हैं, जिसे आंवला नवमी (Amla Navami) के नाम से भी जाना जाता है. परंपरानुसार इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का भी विधान है. आंवला एक फल ही नहीं बल्कि प्रकृति प्रदत्त अनमोल तोहफा भी है. इसका जितना आयुर्वेदिक महत्व है, उतना ही पौराणिक महत्व है. आंवला नवमी का शुभ मुहूर्त 5 नवंबर 2019 को है और पूजा का समय प्रात 06.36 बजे से अपराह्न 12.04 मिनट तक है. आइये जानें आवंला नवमी के व्रत, पूजा विधि, कथा क्या है
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी को आंवला नवमी मनाई जाती है. इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 5 नवंबर 2019 को आंवला जयंती मनाई जाएगी. संपूर्ण उत्तर एवं मध्य भारत में आंवला नवमी का खास महत्व बताया जाता है. इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए यह व्रत एवं पूजन पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं. आइए आंवला नवमी की कथा और पूजा विधि के बारे में जानते हैं.
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तिथि विशेष की अन्य किंवदंतियां
मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाललीलाओं की प्यारी नगरी गोकुल को हमेशा के लिए त्याग कर अपने कर्मक्षेत्र मथुरा नगर में प्रवेश किया था. इस तिथि की एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नामक राक्षस का संहार किया था. कहते हैं कि उसी के शरीर से कुष्माण्ड की बेल प्रस्फुटित हुई थी. इस दिन कुष्माण्ड के दान का भी विधान है. शास्त्रों के अनुसार आंवले के वृक्ष को साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है. कहा जाता है कि आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से गोदान का फल का प्राप्त होता है.
आंवला नवमी की पूजा
कार्तिक मास शुक्लपक्ष की नवमी की प्रातःकाल महिलाएं जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ अथवा नया वस्त्र पहनें. इसके बाद सपरिवार निकटतम आंवले के वृक्ष के पास जाकर पूजा-अर्चना करें. पूजा शुरु करने से पूर्व आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें. सर्वप्रथम आंवले के पेड़ पर दूध चढ़ाएं और उसके तने के चारों ओर सूत का धागा लपेटें, और सपरिवार के सुख, शांति एवं समृद्धि की प्रार्थना करें. पेड़ के नीचे मेहंदी, चूड़ी एवं सिंदूर आदि चढ़ाएं. तने पर रोली का तिलक लगाकर अक्षत एवं पुष्प छिड़के.
अब धूप एवं दीप प्रज्जवलित कर, पेड़ के इर्द-गिर्द 108 परिक्रमा करें. अगर किसी वजह से 108 परिक्रमा पूरी करने में असमर्थ हैं तो केवल 8 परिक्रमा करके हाथ जोड़कर छमा याचना कर लें. पूजा सम्पन्न होने के पश्चात आंवला नवमी की पारंपरिक कथा सुनें. सबसे अंत में आंवले के पेड़ के नीचे सपरिवार भोजन करें. खाने के बाद किसी ब्राह्मणी को सुहाग का सामान एवं सीधा दान करें. मान्यता है कि सामर्थ्यनुसार सोने चांदी का दान करने पर छह गुना ज्यादा फल मिलता है.
आंवला नवमी की पौराणिक कथा
एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं. वह भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा करना चाहती थीं, लेकिन इन दोनों देवताओं की एक साथ पूजा करना संभव नहीं था. अंततः उन्होंने एक युक्ति निकाली. वह जानती थीं कि तुलसी भगवान विष्णु को एवं बेल भगवान शिव को अतिप्रिय है, और तुलसी एवं बेल दोनों के ही गुण आंवले में पाए जाते हैं. तब माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को ही भगवान विष्णु और भगवान शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की. आंवले के वृक्ष की पूजा से विष्णु जी और शिव जी दोनों प्रसन्न हुए. प्रसन्न होकर उन दोनों ने ही माता लक्ष्मी को दर्शन दिए.
लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर शिव जी तथा विष्णु जी को भोजन कराया, तत्पश्चात स्वयं भी भोजन किया. मान्यता है कि जिस दिन माता लक्ष्मी ने विष्णु जी एवं शिव जी की आवंले के वृक्ष के नीचे पूजा की थी, वह कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी की तिथि थी. इसके बाद से ही आंवला नवमी का पर्व मनाने की शुरुआत हुई. अगर किसी वर्ष ऐसा संभव नहीं कर सकें तो इस दिन भोजन में आंवले का प्रयोग अवश्य करें.