Devshayani Ekadashi 2023 Upay: देवशयनी एकादशी के इन नियमों का करें पालन! अन्यथा नुकसान हो सकता है!
देवशयनी एकादशी (Photo: File Image)

हिंदी पंचांग के अनुसार साल में कुल 24 एकादशियां और माह में दो एकादशियां पड़ती हैं. अधिमास में दो एकादशियां बढ़ जाती हैं. विष्णु-भक्त हर एकादशी को व्रत रखते हैं. हर एकादशियों के व्रत का अलग-अलग महात्म्य है. इसी तरह आषाढ़ मास की एकादशी का एक अलग महत्व है. इसे देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) और हरिशयनी एकादशी (Harishayani Ekadashi) भी कहते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत एवं पूजा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, और सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से अक्षय-पुण्य प्राप्त होता है. देवशयनी एकादशी के नियमों के अनुसार कुछ कार्य करने अनिवार्य हैं, वहीं कुछ कार्य करने से बचना की बात भी कही गई है. यह भी पढ़ें: Yogini Ekadashi 2023: योगिनी एकादशी का व्रत मिटाते हैं जातक के सारे पाप और श्राप! जानें व्रत के नियम, पूजा-विधि!

  • मांस-मछली से दूर रहेः देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है. इसलिए इन चार मास तक मांस-मछली इत्यादि से दूर ररना चाहिए.
  • भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा भी अनिवार्य हैः चूंकि इसी दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं, इसलिए इस एकादशी पर विष्णु जी के साथ लक्ष्मी जी की भी पूजा-अर्चना करें.
  • नशा इत्यादि से दूर रहेः देवशयनी एकादशी के दिन धूम्रपान, शराब अथवा नशीली दवाओं के सेवन से बचना चाहिए. वरना इसका बुरा परिणाम होता है.
  • तामसिक पदार्थों का सेवन वर्जित हैः देवशयनी एकादशी से पूरे चार माह तक लहसुन, प्याज जैसी तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए.
  • ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य हैः सभी एकादशी का व्रत पवित्र मन और सच्ची आस्था के साथ करनी चाहिए. इससे तन-मन पवित्र होता है. मन पर नियंत्रण रखते हुए स्त्री सानिध्य से बचते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
  • चावल का सेवन नहीं करना चाहिएः अन्य एकादशियों की तरह देवशयनी एकादशी के दिन भी चावल नहीं खाना चाहिए, न ही चावल से बनी (खीर, खिचड़ी, बिरयानी, नमकीन इत्यादि) वस्तुओं का सेवन करना चाहिए.
  • रात्रि जागरण एवं पूजन करेः देवशयनी एकादशी को पूरे दिन व्रत-पूजन करते हुए रात्रि में जागरण करते हुए विष्णु जी की पूजा-कीर्तन आदि करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि के बाद ही श्रीहरि चार माह के लिए योग-निद्रा में चले जाते हैं.