चैत्रीय नवरात्रिः क्या है ‘दुर्गा सप्तशती’ का महत्व और ‘देवी कवच’ का महात्म्य
श्री दुर्गा सप्तशती मुख्यतः संस्कृत में है. लेकिन विद्वानों का कहना है कि श्रद्धालुओं को अगर संस्कृत के श्लोकों का पाठन करने में असुविधा महसूस हो तो हिंदी अनुवादित अर्थयुक्त दुर्गासप्तशती पढ़कर भी माता की पूजा का मनोवांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
श्री ‘दुर्गा सप्तशती’ चैत्रीय नवरात्रि का सबसे लोकप्रिय धर्मग्रंथ माना जाता है. इसमें देवी दुर्गा द्वारा तमाम दैत्यों के साथ युद्ध को किसी चलचित्र की तरह रेखांकित किया गया है. श्री दुर्गा सप्तशती मुख्यतः संस्कृत में है. लेकिन विद्वानों का कहना है कि श्रद्धालुओं को अगर संस्कृत के श्लोकों का पाठन करने में असुविधा महसूस हो तो हिंदी अनुवादित अर्थयुक्त दुर्गासप्तशती पढ़कर भी माता की पूजा का मनोवांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता है. क्या है सप्तशती आइए देखें
दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों में शक्ति के नौ रूपों द्वारा आसुरी शक्तियों के संग्रामों का उल्लेख है. पहले अध्याय को ध्यान से पढ़ें तो पायेंगे कि पहला युद्ध इंसान स्वयं से लड़ता है. राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य स्वयं से हारे हुए इंसान हैं. एक तरफ राजा सुरथ का राज छिन गया वहीं समाधि नामक बनिया धन, स्त्री और संतनान हर चीज से वंचित हो गया. यानि कल तक जिस चीज पर वे गर्व करते थे, आज वह उनके पास नहीं है.
इसी तरह का संघर्ष आज हर इंसान कर रहा है. मधु-कैटभ, महिषासुर, चंड-मुंड, धूम्रलोचन, रक्तबीज और शुम्भ-निशुम्भ के साथ युद्ध में मां भगवती किसी सामरिक शक्ति की तरह नजर आती है, यह आसुरी शक्तियों का संहार ही नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक आशय हमारे तन और मन में उपजे कलुषित विचारों का दमन भी है. इन 13 अध्यायों में मां भगवती का असुरों से संग्राम ‘एक से अनेक' और ‘अनेक से एक' की युद्ध कला को दर्शाती है.
इसमें देवी का पराक्रम अवर्णनीय है. दुर्गा सप्तशती सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का आइना सदृश्य भी है. इसमें उल्लेखित है कि ग्रहों की शांति अथवा जीवन में आ रही बाधाओं के लिए देवी के किन मंत्रों का जाप फलीभूत हो सकता है.
ग्रहों की शांति के लिए
‘सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।'
दुर्गा सप्तशती का सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है. देवी के किसी मंत्र से पूर्व इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करना चाहिए.
‘ऊं सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके,
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते'
विद्वानों के अनुसार इस मंत्र को दिन भर में चौदह बार पढ़ना श्रेयस्कर होता है. लेकिन संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का लाभ लेना है तो तो ‘देवी कवच’ और ‘कीलक मंत्र’ जरूर पढ़ना चाहिए.
यूं तो नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के सभी 13 अध्याय महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अगर यह संभव नहीं है तो पांचवा, सातवां, आठवां और ग्यारहवां में से कोई एक अध्याय का पाठ भी कर सकते हैं.
सेहत के लिए अमोघ है ‘देवी कवच’
श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित ‘देवी कवच’ सेहत के नजरिये से किसी अमोघ शक्ति से कम नहीं है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है देवी का कवच, यानि देवी जिसे अपनी सुरक्षा में लेती हैं, उसे तोड़ पाना किसी के लिए आसान नहीं होता. इसमें देवी की वे सुरक्षित शक्तियां हैं, जिनका जाप अथवा स्मरण करने भर से मानसिक शांति प्राप्त होती है.
इसकी शक्ति को विज्ञान भी मानता है कि जब हमारी सोच सकारात्मक होती है, तो हमारे मन में यह बात भी जगह बनने लगती है कि हम स्वस्थ हो रहे हैं. ‘देवी कवच’ में स्त्री-पुरुष के समस्त अंगों की चर्चा है. इसका विधान यह है कि ‘देवी कवच’ को पढ़ने के साथ मन में यह कामना करते जाइए कि -हे मां हम सदा स्वस्थ रहें.
कब और कैसे करें ‘देवी कवच’
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पूर्व देवी की प्रतिमा अथवा चित्र के सामने घी का दीप प्रज्जवलित करें. ‘देवी कवच’ करने से पूर्व सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करना चाहिए. अगर यह संभव नहीं है तो दुर्गा जी से संबंधित कोई भी एक मंत्र को तीन बार पढ़ें. अगर साधक किसी असाध्य रोग से पीड़ित है तो उसे ‘देवी कवच’ का तीन बार जाप करने चाहिए. कोशिश करें कि दुर्गा सप्तशती शुरु करने से पूर्व और समापन करने के पश्चात देवी सूक्तम का पाठ जरूर कर लें. यह प्रभावशाली होता है. ये है देवी सूक्तम...
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः