बसंत पंचमी 2019 विशेष: त्रिवेणी में सरस्वती नदी के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न क्यों!

सरस्वती नदी के संदर्भ में हमारी पौराणिक पुस्तकें, इतिहासकारों और वैज्ञानिक नजरिया क्या दर्शाता है आइये देखते हैं...

प्रयागराज कुंभ (Photo Credit: PIB)

प्रयागराज (Prayagraj) में चल रहे विश्व के सबसे बड़े कुंभ मेले (Kumbh Mela) में अब तक करोड़ों भक्त गंगा-यमुना-सरस्वती (Ganga-Yamuna-Saraswati) की त्रिवेणी (Triveni) में डुबकी लगा चुके हैं. त्रिवेणी के प्रति आस्था उनकी इतन गहरी है कि उन्हें यह समझे-जानने की आवश्यकता नहीं कि गंगा और यमुना के बीच सरस्वती का कोई अस्तित्व है भी या नहीं. हालांकि चिंतकों में सरस्वती के अस्तित्व को लेकर तमाम भ्रांतिया आज भी बरकरार हैं. कोई कहता है सरस्वती अदृश्य रूप में प्रयाग पहुंचकर गंगा-यमुना की त्रिवेणी बनाती हैं, तो कुछ सरस्वती नदी के वजूद से ही इंकार करते हैं. बसंत पंचमी के अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु डुबकी लगाकर मोक्ष पाने की कोशिश करेंगे. ऐसे में सरस्वती नदी के अस्तित्व पर मंथन जरूरी हो जाता है. सरस्वती नदी के संदर्भ में हमारी पौराणिक पुस्तकें, इतिहासकारों और वैज्ञानिक नजरिया क्या दर्शाता है आइये देखते हैं...

ऋग्वेद के नदी सूक्त में सरस्वती का उल्लेख है,

'इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परूष्ण्या

असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोभया'|

कुछ मनीषियों का मानना है कि ऋग्वेद में सरस्वती वस्तुत: मूलरूप में सिंधु का ही पूर्व रूप है. क्योंकि गंगा, यमुना सरस्वती के अलावा ये सभी पांच नदियां आज सिन्धु की सहायक नदियों के रूप में जानी जाती हैं हैं छठवीं द्रषद्वती है, सिन्धु नदी का नाम नहीं है. ऋग्वेद में सरस्वती को सप्तसिन्धु नदियों की जननी बताया गया है. इस तरह इसे सात बहनों वाली नदी भी कहा गया है.

रामायण और महाभारत में सरस्वती

महाकवि वाल्मीकि के संस्कृत रामायण में भरत के केकय देश से अयोध्या आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है-

'सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च,

उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्'

सरस्वती नदी के किनारे बसे सभी तीर्थों का वर्णन महाभारत में शल्यपर्व के 35वें से लेकर 54वें अध्याय तक विस्तार के साथ दिया गया है. महाभारत में बताया गया है कि कभी अस्तित्व में रहने वाली सरस्वती नदी बाद में लुप्त हो गयी. जिस स्थान पर सरस्वती लुप्त हुईं, वह स्थान विनाशना के नाम से जाना जाता है. कहते हैं कि इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त (आज का कुरुक्षेत्र) था, जहां आज एक जलाशय है. महाभारत में यह भी उल्लेखित है कि बलराम ने द्वारिका से मथुरा तक की यात्रा सरस्वती नदी से ही की थी. युद्ध के बाद यादवों के मृत शरीर के अवशेषों को यहीं प्रवाहित भी किया गया था. यानी तब सरस्वती नदी ऐसी अवस्था में थीं कि उसमें यात्राएं की जा सके. ऋग्वेद में सरस्वती नदी यमुना और सतलज के बीच में रहते हुए पूर्व से पश्चिम की ओर बहती थी. ऐसा भी माना जा रहा है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना में हुए परिवर्तन के कारण सरस्वती भूमिगत हो गई हो.

ऐतिहासिक प्रमाण

एक फ्रेंच इतिहासकार माइकल डैनिनो ने सरस्वती के उद्भव से लेकर लुप्त होने पर गहरा शोध किया है. उनके अनुसार ऋग्वेद में बताया गया है कि एक समय सरस्वती नदी बहुत बड़ी नदी थी, जो पहाड़ों से बहते हुए नीचे की ओर आती थी. उनके शोध लास्ट रीवर के अनुसार शोध में उन्हें बरसाती नदी घाघरा का पता चला था. डैनिनो ने सरस्वती नदी के मूल मार्ग का पता लगाया था. नदी का मूल तल हड़प्पाकालीन था, जो 4 हजार ईसा पूर्व के मध्य सूखने लगी थी. इस दरम्यान बहुत बड़े पैमाने पर भौगोलिक परिवर्तन हुए, परिणामस्वरूप उत्तर पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में से एक नदी गायब हो गयी, यह सरस्वती नदी थी. यह भी पढ़ें- Magha Ganesh Jayanti 2019: जब असुरों का संहार करने के लिए गणेश जी ने लिए 8 अवतार, जानें इसकी महिमा

इसके अलावा राजस्थान के एक अधिकारी एनएन गोडबोले ने विविध कुओं के जल का रासायनिक परीक्षण करने पर पाया था कि सभी के जल में केमिकल एक जैसा ही है, इसके विपरीत यहां से थोड़ी दूर के अंतराल पर स्थित कुओं के जलों का रासायनिक जांच करने पर रिपोर्ट कुछ और आया. केंद्रीय जल बोर्ड के वैज्ञानिकों को हरियाणा और पंजाब के साथ-साथ राजस्थान के जैसलमेर जिले में सरस्वती नदी की उपस्थिति के ठोस प्रमाण मिले हैं.

क्या कहता है विज्ञान

वैज्ञानिकों के अनुसार इसका इतिहास लगभग 4 हजार वर्ष पूर्व माना जाता है. प्रयागराज में भूकंप जैसी दैविय आपदा के चलते, जब जमीन में कंपन हुआ तो सरस्वती का आधा पानी यमुना में समा गया. इससे प्रयागराज स्थित अकबर के किले के नीचे सरस्वती नदी का मार्ग होने की पुष्टि होती है. यमुना और सरस्वती का सम्मिलित जल जब गंगा में मिला तो गंगा की महत्ता बढ़ी और त्रिवेणी को दुनिया का सबसे पवित्र नदी माना गया. जहां आज विश्व के सबसे बड़े कुंभ का आयोजन चल रहा है और करोड़ों लोग संगम में डुबकी लगाकर अपने जीवन को कृतार्थ करने का प्रयास कर रहे हैं.

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