Ratha Saptami 2024: दुर्वासा ने श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब को क्यों दिया श्राप? ऐसे करें सूर्यदेव का स्वागत एवं जानें रथसप्तमी व्रत-कथा?
माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन सूर्य देव जिन्हें आरोग्य देव भी कहते हैं, की पूजा-अनुष्ठान का विधान है. इस दिन को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, सूर्य सप्तमी, सूर्य जयंती एवं माघ सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है.
माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन सूर्य देव जिन्हें आरोग्य देव भी कहते हैं, की पूजा-अनुष्ठान का विधान है. इस दिन को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, सूर्य सप्तमी, सूर्य जयंती एवं माघ सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत का संबंध भगवान श्रीकृष्ण के बेटे सांब और महर्षि दुर्वासा से है. मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो भी जातक सूर्यदेव की पूजा, दान-धर्म एवं सूर्य सप्तमी की व्रत कथा सुनता अथवा सुनाता है, उसके सारे रोग समाप्त हो जाते हैं, इसलिए सूर्य को आरोग्य देव भी कहते हैं. इस वर्ष 16 फरवरी 2024, शुक्रवार को सूर्य सप्तमी मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, सूर्य सप्तमी के बारे में विस्तार से...
ऐसे करते हैं सूर्यदेव का स्वागत
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माघ मास शुक्ल पक्ष सप्तमी को सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे. इसी वजह से इस दिन को सूर्य जयंती के रूप में मनाई जाती है. इस दिन सूर्यदेव के स्वागत स्वरूप महिलाएं अपने-अपने घरों में सूर्य देव का स्वागत के लिए सूर्यदेव एवं उनके रथ का चित्र बनाती हैं. घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाती हैं. घर के आंगन में मिट्टी के बर्तन में कच्चा दूध रखा जाता है, जिसे सूर्य की रोशनी से गरम किया जाता है. इस दूध से सूर्यदेव के लिए भोग बनाकर चढ़ाते हैं. मान्यता है कि जिस घर-परिवार में सूर्यदेव की कृपा बरसती है, उसे किसी भी तरह के रोगों का भय नहीं रहता. यह भी पढ़ें : Maa Narmada Jayanti 2024 Greetings: हैप्पी नर्मदा जयंती! प्रियजनों संग शेयर करें ये शानदार WhatsApp Stickers, HD Images, Photo SMS और Wallpapers
रथ सप्तमी की कथा
रथसप्तमी की कथा भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब से संबंधित है. साम्ब सुंदर और बलवान होने के साथ-साथ अभिमानी भी थे. एक बार महर्षि दुर्वासा लंबे अंतराल तक कठोर व्रत रखने के बाद भगवान श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचे. उस समय श्रीकृष्ण अपने पुत्र साम्ब के साथ बैठे थे. साम्ब दुर्वासा के क्रोधित स्वभाव से अपरिचित थे. दुर्वासा का कमजोर शरीर देख साम्ब हंस पड़े, इस पर महर्षि ने उन्हें कोढ़ी होने का श्राप दे दिया. साम्ब ने पिता श्रीकृष्ण से महर्षि के श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा. श्रीकृष्ण ने साम्ब से भगवान सूर्य की व्रत-पूजा की सलाह दिया. साम्ब ने पिता के निर्देशानुसार सूर्य की व्रत-पूजा शुरू की. साम्ब की पूजा से प्रसन्न होकर साम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति का आशीर्वाद दिया. वह पुनः अपने पुराने स्वरूप में लौट आये. कहते हैं कि इसके बाद से ही सूर्य सप्तमी व्रत-पूजा की परंपरा शुरू हुई.