Rajmata Jijau jayanti 2023: जीजाबाई, जिन्होंने शिवाजी को ‘छत्रपति’ बनाने में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया! जानें जीजाऊ की शौर्य गाथा!
जीजाबाई के संस्कारों के कारण शिवाजी महाराज आगे चलकर हिंदू समाज के संरक्षक बने, और उन्होंने भारत में हिंदू स्वराज्य की स्थापना की. एक स्वतंत्र और महान शासक की तरह अपने नाम का सिक्का जारी किया, और छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए. शिवाजी ने सदा से अपनी सभी सफलताओं का श्रेय अपनी माता जीजाबाई को दिया.
महाराष्ट्र गौरव के प्रतीक छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य और साहस की जब भी चर्चा होगी, राजमाता जीजाबाई उर्फ जिजाऊ की चर्चा के बिना अधूरी होगी, क्योंकि शिवाजी महाराज को युद्ध कौशल से लेकर राज कौशल तक में प्रवीण बनाने में जीजाबाई की अहम भूमिका रही है. जीजाबाई छत्रपति शिवाजी की मां ही नहीं, बल्कि उनकी मित्र, गुरू, मार्गदर्शक और प्रेरणा स्त्रोत भी थीं. पति की अनुपस्थिति में उन्होंने पिता की भी भूमिका निभाई. जीजा माता का पूरा जीवन साहस और त्याग से भरा था. आज 12 जनवरी 2023 को जीजाबाई की 425 वीं जयंती पर बात करेंगे जीजाबाई के संपूर्ण व्यक्तित्व पर...
जीजाबाई यादव वंश की शक्तिशाली एवं साहसी सामंत लखुजी जाधव एवं महालसाबाई की बेटी थीं. जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को बुलढाणा (महाराष्ट्र) स्थित सिंधखेड़ में हुआ था. बचपन में उन्हें जिजाऊ नाम से पुकारते थे. लखुजी जाधव राव निजामशाह के पंचहजारी सरदार थे. जीजाबाई के चार भाई दत्ताजी, अचलोजी, रघुजी एवं महा दूजी थे. वह बचपन से साहसी, बहादुर, घुड़सवारी और मार्शल आर्ट में निपुण थीं. यह गुण उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली थी. काफी कम उम्र में जीजाबाई का विवाह शाहजी राजे भोसले से हो गया. उनके आठ बच्चों में थे 6 लड़कियां और 2 लड़के थे. शाहजी ने तत्कालीन निजामशाही सल्तनत पर मराठा राज्य की स्थापना करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मुगलों एवं आदिल शाह के मिल जाने से शाहजी पराजित हो गये. आदिल शाह के साथ संधि के शर्तों के अनुसार उन्हें बड़े बेटे संभाजी के साथ कर्नाटक की ओर भेज दिया.
पति की मृत्यु के बाद सती होने का निर्णय
कर्नाटक में शाहजी और संभाजी अफजल खान के साथ एक लड़ाई में मारे गये. पति की मृत्यु का समाचार सुनकर जीजाबाई ने अपने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया, लेकिन शिवाजी को देखते हुए उन्होंने सती होने के निर्णय को स्थगित कर शिवाजी की परवरिश में खुद को अर्पित कर दिया. उन्होंने शिवाजी को बचपन से तीर, तलवार और भाला जैसे अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी.
शिवाजी की परवरिश
पति शाहजी के ज्यादातर युद्ध में व्यस्त रहने के कारण बेटे शिवाजी की परवरिश में जीजाबाई ने माँ के साथ पिता की भी अहम भूमिका निभाई. शिवाजी को बचपन से रामायण, महाभारत एवं वीर महापुरुषों की कहानियां सुनाकर उसमें वीरता, धर्मनिष्ठा, धैर्य और मराठा जैसे गुणों का बीज रोपित किया. माँ की प्रेरणा से शिवाजी के बाल-ह्रदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित हुई. जीजाबाई ने शिवाजी से मातृभूमि, गौ-रक्षा, मानव जाति की सुरक्षा का संकल्प भी लिया. उन्होंने शिवाजी को नैतिक संस्कारों एवं मानवीय रिश्तों का महत्व समझाया. महिलाओं के प्रति मान-सम्मान करने की शिक्षा दी एवं देश प्रेम की भावना जागृत की. यहीं से शिवाजी के मन में महाराष्ट्र को स्वतंत्र कराने की इच्छा जागृत हुई.
हिंदू स्वराज्य की स्थापना और जीजाबाई
जीजाबाई के संस्कारों के कारण शिवाजी महाराज आगे चलकर हिंदू समाज के संरक्षक बने, और उन्होंने भारत में हिंदू स्वराज्य की स्थापना की. एक स्वतंत्र और महान शासक की तरह अपने नाम का सिक्का जारी किया, और छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए. शिवाजी ने सदा से अपनी सभी सफलताओं का श्रेय अपनी माता जीजाबाई को दिया. राजमाता जीजाबाई बेहद बुद्धिमान एवं साहसी महिला थीं, जिन्होंने न सिर्फ मराठा साम्राज्य को स्थापित किया, बल्कि मराठा साम्राज्य की नींव को भी मजबूती बनाया. वे सच्चे अर्थों में वीर स्त्री थीं. 17 जून 1674 ई. को जब जीजाबाई की मृत्यु हुई, तब तक शिवाजी मराठा साम्राज्य की स्थापना कर चुके थे.