पितरों की शांति एवं मुक्ति के लिए विशेष परिस्थितियों में महिलाएं भी कर सकती हैं तर्पण, पिण्डदान एवं श्राद्धकर्म. जानें क्या हैं इसके नियम और विधान
पितृपक्ष शुरु होने के साथ ही तिथियों के अनुसार पितरों को श्राद्ध, तर्पण एवं पिण्डदान आदि धार्मिक कर्मकाण्ड शुरु हो चुके हैं. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार दिवंगत परिजनों यानी पितरों के लिए उनके पुत्र अथवा पौत्र (पुरुष वर्ग) ही तर्पण एवं पिण्डदान आदि कर्म कर सकते हैं. लेकिन यह धारणा मिथ्य है कि घर की बेटी-बहुएं पितरों के लिए तर्पण एवं पिण्डदान नहीं कर सकतीं हैं. गरुण पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा वाल्मीकि रामायण में उल्लेखित है कि विशेष परिस्थितियों में पितरों की मुक्ति के लिए किये जानेवाले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार बहु एवं बेटियों (महिलाएं) को भी करने का अधिकार है. आइये जानें किन परिस्थितियों में ये कार्य महिलाएं कर सकती हैं. यह भी पढ़ें : Jivitputrika Vrat 2021 Messages: जीवित्पुत्रिका व्रत की इन हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIF Images, Quotes के जरिए दें शुभकामनाएं
महिलाओं द्वारा श्राद्ध कर्म का विधान
वाल्मिकी रामायण में वर्णित है कि पति श्रीराम की अनुपस्थिति में स्वसुर दशरथ का श्राद्ध कर्म माता सीता ने किया था. राजा दशरथ की विशेष विनती के बाद माता सीता ने पिण्डदान, तर्पण आदि कर्मकाण्ड किया था, इसके बाद ही राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. इस संदर्भ में गरुण पुराण में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि मृत व्यक्ति का अगर कोई पुत्र, भाई या भतीजा उपलब्ध नहीं है तो इन परिस्थितियों में बेटी अथवा अन्य महिलाओं को श्राद्ध कर्म का अधिकार प्राप्त है.
इन नियमों का पालन करें महिलाएं
सनातन धर्म में बताया गया है कि अगर परिस्थितिवश मृत परिजनों की शांति एवं मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म घर की महिलाओं को करना पड़ता है तो कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य होगा. महिलाओं को श्राद्ध कर्म करते समय श्वेत अथवा पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए. श्राद्ध कर्म के दौरान महिलाओं को काले तिल अथवा कुश का कहीं भी प्रयोग नहीं करना चाहिए. तर्पण करते समय तिल रहित केवल जल से ही तर्पण करना चाहिए. अगर घर में कोई वृद्ध महिला है तो श्राद्ध कर्म उन्हें ही करनी चाहिए, उनके रहते उनसे कम उम्र की महिला को यह कार्य नहीं करना चाहिए. गर्भवती महिलाओं को श्राद्ध कर्म नहीं करनी चाहिए. पिण्डदान अथवा तर्पण करने के बाद उन्हें ब्राह्मणों को भोजन करवाने के उपरांत सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर ससम्मान विदाई करना चाहिए.