हिंदू पंचांग के अनुसार अक्टूबर माह का अंतिम प्रदोष व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाएगा. यह प्रदोष गुरूवार के दिन पड़ने से इसे गुरू प्रदोष कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार गुरू प्रदोष का व्रत एवं भगवान शिव-पार्वती की विधिवत पूजा करने वाले जातकों को बल, बुद्धि के साथ भरपूर समृद्धि की प्राप्ति होती है. वह अपने शत्रुओं को परास्त करने का सामर्थ्य रखता है. अक्टूबर माह का यह अंतिम प्रदोष व्रत 26 अक्टूबर 2023, गुरूवार को रखा जाएगा. आइये जानते हैं इस गुरू प्रदोष के महात्म्य, मुहूर्त, मंत्र, पूजा विधि के साथ इस काल में पड़ने वाले विशेष योगों के बारे में विस्तार से..
गुरू प्रदोष व्रत का महात्म्य
अक्टूबर माह का यह अंतिम गुरू प्रदोष व्रत आश्विन मास शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाएगा. प्रदोष काल की पूजा संध्या काल अर्थात सूर्यास्त के पश्चात करने का विधान है. मान्यता है कि इस काल में शिवजी के साथ माता पार्वती की पूजा से भगवान शिव की विशेष कृपा से जीवन के सारे कष्ट मिटते हैं, साथ ही हर प्रकार के ग्रह दोष एवं जाने-अनजाने हुए पाप कर्मों से भी मुक्ति मिलती है. यह भी पढ़ें : Vijayadashami 2023: विजयादशमी पर मां दुर्गा को दी गई विदाई, दिल्ली के आस्था कुंज में प्रतिमा का किया गया विसर्जन (Watch Video)
प्रदोष व्रत की मूल तिथि एवं मुहूर्त
आश्विन शुक्ल पक्ष प्रदोष प्रारंभः 09.44 AM (26 अक्टूबर 2023, गुरूवार) से
आश्विन शुक्ल पक्ष प्रदोष समाप्तः 06.56 AM (27 अक्टूबर 2023, शुक्रवार) तक
प्रदोष की पूजा चूंकि सूर्यास्त के पश्चात करने का विधान है, इसलिए यह प्रदोष व्रत 26 अक्टूबर को ही रखा जाएगा.
पूजा मुहूर्तः 05.41 PM से 08.15 PM तक (26 अक्टूबर 2023, गुरूवार)
गुरू प्रदोष पर लग रहा ध्रुव और व्याघात योग कष्टकारी है या लाभकारी?
ध्रुव योगः सूर्योदय से शुरू होकर 08.50 AM तक रहेगा.
व्याघात योगः 08.51 से मध्य रात्रि तक रहेगा.
भाद्रपद नक्षत्रः सूर्योदय से 11.27 AM तक रहेगा.
ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार गुरू प्रदोष के दिन लग रहे योग एवं नक्षत्र के प्रभाव से जातक को भगवान शिव की कृपा से हर कार्य में सफलता मिलेगी, शत्रु पराजित होंगे. शिव पूजा विधि-विधान से करना है इस बात का अवश्य ध्यान रखें, तभी पूजा फलीभूत होगी.
गुरू प्रदोष व्रत की पूजा-विधि
गुरू प्रदोष के दिन स्नान-ध्यान कर स्वच्छ हल्का पीला अथवा गुलाबी रंग का वस्त्र पहनें. भगवान शिव एवं माँ पार्वती का ध्यान कर, व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हुए अपनी मनोकामना पूर्ति का निवेदन करें. इसके बाद केले के पेड़ के नीचे गाय के घी का दीप और धूप जलाकर विष्णु भगवान के 108 नामों का जाप करें, अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. पूरे दिन जब भी समय मिले ‘ॐ नमः शिवाय' और 'ॐ नमो नारायण' मंत्र का मन ही मन जाप करें.
सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष काल मे शिवलिंग को पहले पंचामृत (कच्चे दूध दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) से तत्पश्चात गंगाजल से अभिषेक करें. शिवलिंग पर सफेद चंदन से शिवजी का नेत्र बनाकर कुमकुम का तिलक लगाएं. अब शिवलिंग का बेलपत्र और फूलों से श्रृंगार करें. अक्षत, रोली, पुष्प, भांग, धतूरा, फल और मिष्ठान अर्पित करें. अंत में भगवान शिव और माँ पार्वती की आरती उतारें.













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