नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi), जिसे 'छोटी दिवाली', 'काली चौदस' या 'रूप चौदस' के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन तमाम रस्मो-रिवाज निभाये जाते हैं. इन्हीं में से एक है अभ्यंग स्नान. नरक चतुर्दशी के दिन इसका विशेष महत्व होता है. यह स्नान केवल शारीरिक स्वच्छता के लिए नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी बहुत जरूरी होता है. अभ्यंग स्नान केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक प्रक्रिया है, जो तन-मन और आत्मा को शुद्ध करती है. नरक चतुर्दशी को यह स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति, पापों से मुक्ति, सौंदर्य एवं आरोग्यता का लाभ मिलता है. नरक चतुर्दशी (20 अक्टूबर 2025) के अवसर पर आइये जानते हैं, क्यों जरूरी होता है अभ्यंग स्नान और क्या है इसकी विधि.
क्या है अभ्यंग स्नान
अभ्यंग स्नान नरक चतुर्दशी एक विशेष स्नान होता है, जिसके तहत पूरे शरीर बेसन, हल्दी, चंदन, इत्र, काला तिल एवं विशेष जड़ी-बूटी से बना उबटन लगाते हैं. इसके बाद तिल के तेल से मालिश करने के बाद बाद स्नान करते हैं. मान्यता है कि इससे शुद्धता एवं ऊर्जा प्राप्त होती है. यह अभ्यंग स्नान सूर्योदय से पूर्व किये जाने का विधान है. यह भी पढ़ें : Rama Ekadashi 2025: रमा एकादशी पर भांग से हुआ बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार, दर्शन के लिए लगा भक्तों का तांता
अभ्यंग स्नान क्यों अनिवार्य है?
अभ्यंग स्नान की अनिवार्यता को निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है.
पापों से मुक्ति के लिएः सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान करने से नरक जाने का भय समाप्त होता है और जातक को सारे पापों से मुक्ति मिलती है.
यमराज का आशीर्वादः इस दिन रात्रि में मृत्यु के देवता यमराज के नाम दीपदान का भी विधान है. अभ्यंग स्नान के बाद जातक खुद को पवित्र महसूस करता है, ताकि यमराज प्रसन्न हों और लंबी आयु का आशीर्वाद दें.
तन मन और आत्मा की शुद्धि के लिएः उबटन से मालिश करने से शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालती है, तनाव कम करती है और मानसिक शांति देती है.
रूप-सौंदर्य हेतु (रूप चौदस): यह दिन सौंदर्य से भी जुड़ा है. मान्यता है कि इस दिन उबटन और स्नान से त्वचा स्वस्थ होती है और इसमें अभूतपूर्व निखार आता है, इसलिए इसे ‘रूप चौदस’ भी कहा जाता है।













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