Nag Panchami 2019: आज है नाग पंचमी जानें इस दिन किन-किन नागों की होती है पूजा! साथ ही जानें इनसे जुड़ी रोचक कहानियां

आज नाग पंचमी है. इस दिन विशेष रूप से सर्पों की पूजा की जाती है. इस बार चूंकि श्रावण के सोमवार के ही दिन नाग पंचमी पड़ रही है तो स्वाभाविक है कि इस पर्व का महात्म्य भी बढ़ गया है. पौराणिक कथाओं में वर्णित नाग देवताओं की पूजा का प्रचलन ज्यादातर उत्तर मध्य भारत में मनाया जाता है.

नागपंचमी के दिन इन नागों की होती है पूजा, (Photo Credits: antriksh/Pixabay)

आज नाग पंचमी है. इस दिन विशेष रूप से सर्पों की पूजा की जाती है. इस बार चूंकि श्रावण के सोमवार के ही दिन नाग पंचमी पड़ रही है तो स्वाभाविक है कि इस पर्व का महात्म्य भी बढ़ गया है. पौराणिक कथाओं में वर्णित नाग देवताओं की पूजा का प्रचलन ज्यादातर उत्तर मध्य भारत में मनाया जाता है. आम धारणा है कि इस दिन नागों के राजा शेषनाग की ही पूजा की जाती है, लेकिन विभिन्न प्रांतों की बात करें तो पाएंगे कि इस दिन मुख्य रूप से इन महाबलशाली नाग देवताओं की पूजा-अनुष्ठान की जाती है. आइये जानें इन नागों से जुड़ी कहानियां एवं इनके महात्म्य

शेषनाग-

महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे. कहा जाता है कि एक दिन शेषनाग अपनी मां और भाइयों को छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तप करने चले गए. उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि धर्म से विचलित नहीं होगी. उऩ्होंने यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए. शेषनाग ने तत्काल ब्रह्मा जी के आदेश को मान लिया. क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग पर ही विराजते हैं. पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे.

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नाग वासुकी

नाग वासुकी को भगवान शिव का सेवक माना जाता है. मान्यता है कि समुद्र-मंथन के दौरान देवता और दानव ने शेषनाग को ही मंदराचल पर्वत पर लपेटकर समुद्र मंथन किया था. यह भी प्रचलित है कि भगवान श्रीकृष्ण जब पैदा हुए और वासुदेव उन्हें लेकर यमुना नदी पार कर रहे थे, तो उस समय बहुत तेज बारीश हो रही थी, तब शेषनाग ने अपने फनों से श्रीकृष्ण को बारीश से बचाया था.

तक्षक नाग-

महाभारत काल में वर्णित है कि श्रृंगी ऋषि के शाप से तक्षक ने राजा परीक्षित को डसकर मार डाला था. तक्षक से बदला लेने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था. यज्ञ शुरू होते ही सैकड़ों सर्प यज्ञ कुण्ड में गिर-गिर कर मरने लगे. तब परेशान होकर तक्षक नाग देवराज इंद्र के पास पहुंचा और जनमेजय द्वारा किये जा रहे यज्ञ के बारे में बताया. इसी समय यज्ञ कर रहे ब्राह्मण ने तक्षक के नाम की आहुति यज्ञ में डाली. परिणामस्वरूप तक्षक नाग तेजी से यज्ञकुण्ड की ओर गिरने लगा. कहा जाता है कि इसी समय आस्तिक ऋषि ने अपनी मंत्र शक्ति से उन्हें आकाश में ही रोक लिया. तक्षक ने शिव जी से प्रार्थना की कि मैं आकाश में लटका हुआ हूं मेरी रक्षा करिये प्रभु. तप शिव जी ने तक्षक को अपने गले में पहन लिया, माना जाता है कि तभी से तक्षक शिव जी के गले की शोभा बना हुआ है.

अनंतनाग

कश्मीर स्थित अनंतनाग का नाम भी सांपों की वजह से ही पड़ा बताया जाता है. कहते हैं कि एक बार जब भगवान शिव देवी पार्वती से मिलने अमरनाथ की ओर प्रस्थान कर रहे थे तब भगवान शिव जी ने अपने शरीर से सभी नाग उतारकर यहीं रख दिये थे. शिव जी के शरीर से उतारे गये नाग इसी स्थान पर स्थाई रूप से रहने लगे. धीरे-धीरे यह क्षेत्र नागों का गढ़ बन गया था.

कर्कोटक

कर्कोटक और ऐरावत नाग कुल का इलाका पंजाब की इरावती नदी के आसपास का बताया जाता है. कर्कोटक वास्तव में शिव जी के एक गण और नागों के राजा थे. एक बार महर्षि नारद मुनि के शाप से वे एक अग्नि की ज्वाला में फंस गये थे. तब राजा नल ने कर्कोटक को बचाया, लेकिन कर्कोटक ने नल को ही डस लिया. इस वजह से राजा नल का रंग काला पड़ गया. लेकिन चूंकि यह सब राजा नल को मिले एक शाप की वजह से हुआ था, लिहाजा राजा नल को कर्कोटक वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए. शिवजी की स्तुति करने के कारण ही कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकल सके थे. इसके बाद उन्होंने उज्जैन में भगवान शिव की कठोर तपस्या की.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.

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