Madhushravani Puja 2024: कब और क्यों मनाया जाता है मधुश्रावणी पर्व? महिला पुरोहित द्वारा किया जानेवाला इकलौता धार्मिक अनुष्ठान!

श्रावण मास की पूर्णिमा को देश के कई हिस्सों में मधु श्रावणी जिसे मधु स्त्रवा भी कहते हैं, मनाया जाता है. मिथिला संस्कृति पर आधारित इस धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व का नजारा बिहार, झारखंड एवं उड़ीसा में विशेष रूप से देखने को मिलता है. यह व्रत ज्यादातर कायस्थों एवं ब्राह्मणों के परिवार में किया जाता है.

Madhushravani Puja 2024 (img: file )

श्रावण मास की पूर्णिमा को देश के कई हिस्सों में मधु श्रावणी जिसे मधु स्त्रवा भी कहते हैं, मनाया जाता है. मिथिला संस्कृति पर आधारित इस धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व का नजारा बिहार, झारखंड एवं उड़ीसा में विशेष रूप से देखने को मिलता है. यह व्रत ज्यादातर कायस्थों एवं ब्राह्मणों के परिवार में किया जाता है. परंपराओं के अनुसार मधुश्रावणी व्रत नवविवाहित महिलाएं अपने मायके में मनाती हैं. 14 दिनों तक चलनेवाला मधु श्रावणी व्रत श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी से शुरू होकर श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को खत्म होता है. इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष मधुश्रावणी व्रत एवं पूजा 7 अगस्त 2024 को रखा जाएगा. मान्यता है कि मधु श्रावणी की व्रत एवं पूजा से महादेव एवं देवी पार्वती प्रसन्न होती हैं, और सारे कष्टों को दूर करती हैं आइये जानते हैं मधु श्रावणी व्रत का महात्म्य, मुहूर्त एवं पूजा विधि इत्यादि.

मधुश्रावणी की 14 दिवसीय परंपरा

विवाह के पश्चात पहला मधुश्रावणी व्रत के लिए विवाहिता स्त्री अपने पिता के घर आती हैं. पिता के घर पहुंचने से लेकर मधुश्रावणी तक वह पति के घर से आया खाना खाती हैं. इस अनुष्ठान में मुख्य रूप से महिलाएं ही भाग लेती हैं, जो शादी के बाद पहला श्रावण मना रही होती हैं. मधु श्रावणी के 14 दिवसीय पर्व के दरमियान व्रती महिलाएं किसी भी प्रकार के नमक का सेवन नहीं करती हैं. इस अवधि में देवी पार्वती, सूर्य, चंद्रमा, नवग्रह, नाग देवता और देवी षष्ठी की पूजा होती है. लेकिन मुख्य पूजा श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही होती है. यह भी पढ़ें :Naag Panchami 2024: कब है नाग पंचमी और क्यों होती है इस दिन नाग-पूजा? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं व्रत-कथा!

महिला पुरोहित कराती है मधु श्रावणी तीज की पूजा!

हिंदू धर्म की संभवतया यह एकमात्र आध्यात्मिक पर्व है, जिसकी पूजा अनुष्ठान महिला पुरोहित द्वारा पूरी विधि-विधान से कराई जाती है. इस अनुष्ठान में पति की दीर्घायु के लिए पत्नी अपने मायके में व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान करती हैं, लेकिन पूजा की सारी सामग्री एवं व्रत के बाद खाने के सारे सामान मायके से आती है. इसके साथ-साथ इस दिन ससुराल से आई हुई साड़ी, सौंदर्य प्रसाधन भी ससुराल की तरफ से ही आता है. इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव, देवी पार्वती तथा नाग देवता की परंपरागत तरीके से पूजा की जाती है. पूजा के दौरान महिला पुरोहित व्रती को भगवान शिव की कथाएं सुनाकर उनके सुखमय दाम्पत्य जीवन जीने की कला बताती हैं. वस्तुतः विवाहित महिलाएं भगवान शिव के भजन गाती हैं, और भजन के माध्यम से पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं.

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