Lohri Festival 2022: कब है लोहड़ी? जानें पर्व से जुड़ी परंपराएं! सेलीब्रेशन एवं दुल्ला-भट्टी की रोचक कथा!
लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व और नये साल का पहला पर्व होता है. यह पर्व मूलतः पंजाब और हरियाणा में पंजाबी समुदाय में मनाया जाता है, और पंजाब में इसे माघी संग्रांद के रूप में भी उच्चारित किया जाता है.
लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व और नये साल का पहला पर्व होता है. यह पर्व मूलतः पंजाब और हरियाणा में पंजाबी समुदाय में मनाया जाता है, और पंजाब में इसे माघी संग्रांद के रूप में भी उच्चारित किया जाता है. लेकिन वर्तमान में यह पर्व ना केवल भारत के अन्य राज्यों में हिंदू समुदाय द्वारा मनाया जाता है, बल्कि अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा जैसी जगहों पर भी उसी धूमधाम और परंपरागत तरीके से मनाया जाता है, जहां काफी संख्या में पंजाबी समुदाय निवास करता है. आइये जानें इस पर्व का महत्व, इसके सेलीब्रेशन का तरीका और इसकी रोचक कथा
ईश्वर को आभार प्रकट करने वाला पर्व
पौष मास का महत्वपूर्ण पर्व लोहड़ी किसानों द्वारा अच्छी फसल पाने के एवज में ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है. कड़ी मेहनत-मशक्कत के साथ फसल उगाने वाला किसान, जिसे हमारे देश में 'अन्नदाता' कहा जाता है, भी मानता है कि ईश्वर की विशेष कृपा पाने के बाद ही उसे अच्छी फसल मिली है, इसीलिए वे सुख एवं समृद्धि का प्रतीक फसल का निमित्त बनने वाले सर्वशक्तिमान के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए इस पर्व को सेलीब्रेट करते हैं. इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्यदेव एवं अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है. लोहड़ी की खुशियां मनाते हुए किसान फसल की उन्नति की कामना करते हैं. यह भी पढ़ें :
लोहड़ी सेलीब्रेशन!
लोहड़ी का पर्व सुबह से शुरु होकर देर रात तक चलता है. इस दिन छोटे-छोटे बच्चे पड़ोसियों के घरों में जाकर लोकगीत गाते हैं. बदले में उन्हें मिठाइयां, गजक एवं नेग मिलते हैं, क्योंकि बच्चों को खाली हाथ वापस भेजना अशुभ माना जाता है. रात में अलाव जलाकर उसके इर्द-गिर्द लोग बैठते हैं. अलाव की अग्नि-शिखाओं के चारों ओर परिक्रमा करते हुए परिवार के लोग अलाव में गुड़, मिश्री, गजक, मूंगफली, चावल एवं मक्का के दाने डालते हुए ‘आदर आये दलिदर जाये’ इस तरह के लोकगीत गाते हैं, मान्यता है कि देवताओं तक फसल का अंश पहुंचता है. अग्नि देव और सूर्य को फसल समर्पित करके आभार प्रकट करते हैं, ताकि उनकी कृपा से कृषि उन्नत और लहलहाता रहे. इस अवसर पर दुल्ला-भट्टी की कहानी सुनी-सुनाई जाती है, तथा पंजाबी समुदाय के लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य कर उत्सव मनाते हैं.
दुल्ला भट्टी की कहानी
मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय दुल्ला-भट्टी नामक एक शख्स पंजाब में रहता था. उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचते थे, तब दुल्ला भट्टी उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाते थे. कहते हैं तभी से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की पंरापरा चली आ रही है,