Lala Lajpatrai Jayanti 2023: स्वदेशी भावना को मूर्त स्वरूप दिया था ‘पंजाब केशरी’ लाला लाजपत राय ने!

लाला लाजपत राय भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक थे, ‘पंजाब केसरी’ नाम से लोकप्रिय लाला लाजपत राय मात्र 16 साल की आयु में कांग्रेस में शामिल हुए, और आजादी की लड़ाई हेतु तमाम आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाया. उनका संपूर्ण जीवन अंग्रेजी हुकूमत के साथ संघर्ष में बीता.

Lala Lajpatrai Jayanti 2023(Photo Credits: File Image)

लाला लाजपत राय (Lala Lajpatrai) भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक थे, ‘पंजाब केसरी’ नाम से लोकप्रिय लाला लाजपत राय मात्र 16 साल की आयु में कांग्रेस में शामिल हुए, और आजादी की लड़ाई हेतु तमाम आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाया. उनका संपूर्ण जीवन अंग्रेजी हुकूमत के साथ संघर्ष में बीता. ऐसे ही एक आंदोलन ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के दरम्यान 17 नवंबर 1928 को उन्हें शहादत देनी पड़ी. लाला लाजपत राय की 158वीं जयंती पर प्रस्तुत है उनके जीवन के कुछ रोचक प्रसंग

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को फिरोजपुर जिले के धुदिकी गांव (पंजाब) में हुआ था. वह माता-पिता के सबसे बड़े पुत्र थे, पिता फारसी और उर्दू के विद्वान थे, माँ धार्मिक महिला थीं. 1880 में, उन्होंने कानून का अध्ययन करने के लिए लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में प्रवेश लिया. वह एक क्रांतिकारी, राजनीतिज्ञ, भारतीय लेखक, हिंदू सर्वोच्चता आंदोलन के एक नेता और शक्तिशाली अधिवक्ता थे. लाजपत राय महज 16 साल की उम्र में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वे दयानंद सरस्वती के अनुयायी थे और 20 साल की उम्र में 1885 में, उन्होंने लाहौर में दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल की स्थापना की. उनके शक्तिशाली व्यक्तित्व को देखते हुए उन्हें ‘पंजाब केसरी’ और ‘लायन ऑफ पंजाब’ का खिताब दिया गया. यह भी पढ़े: International Customs Day 2023: कब है अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क दिवस? जानें क्या है इसका इतिहास एवं सेलिब्रेशन का तरीका!

‘लाल बाल पाल’ की तिकड़ी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बीच लाला लाजपत राय की तिकड़ी ‘लाल बाल पाल’ नाम से विशेष पहचान रखते थे. इसमें पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक तथा बंगाल के बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे. इन तीनों नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तीनों नेताओं ने स्वदेशी आंदोलन को मजबूत करने के लिए देश की जनता को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

डीएवी कॉलेज और पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना

लाला लाजपत राय ने स्वदेशी अवधारणा की ना केवल ताउम्र वकालत की, बल्कि कई ऐसे कार्य भी किये. अभिभूत स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर लाला लाजपत राय ने पंजाब में आर्य समाज को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी. एक कर्मठ शिक्षाविद की भूमिका निभाते हुए लाला लाजपत राय ने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की नींव रखी, जिसकी शाखाएं पूरे देश में देखी जा सकती है. लाला जी ने ही बैंक पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की, जो देश का पहला स्वदेशी बैंक था.

‘सर्वेंट्स ऑफ द पिपल सोसायटी’ की स्थापना

उन दिनों देश भर में कुप्रथाएं व्याप्त थीं, लाला लाजपत राय ने तमाम भारतीय नीतियों में सुधार करते हुए अमानवीय प्रथाओं मसलन जाति व्यवस्था, छुआछूत एवं दहेज प्रथा के खिलाफ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आवाज बुलंद किया. समाज में नासूर की तरह बढ़ती इन कुप्रथाओं के खिलाफ लाला जी ने ‘सर्वेंट्स ऑफ द पिपल सोसायटी’ की स्थापना की. कलम को अपना शस्त्र बनाते हुए उन्होंने ‘राजनीति और पत्रकारिता’ लेखन के माध्यम से भारतीय नीति और धर्म में आवश्यक सुधार लाने की कोशिश की.

बंगाल विभाजन का विरोध

20 जुलाई 1905 में तत्कालीन वायसराय कर्जन ने जब मुस्लिम बहुल प्रांत का सृजन करने के उद्देश्य से बंगाल का विभाजन किया. तब लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के फैसले का खुलकर विरोध किया. इस घटना के पश्चात से ही लाला लाजपत राय अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे. उन्होंने देश भर में स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के लिए अभियान चलाया. इसके बाद साल 1920 में वह असहयोग आंदोलन में शामिल हो गये. इसके बाद ही यह आंदोलन पंजाब में आग की तरह फैल गया.

न्यूयार्क में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका की स्थापना

प्रथम विश्व युद्ध के समय लाजपत राय अमेरिका में रहते थे. वहीं पर उन्होंने 1917 में न्यूयार्क में ‘इंडियन होमरूल लीग ऑफ अमेरिका’ की स्थापना की. इसके द्वारा उन्होंने अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिये नैतिक समर्थन मांगा. 1920 में वे भारत आ गये. यहां कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया, जिसमें गांधीजी के असहयोग आंदोलन शुरू की. 1921 से 1923 में तक जेल में रहे. 1928 में उन्होंने संवैधानिक सुधार पर ब्रिटिश साइमन कमीशन का बहिष्कार पेश किया. इसके बाद ही लाहौर में 17 नवंबर 1928 प्रदर्शन के दरम्यान पुलिस के हमले से लाला जी की मृत्यु हो गई.

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