Expert: अक्सर डॉक्टरों को हम भगवान का दर्जा देते हैं. लेकिन उन्हें आम तौर पर नौकरी में दबाव का सामना करना पड़ता है. लंबी ड्यूटी करने के बाद वह शारीरिक और भावनात्मक समस्याओं से घिरे नजर आते हैं. सोमवार को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर विशेषज्ञों ने कहा कि काम और जीवन के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए स्पष्ट सीमाएं तय करनी जरूरी है. हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है. फरीदाबाद के अमृता अस्पताल में मनोचिकित्सा की सहायक प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी जैन ने आईएएनएस से कहा, "चिकित्सा पेशे सहित कई व्यवसायों में काम का दबाव निजी जीवन पर प्रभाव डालता है. इससे जल्द ही थकान महसूस होने लगती है.
डॉक्टरों को चाहिए कि वे कामकाजी जीवन और निजी समय के बीच स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करने का प्रयास करें.'' जैन ने आगे कहा कि लंबे समय तक काम करने और बदलते शेड्यूल को देखते हुए डॉक्टरों को यदि संभव हो तो ब्रेक लेने की कोशिश करनी चाहिए. साथ ही बिना अतिरिक्त तनाव के काम को लेकर अपनी टीम के साथ बात करते रहना चहिए. इसके साथ ही अपनी सेहत पर ध्यान देने की जरूरत है. सीके बिड़ला अस्पताल गुरुग्राम के इंटरनल मेडिसिन विभाग के प्रमुख कंसल्टेंट डॉ. तुषार तायल ने आईएएनएस को बताया, ''डॉक्टर के तौर पर हम मरीजों के स्वास्थ्य को लेकर इतने व्यस्त रहते हैं कि हम अक्सर खुद पर ध्यान नहीं दे पाते. लंबे और अनियमित शेड्यूल और दूसरों के जीवन की जिम्मेदारी उठाने की भारी जिम्मेदारी अक्सर हमें थका देती है. यह भी पढ़ें:- Shortage of Doctors: चिकित्सकों की कमी झेल रहा झारखंड, 3.50 करोड़ की आबादी पर मात्र 7,374 डॉक्टर
हमें सबसे पहले अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए.'' कार्य-जीवन संतुलन को आवश्यक बताते हुए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद जरूरी है. अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए विशेषज्ञों ने नियमित दिनचर्या बनाए रखने, खाली पेट रहने से बचने, प्रतिदिन 30 मिनट तक व्यायाम करने या तेज चलने के साथ अपनी पसंद की चीजें करने की सलाह दी है. डॉ. मीनाक्षी ने डॉक्टरों के भावनात्मक स्वास्थ्य के महत्व पर भी जोर दिया है. उन्होंने कहा, "अक्सर चिकित्सा पेशेवर खुद को नकारात्मक यादों के बोझ तले दबा लेते हैं. इसलिए लचीलापन बनाने और स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए भावनात्मक अभिव्यक्ति आवश्यक है." योग और ध्यान के अलावा डॉक्टरों को टीम के सदस्यों के साथ संवाद करना चाहिए, सहकर्मी सहायता समूह में शामिल होना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो मनोवैज्ञानिक सेवाओं का उपयोग करने में संकोच नहीं करना चाहिए. डॉ. मीनाक्षी ने कहा, ''डॉक्टर अक्सर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते और कई बार काम के दबाव में यह बात भूल जाते हैं. सभी मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए नियमित शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य जांच करवाना जरूरी है.''