International Dance Day 2020: नृत्य-कला किसी भी देश की संस्कृति का आइना होती है. हर नृत्य वह चाहे वेस्टर्न हो, क्लासिकल अथवा लोक-नृत्य हो, सबकी अपनी खूबियां अपना आकर्षण होता है. आज 29 अप्रैल को ‘विश्व नृत्य दिवस’ है. कहते हैं कि इसी दिन दुनिया के महान रिफॉर्मर जीन जार्ज नावेरे का जन्म हुआ था, इसीलिए युनेस्को ने 29 अप्रैल 1982 से ‘विश्व नृत्य दिवस’ मनाने का निर्णय लिया. चूंकि भारतीय नृत्य-कला विश्व की प्राचीनतम धरोहर है और यह दुनिया भर में सराही जाती है, इसलिए इस दिवस विशेष पर हम भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला की बात करेंगे. आइये जानें कैसे हुआ नृत्य का जन्म!
क्या है उद्देश्य
नृत्य महज एक कला नहीं है, बल्कि सेहत और खूबसूरत शख्सियत के निर्माण में भी इसकी अहम भूमिका होती है. इसकी इन्हीं खासियतों का अलख जगाने और लोगों को इस ओर जागरुक करने के उद्देश्य से विश्व स्तर पर नृत्य-दिवस मनाने की शुरुआत हुई. साल 2005 में नृत्य को प्राथमिक शिक्षा के रूप में स्थान दिया गया.
नृत्य की उत्पत्ति
हिंदू धर्म में मान्यता है कि लगभग हजारों वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की प्रार्थना पर सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने नृत्य-वेद तैयार किया था. तभी से संसार में नृत्य की उत्पत्ति मानी जाती है. तब नृत्य-वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया. कहते हैं कि जब नृत्य-वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य का अभ्यास भरतमुनि के सौ पुत्रों ने किया. दरअसल नृत्य एक ऐसी सशक्त अभिव्यक्ति है, जो धरा और नभ से संवाद करती है. नृत्य हमारी खुशी, आक्रोश, भय, भावों और आकांक्षाओं को व्यक्त करती है. नृत्य हमारी मनोदशाओं का चित्रण करती है. यूं तो भारत में शास्त्रीय नृत्यों की विशाल विधाओं में पारंपरिक, लोक और जनजातीय जैसी अनगिनत नृत्य शैलियां हैं, लेकिन यहां हम भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला की 7 लोकप्रिय शैलियों की बात करेंगे.
विश्वविख्यात 7 भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियां
भारत में नृत्य और संगीत की बड़ी समृद्ध संस्कृति और परंपरा रही है. हर नृत्य संस्कृति की अपनी कहानी है, जिसमें भरत नाट्यम् को देश की सबसे प्राचीन नृत्य शैली मानी जाती है.
भरतनाट्यमः- भरत नाट्यम की यह शैली भारत में शास्त्रीय नृत्य की अन्य शैलियों की मां मानी जाती है. भरत नाट्यम की उत्पत्ति दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के मंदिरों की नर्तकियों की नृत्य कला से हुई है.
कथकः- कथक शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश राज्य के काशी से हुई है. यह भारत के प्राचीनतम शास्त्रीय नृत्यों के मुख्य सात स्वरूपों में एक है. जानकारों के अनुसार कथक-नृत्य कथा अथवा कथावाचकों से लिया जाता है, जो लोग कथक नृत्य की पूरी कला के दौरान एक कहानियां सुनाते हैं.
कथकलीः- कथकली शास्त्रीय नृत्य प्रशिक्षित कलाकारों द्वारा प्रस्तुत बहुत जल्दी आकर्षित करने वाले शास्त्रीय भारतीय नृत्य-नाटिकाओं में से एक है. कथकली की उत्पत्ति केरल में 17वीं शताब्दी के आसपास हुई बताई जाती है, जिसे आगे चलकर संपूर्ण भारत में खूब लोकप्रियता मिली. इस नृत्य मे सौंदर्य, विभिन्न हावभाव एवं पार्श्व संगीत के साथ पात्रों की विस्तृत वेशभूषा देखने को मिलती है.
कुचिपुडीः- कुचिपुड़ी शास्त्रीय नृत्य शैली संपूर्ण दक्षिण भारत में लोकप्रिय है. शुरू-शुरू में यह नृत्य-शैली पुरुष ब्राह्मणों द्वारा किया जाता था, किंतु बाद में महिलाओं ने भी इस नृत्य पर काफी मेहनत और अभ्यास किया. अगर कहा जाये कि महिलाओं ने इस नृत्य को समृद्ध बनाया, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
मणिपुरीः- मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर से हुई बताई जाती है. मणिपुरी विषय राधा और कृष्ण के रासलीला संबंधों पर आधारित होती है. इसमें आध्यात्मिकता के साथ-साथ शास्त्रीयता का भी दर्शन होता है.
ओडिसीः- ओडिसी देश की सबसे पुरानी नृत्य शैलियों में से एक है, जिसका उद्गम मूलतः उड़ीसा से माना जाता है. यह नृत्य शैली, सिर, छाती और श्रोणि (Pelvis) की स्वतंत्र क्रांति के लिए मशहूर है. ओडिसी-नृत्य मूलतः मंदिरों में किया जाता है.
सतत्रियाः- असम का सतत्रिया नृत्य राज्य की जीवित परंपरा है और भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य परंपराओं में से एक है. सतत्रिया नृत्य शैली की प्रशंसा राज्य के बाहर एवं देश के अन्य क्षेत्रों तथा विदेशों में भी खूब की जाती है.
भारत में शास्त्रीय नृत्य-कला की असंख्य शैलियां प्रचलित हैं. इन 7 सुप्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य के अलावा कई नृत्य भी देश-विदेश में सराहे जाते हैं. जिनमें यक्षगान, छाऊ, रासलीला, तेय्यम, पढ़यनि, श्रीमद् भागवत कथा और गौरिया नृत्य शैलियां इत्यादि हैं.