प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है. यह दिवस विशेष ‘नृत्य’ की महत्ता को समझने और विशेष कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है. गौरतलब है कि जिस तरह नृत्य की तमाम विधाएं हैं, उसी तरह नृत्य के तमाम लाभ हैं, यह मानसिक तनाव दूर करता है, शरीर को चुस्त एवं फुर्तीला बनाता है साथ ही एक कला विशेष का प्रचार प्रसार भी होता है. आइये जानें विश्व नृत्य दिवस के महत्व, इतिहास एवं उद्देश्य के संदर्भ में.. यह भी पढ़ें: Ganga Saptami 2023: कब मनायें गंगा सप्तमी 26 या 27 अप्रैल को? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, पूजा-अनुष्ठान आरती इत्यादि!
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस का महत्व
नृत्य एक अति प्राचीन कला है, जो सार्वभौमिक एवं सभी के लिए सुलभ है. आज की विविध एवं वैश्विक दुनिया में, अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस संबंधों को मजबूत बनाने और संवादों का आदान-प्रदान करने का सशक्त एवं उत्कृष्ट माध्यम है. नृत्य केवल आत्म-अभिव्यक्ति का रचनात्मक रूप ही नहीं है, बल्कि इसमें विविधताएं भी हैं. 29 अप्रैल 1982 को अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान ने नृत्य के रचनात्मक मूल्यों एवं इसके विभिन्न स्वरूपों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दुनिया भर में नृत्य के सभी रूपों को विकसित करने के लिए 29 अप्रैल को विश्व नृत्य दिवस मनाने की घोषणा की थी. आदिकाल में देवी-देवताओं की पूजा करने, कहानी सुनाने आदि के लिए नृत्य को आधार बनाया जाता था. यह मूलतः आत्म-अभिव्यक्ति, मनोरंजन, शिक्षा को आधुनिक नृत्य के रूपों में प्रदर्शन किया जाता है. इसमें भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के विभिन्न रूपों से लेकर बैले, टैंगो, जैज, टैप एवं हिप तक शामिल है.
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस का इतिहास
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस का बहुत रोचक इतिहास है. गौरतलब है कि साल 29 अप्रैल 1727 को फ्रांसीसी जीन जॉर्ज नोवरे का जन्म हुआ था, जो वास्तव में बैले मास्टर थे और बैले डी एक्शन की खोज उन्होंने ही की थी. लोग उन्हें 19वीं शताब्दी के कथा बैले के अग्रदूत मानते थे. साल 1982 में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (ITI) की नृत्य समिति ने जीन जॉर्जेस नोवरे के जन्म दिन 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मना कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की थी. इसके बाद से हर साल 29 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है.
सेलिब्रेशन
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाना तथा विश्व स्तर पर लोगों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना है, ताकि लोगों में नृत्य के प्रति जागरुकता हो. इसके साथ-साथ सरकार द्वारा पूरे विश्व में नृत्य को शिक्षा की सभी विधाओं में एक उचित जगह उपलब्ध कराना है. साल 2005 में नृत्य दिवस को प्राथमिक शिक्षा के रूप में केंद्रित किया गया. इस अवसर पर विद्यालयों में बच्चों द्वारा नृत्य पर निबंध, वाद-विवाद, परिचर्चा, एवं चित्रकला का आयोजन भी किया जाता है.
भारत में नृत्य कला!
मान्यता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं के अनुरोध पर भगवान ब्रह्मा ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से दुनिया भर में नृत्य की उत्पत्ति हुई. इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया. कहा जाता है कि नृत्य वेद की रचना जब पूरी हो गई, तब नृत्य का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया. भारत में नृत्य कला हजारों साल पुरानी है.
कथकली नृत्यः यह 17 वीं शताब्दी में केरल से आया. यह नृत्य में आकर्षक वेशभूषा, संकेतों व थिरकन के माध्यम से एक पूरी कहानी को दर्शाता है.
मोहिनीअट्टमः यह नृत्य कलाकार का ईश्वर के प्रति अपने प्यार व समर्पण को दर्शाता है. इसमें नर्तकी सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद सा़ड़ी एवं भारी-भरकम आभूषण पहनकर नृत्य करती है.
ओडिसीः यह उ़ड़ीसा का अति प्राचीन एवं भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी आराधना व प्रेम दर्शाने वाला नृत्य है. इसमें सिर, छाती व श्रोणि की मुख्य क्रियाएं होती हैं. इस नृत्य की कलाकृतियां उड़ीसा में बने भगवान जगन्नाथ पुरी व कोणार्क मंदिर की पहचान है.
कथकः यह नृत्य काशी उत्तर प्रदेश की है, जिसमें राधा कृष्ण की नटवर शैली को प्रदर्शित किया जाता है. कथक का नाम संस्कृत शब्द कहानी व यथार्थ से उद्धृत है.
भरतनाट्यमः यह शास्त्रीय नृत्य तमिलनाडु का है. पुराने समय में मंदिरों में नृत्यांगनाओं द्वारा इस नृत्य को किया जाता था, जिन्हें देवदासी कहा जाता था. इस पारंपरिक नृत्य को दया, पवित्रता व कोमलता के लिए जाना जाता है.
कुचिपुड़ीः आंध्रप्रदेश के इस नृत्य को भगवान मेला नटकम नाम से भी जाना जाता है. इस नृत्य में गीत एवं चरित्र की मनोदशा नृत्य-नाटिका के रूप में शुरू होती है. इसमें खासतौर से कर्नाटक संगीत का उपयोग किया जाता है.