Holi 2022: होली की अजीबोगरीब परंपराएं! कहीं दामाद को गधे पर बिठाते हैं, कहीं होता स्वयंवर, कहीं खूनी होली! तो कहीं बिच्छुओं के साथ खेलते हैं होली!
होलिका दहन 2022 (Photo Credits: File Image)

भारत विभिन्न जाति, धर्म और भाषाओं वाला देश है. इसकी छटा यहां के पर्वों में स्पष्ट झलकती है. हर पर्व पर विभिन्न संस्कृतियों एवं परंपराओं के दर्शन होते हैं. चूंकि इस समय सर्वत्र होली का माहौल है, इसलिए हम बात करेंगे, भारत के सुदूर क्षेत्रों में होली की अजीबो-गरीब परंपराओं की, जिसे देख जान कोई भी हैरान रह जायेगा.

दामादों को गधे पर बिठाकर घुमाते हैं!

बात करेंगे महाराष्ट्र के बीड़ जिले की. यहां होली के दिन नये-नवेले दामाद को रंगों से सराबोर कर फूलों से सजे गधे पर बिठाकर पूरे मुहल्ले में घुमाया जाता है. जब वह वापस आता है तो उसकी आरती उतारकर उसे मिठाई खिलाकर नये वस्त्र, घड़ी और सोने की अंगूठी आदि भेंट देते हैं. कहते हैं कि होली से 10 दिन पूर्व से ही दामादों की लिस्ट बननी शुरु हो जाती है. दामाद होली के दिन भाग ना जायें, उन पर कड़ी निगरानी रखी जाती है. किसी वर्ष दामाद नहीं मिलते हैं तो मुहल्ले के कुछ युवाओं को दामाद बनाकर उसके साथ होली की यह परंपरा निभाई जाती है.

कंजड़ों की बस्ती में शाही होली!

मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) के खजूरी गांव के उपरौध क्षेत्र में कंजड़ों की बस्ती में एक अलग ही होली की परंपरा निभाई जाती है. वस्तुतः यहां का मुख्य कारोबार महुवा से शराब बनाना है. जिस दिन पूरे देश में होली खेली जाती है, इस बस्ती के लोग महुवे के कारोबार में व्यस्त रहते हैं. यहां अगले दिन होली शुरु होती है. सुबह-सवेरे से ही बच्चे, युवक युवतियां एवं वृद्धों के बीच नाच-गाने के साथ रंगों-अबीर गुलाल की होली शुरु हो जाती है. ये सभी बड़े शाही अंदाज में होली खेलते हैं. शराब के नशे में ये राजघरानों जैसा व्यवहार करते हैं. सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि सभी नशे में होने के बावजूद अपनी जाति के बाहर वालों पर रंग नहीं फेंकते, क्योंकि ये इसे अपना जातीय पर्व मानते हैं. यह भी पढ़ें : Holika Dahan 2022 Messages: हैप्पी होलिका दहन! प्रियजनों संग शेयर करें ये हिंदी Shayari, WhatsApp Wishes, Facebook Greetings और Photo SMS

बिच्छुओं के साथ खेलते हैं होली!

इटावा (उत्तर प्रदेश) के ऊसराहार क्षेत्र में बिच्छुओं के साथ होली खेलने की पंरपरा है. कहते हैं कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अगले दिन ऊसराहार क्षेत्र के सोंथना गांव में आदिवासी जनजाति के लोग गांव के प्राचीन मंदिर के पास एकत्र होकर ढोल-ताशे की थाप पर रंग और अबीर-गुलाल की होली खेलते हैं. कहते हैं कि जैसे ही होली शुरु होती है, मंदिर के अवशेषों से सैकड़ों की संख्या में बिच्छु निकलते हैं. गांव के बच्चों से लेकर युवा तक इन बिच्छुओं को बड़े प्यार से हाथों में लेकर नाचते-गाते होली खेलते हैं. हैरानी की बात यह है कि ये जहरीले बिच्छू किसी को भी डंक नहीं मारते, और होली समाप्त होने के साथ ही ये वापस अवशेषों के पीछे चले जाते हैं.

होली पर चुनते हैं अपना जीवन-साथी!

मध्य प्रदेश के भील आदिवासियों में हैरान करवाली होली की परंपरा निभाई जाती है. यहां होली से एक दिन पूर्व एक हाट (स्थानीय और अस्थाई बाजार) लगता है. लोग अपने दैनिक जीवन की वस्तुएं यहां खरीदते हैं. इसके साथ-साथ युवा अपने जीवन साथी की तलाश में यहां मांदल नामक वाद्य यंत्र बजाते एवं नृत्य करते पूरे हाट में घूमते हैं. यहीं युवतियां श्रृंगार कर अच्छे वस्त्र पहनकर आती हैं और खरीदारी करती हैं. हाट में जो भी युवती युवक को पसंद आती है, ये उसके गालों पर लाल गुलाल लगाते हैं, अगर लड़की ने भी प्रत्योत्तर में गुलाल लगा दिया तो इसे दोनों की स्वीकृति समझी जाती है. इसके बाद दोनों की शादी हो जाती है. अगर युवक के गुलाल लगाने पर युवती उसे गुलाल नहीं लगाती तो युवक स्वेच्छा से अन्य युवती की तलाश करता है.

खूनी होली!

बांसवाड़ा (राजस्थान) के डूंगरपुर के आदिवासियों में भी होली की अजीबोगरीब परंपरा की खूब चर्चा होती है. होली की इस अत्यंत प्राचीन परंपरा के अनुसार आदिवासी होलिका-दहन के अगले दिन रंग-गुलाल की होली खेलते हुए दो टोली में बंटे हुए लोग होलिका-दहन के जलते अंगारों पर चलते हैं और दूसरी टोली के लोगों पर पत्थर बरसाते हैं. इसे खूनी होली के नाम से भी जाना जाता है. इस खूनी होली के बीच यह मान्यता है कि पत्थरों से चोट लगने के बाद इंसान के भीतर का गंदा खून निकल जाता है और फिर वह पूरे साल स्वस्थ एवं खुशहाल रहता है.