World Autism Awareness Day 2019: भारत में करीब 1 करोड़ बच्चे हैं ऑटिज्म का शिकार, जानिए इस बीमारी के प्रमुख लक्षण

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 2007 में 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था. आत्मकेंद्रित होने की समस्या को ऑटिज्म कहा जाता है और इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए यूएन के सदस्य राज्यों को प्रोत्साहित करते हैं.

विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2019 (Photo Credits: Pixabay)

World Autism Awareness Day 2019: हर साल 2 अप्रैल को दुनिया भर में विश्व ऑटिज्म अवेयरनेस डे (World Autism Awareness Day)  मनाया जाता है. ऑटिज्म (Autism) की समस्या के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने के मकसद से इसे हर साल अलग-अलग थीम के आधार पर मनाया जाता है. साल 2019 की थीम है 'Assistive Technologies, Active Participation' यानी तकनीक की मदद से ऑटिज्म प्रभावित लोगों की सक्रियता को बढ़ावा देना. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 2007 में 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था. दरअसल, आत्मकेंद्रित होने की समस्या को ऑटिज्म कहा जाता है और इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए यूएन के सदस्य राज्यों को प्रोत्साहित करते हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार, आज भी भारत में तकरीबन 1 करोड़ बच्चे ऑटिज्म की समस्या से पीड़ित हैं. दरअसल, हर बच्चे के विकास की एक रफ्तार होती है, इसमें कुछ समय आगे-पीछे होना आम बात है, लेकिन अगर बच्चे के विकास की रफ्तार ज्यादा धीमी गति से होने लगे तो इसका मतलब यह हो सकता है कि बच्चे में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की समस्या है. विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के इस खास मौके पर चलिए जानते हैं इस बीमारी के लक्षण और इससे बचने के उपाय.

क्या है ऑटिज्म ?

यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके लक्षण अधिकांश बच्चों में जन्म के बाद से लेकर तीन साल की उम्र में दिखने लगते हैं. इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में वर्बल या नॉन वर्बल कम्युनिकेशन, सोशल इंटरेक्शन, इमैजिनेशन जैसे तीन तरह के विकास बेहद धीमी गति से होने लगते हैं. यह भी पढ़ें: प्रेगनेंसी के दौरान भूलकर भी न करें ये काम, हो सकता है बड़ा खतरा

प्रमुख कारण-

विशेषज्ञों के मुताबिक, किसी दोषपूर्ण जीन की वजह से बच्चे को आत्मकेंद्रित यानी ऑटिज्म की बीमारी हो सकती है. इसके अलावा रासायनिक असंतुलन, वायरस या रसायन, जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी होने के कारण भी यह बीमारी बच्चे को हो सकती है. गर्भवती महिला में रूबेला यानी जर्मन खसरा भी इस बीमारी का कारण बन सकता है. कई शोधों में यह भी कहा गया है कि बच्चे के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली कोई भी चीज ऑटिज्म का कारण बन सकती है. प्रेग्नेंसी के दौरान थायरॉइड हार्मोन, समय से पहले डिलीवरी, डिलीवरी के दौरान बच्चे को ऑक्सीजन न मिल पाना और गर्भवास्था में किसी बीमारी या पोषक तत्वों की कमी की वजह से भी बच्चे को यह बीमारी हो सकती है.

सामान्य लक्षण-

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का विकास धीमी गति से होता है. इससे प्रभावित बच्चे अक्सर अपना नाम पुकारे जाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. इस बीमारी से पीड़ित बच्चों में कुछ इस तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं.

1- धीमी गति से शारीरिक विकास होना

ऑटिज्म का सबसे बड़ा लक्षण है बच्चों में बेहद धीमी गति से विकास होना. आमतौर पर 6 महीने के बच्चे मुस्कुराना, उंगली पकड़ना और आवाज पर प्रतिक्रिया देना सीख लेते हैं, लेकिन जिन बच्चों में यह बीमारी होती है वो ऐसा नहीं कर पाते हैं या फिर उन्हें इसमें ज्यादा समय लगता है.

2- अपना नाम पहचानने में कठिनाई

जन्म के कुछ महीने बाद नाम से पुकारे जाने पर बच्चे प्रतिक्रिया देने लगते हैं, लेकिन ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता है. ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों को अपना नाम पहचानने में कठिनाई महसूस होती है और ऐसे बच्चे नाम से पुकारे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं.

3- एक जैसी दिनचर्या का पालन करना

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे एक जैसी ही दिनचर्या का पालन करते हैं. अपनी दिनचर्या में किसी तरह का बदलाव या उतार-चढ़ाव उन्हें पसंद नहीं आता है. उनके तय दिनचर्या में अगर कोई बदलाव आ जाए तो उन्हें बेहद दुख होता है.

4- बोलने में दिक्कत महसूस होना

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को बोलने में दिक्कत महसूस होती है. ऐसे बच्चे आवाजें निकाल पाने में असमर्थ होते हैं और बुदबुदाने में भी उन्हें सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा समय लगता है. यह भी पढ़ें: तैमूर जैसा क्यूट बच्चा चाहिए तो इन बातों का रखें ख्याल

5- आत्मविश्वास की कमी

ऑटिज्म से पीड़ित कई बच्चे किसी से आंख नहीं मिला पाते हैं. ऐसे बच्चे किसी से आंख मिलाने में दिक्कत महसूस करते हैं और उनमें आत्मविश्वास की कमी झलकती है.

बचाव के उपाय-

गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान नियमित तौर पर मेडिकल चेकअप कराना चाहिए और दवाएं लेनी चाहिए. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपने खान-पान और लाइफस्टाइल पर ध्यान देना चाहिए. इस दौरान सिगरेट और शराब जैसी नशीली चीजों से परहेज करना चाहिए. जन्म के बाद 6 महीने से एक साल के भीतर ही इस बीमारी का पता लग जाता है, इसलिए अपने बच्चे के व्यवहार और कुछ लक्षणों पर गौर करें. अगर बच्चे में इस तरह के कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो फौरन डॉक्टर से उसकी जांच कराएं.

Share Now

\