स्वस्थ भारत यात्रा-2 भागलपुर से गाजियाबाद पहुंची, 16,000 किलोमीटर का तय किया सफर
बिहार के भागलपुर से 24 मार्च को शुरू हुई स्वस्थ भारत यात्रा-2 (Healthy India Travel-2) के चौथे चरण का समापन आठ अप्रैल को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद (Ghaziabad) स्थित मेवाड़ इंस्टीट्यूट में होगा...
गाजियाबाद: बिहार के भागलपुर से 24 मार्च को शुरू हुई स्वस्थ भारत यात्रा-2 (Healthy India Travel-2) के चौथे चरण का समापन आठ अप्रैल को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद (Ghaziabad) स्थित मेवाड़ इंस्टीट्यूट में होगा. इस दौरान यात्री दल भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर, छपरा, सीवान, गोपालगंज, भितिहरवा आश्रम, गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ, शाहजहांपुर, मुरादाबाद में कार्यक्रम करने के बाद गाजियाबाद पहुंचे हैं. इस चरण में 15 दिनों में कुल 31 कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. विगत 70 दिनों में 21 राज्यों से होकर 16,000 किलोमीटर की यात्रा तय कर स्वस्थ भारत यात्रा में शामिल लोग यहां पहुंचे हैं.
इस दौरान 142 कार्यक्रमों के आयोजन के माध्यम से यात्रियों ने एक लाख से ज्यादा लोगों से स्वास्थ्य संबंधी बातचीत की. जनऔषधि दिवस के अवसर पर सात मार्च, 2019 से कोकराझाड़ (असम) से शुरू स्वस्थ भारत यात्रा-2 का तीसरा चरण सिलीगुड़ी में संपन्न हुआ था, जबकि चौथा चरण विश्व टीवी दिवस के अवसर पर 24 मार्च को बिहार के भागलपुर से शुरू हुआ.
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तीसरे चरण में स्वस्थ भारत यात्रियों ने असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर एवं नागालैंड का दौरा किया और 3,500 किलोमीटर की अपनी यात्रा में यहां पर आयोजित 29 कार्यक्रमों के माध्यम से पूर्वोत्तर के लोगों को जनऔषधि, पोषण और आयुष्मान के बारे में जागरूक किया. तीसरे चरण में पांच राज्यों में जिन प्रमुख शहरों में यात्रा पहुंची उनमें कोकराझार, गुवाहाटी, शिलांग, करीमगंज, बदरपुर (असम), अगरतला, पानीसागर, शिलचर, इम्फाल, कोहिमा, दीमापुर और तेजपुर शामिल हैं.
मीडिया से बातचीत में स्वस्थ भारत के न्यास के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने पूर्वोत्तर के अनुभव का साझा करते हुए कहा कि यहां के लोग बहुत ही मेहनती, ईमानदार एवं परोपकारी हैं. उन्होंने कहा कि महिलाएं पूर्वोत्तर की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं. पूर्वोत्तर में खासतौर से वनवासी इलाकों में स्वास्थ्य को लेकर सघन जागरूकता अभियान चलाए जाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ यहां के लोग जानकारी के अभाव में नहीं उठा पाते हैं. लिहाजा, उन्हें जागरूक करने की जरूरत है.