नई दिल्ली, 28 अक्टूबर: कोरोना महामारी (Coronavirus) का प्रकोप सबसे ज्यादा डायबिटीज, कैंसर, टीबी, बीपी, हार्ट रोग से ग्रसित मरीजों को पर हो रहा है. गर्मी के बाद बदलते मौसम और सर्दी में अस्थमा और सांस के मरीजों प्रभावित होते हैं. ऐसे में उन्हें ज्यादा सतर्क रहना है. लेकिन कोरोना से बचाव के नियमों के पालन के साथ ही अस्थमा (Asthma) से राहत के लिये ऊंटनी का दूध काफी फायदेमंद साबित हो रहा है. सिर्फ अस्थमा ही नहीं वैज्ञानिकों ने पाया कि ऊंटनी का दूध डायबिटीज (Diabetes) और अति मंदबुद्धि बच्चों को भी ठीक करने में यह मददगार है. इसका अनुसंधान भी वैज्ञानिक कर चुके हैं.
कई रोगों से निजात दिलाता है ऊंटनी का दूध ऊंटनी का दूध कई रोगों की गंभारता को कम करने में भी मददगार होता है, जिनमें कैंसर, किडनी, आटिज्म के लक्षणों को कम करने, माइक्रोबियल संक्रमण से आराम दिलाए, आंत से जुड़ी समस्या से आराम, एलर्जी से आराम दिलाए, ऑटोइम्यून रोगों से आराम पहुंचाता है. ऊंटनी के दूध में पाये जाने वाले पोषक तत्व जिंक, मैंगनीज, मैग्नीशियम, आयरन, सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम के अलावा कई विटामिन जिनमें -ए, बी, सी, डी और विटामिन-ई पाये जाते हैं.
लॉकडाउन में चर्चा में आया था ऊंटनी का दूध कोरोना की वजह से लॉकडाउन में ऊंटनी का दूध उस वक्त भी चर्चा में आया जब एक ऑटिज्म और खाने की दूसरी एलर्जी से जूझ रहे साढे तीन साल के बच्चे के लिये उसकी मां ने सोशल मीडिया पर ऊंटनी के दूध के लिये गुहार लगाई. जिसके बाद उड़िसा के एक आईपीएस अधिकारी अरुण बोथरा ने महिला से उन्होंने संपर्क कर मुंबई में रहने वाली महिला तक दूध पहुंचवाया. ऐसा नहीं है कि देश में ऊंटनी के दूध की कमी है बल्कि इसके फायदे से अनजान और ऊंटनी के दूध का न तो कोई सेंटर है और ना ही सरकार ने कोई प्रोत्साहन स्वरूप प्लांट लगाया.
क्या कहते हैं राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान संस्थान के निदेशक इस बारे में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान संस्थान (एनआरसीसी) के पूर्व निदेशक डॉ. एन.वी.पाटिल सरकार का इस ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं. उनका कहना है कि वर्तमान परिदृश्य में ऊंट जिस दौर से गुजर रहा है उससे लगता है कि आने वाली सदी में ऊंट चिडिय़ाघर में ही देखे जाएंगे. कागजों में बहुत सारी पॉलिसी बनती हैं लेकिन धरातल पर काम नहीं दिख रहा. एक जानी-मानी दूध की कंपनी ने ऊंटनी के दूध से चॉकलेट बनाई और प्रधानमंत्री से उसका शुभारंभ कराया लेकिन उसके बाद काम बंद हो गया.
राजस्थान में राज्य पशु घोषित किया गया लेकिन उसके दूध के मार्केट को लेकर सरकार की ओर से अभी तक कोई कदम दिखाई नहीं दिया. उन्होंने बताया कि अकेले राजस्थान में ऊंटनी का दूध करीब चार लाख लीटर उत्पादन होता है लेकिन इसकी वैल्यू अभी तक न तो सरकार ने समझी और ना ही किसानों ने.
प्रदेश का एकमात्र जैसलमेर जिला है जहां एक संस्था प्रतिदिन 200 से 300 लीटर दूध बेचती है. यहां से कुछ दूध बाहर की कंपनियां भी ले जाती हैं लेकिन शेष 32 जिलों में ऊंटनी के दूध पर कहीं काम नहीं हो रहा है. प्रदेश में अब ऊंटों की संख्या करीब ढाई लाख बची है जिसमें से 50 प्रतिशत ऊंटनी है. यही वजह है कि इतने बड़े स्तर पर ऊंटनी के दूध का कोई उपयोग नहीं हो पा रहा.