इस्लाम धर्म के मुताबिक मुसलमानों के आखिरी पैगंबर और रसूल अल्लाह हजरत मोहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद हजरत मोहम्मद अली का जन्म 13 रजब (इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार सातवें महीने) 600 ईस्वी को हुआ. पैगंबर मोहम्मद के बाद सुन्नी समुदाय के मुसलमान हजरत अली को चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया समुदाय उन्हें पहला इमाम बताते हैं, हालांकि उनके इंसाफ की मिसाल दोनों ही समुदाय के लोग बड़ी शिद्दत से देते हैं. हजरत अली की शहादत 21 रमजान को हुई थी. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 1 अप्रैल 2024, सोमवार को हजरत अली का शहादत दिवस मनाया जाएगा. आइये बात करते हैं, कि हजरत अली की शहादत कब और कैसे हुई, तथा क्यों लोग उनके इंसाफ की मिसाल देते हैं.
हजरत अली का जन्म कब और कहां हुआ था?
हजरत अली जिनका असली नाम अली इब्ने अबी तालिब था, का जन्म काबा में हुआ था. इस संदर्भ में बताया जाता है कि हजरत अली जब मां फातिमा बिन्ते असद के गर्भ में थे, तो उनकी मां फातिमा और पिता अबू तालिब काबे के पास जा रहे थे, अचानक काबे की दीवार फट गई, मां काबे के अंदर गई और वहीं पर उन्होंने हजरत अली को जन्म दिया. माना जाता है कि काबे में पैदा होने वाले हजरत अली इकलौते मुसलमान थे. कहा जाता है कि उन्होंने वैज्ञानिक शिक्षा को बड़े सहज और रोचक तरीके से आम आदमी तक पहुंचाया. यह भी पढ़ें : Happy Easter 2024: आज भारत समेत पूरी दुनिया में मनाया जा रहा ईस्टर संडे, जानें इसका महत्व और कैसे मनाया जाता है यह पर्व
चार साल की हुकुमत
हजरत अली ने 656 से 661 तक राशिद खिलाफत के चौथे खलीफा के रूप में शासन किया. उनकी शादी पैगंबर मोहम्मद की बेटी हजरत फातिमा ज़हरा से हुई थी. उनके पांच बच्चे हजरत हसन, हजरत हुसैन, हजरत जेनब, हजरत कुलसुम और हजरत मोहसिन थे. हजरत अली बहादुर योद्धा थे. अपने चार साल के शासनकाल में हजरत अली ने इस्लाम धर्म की रक्षार्थ कई लड़ाइयां लड़ीं. कहा जाता है कि एक दिन हजरत अली कूफा (इराक) की एक मस्जिद में पहली नमाज अदा करके उठ रहे थे, तभी अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम नामक क्रूर व्यक्ति ने जहर में डूबी तलवार से उनके सिर पर हमला कर उन्हें मौत की घाट उतार दिया. वह दिन था 21 रमजान 40 हिजरी का, इसलिए 21 रमजान के दिन हजरत अली का शहादत दिवस मनाया जाता है. कहा जाता है कि मृत्यु से एक दिन पहले ही उन्होंने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी करते हुए कहा था, कि उनके दिन पूरे होने वाले हैं.
हजरत अलीः जिनके इंसाफ की मिसालें आज भी दी जाती है
हजरत अली बहादुर होने के साथ बड़े ही शांतिप्रिय व्यक्ति थे. अपने शासनकाल में वह गरीबों और विधवाओं का ना केवल खास ख्याल रखते थे, बल्कि उनकी हर संभव मदद भी करते थे. वे इतने दयालु थे कि उन्होंने अपने गुलामों को भी बराबरी का दर्जा दे रखा था. उन्होंने अपने सैनिकों को भी आदेश दे रखा था, कि दुश्मन पर अमानवीय कृत्य करने से बचें. वह सभी को अमन एवं भाईचारे का संदेश देते थे.