प्रत्येक माह की त्रयोदशी के दिन प्रदोष का व्रत रखा जाता है. चूंकि इस बार यह व्रत गुरुवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे गुरू प्रदोष कहते है. हिंदू धर्म शास्त्रों में गुरु प्रदोष का विशेष महत्व वर्णित है. इस दिन भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा एवं व्रत का विधान है. ऐसा करने से जाने-अनजाने हुए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है. बहुत से लोग इस दिन संतान प्राप्ति की भी मनोकामना करते हैं. इस बार यह प्रदोष 19 जनवरी को पड़ रहा है. आइये जानें इस व्रत का महत्व, मुहूर्त एवं पूजा विधि के बारे में.
गुरू प्रदोष व्रत का महात्म्य
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार गुरु प्रदोष का व्रत शत्रुओं पर विजय दिलाता है. यह जातक के जीवन में सुख, सौभाग्य एवं समृद्धि दिलाता है. मान्यता है कि गुरू प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर तांडव करते हैं, इसलिए भगवान शिव को संगीत का जनक भी माना जाता है. कहते हैं कि जब शिव जी तांडव करते हैं, तब सारे देवी-देवता उनकी स्तुति-गान करते हैं. यही वजह है कि प्रदोष काल में महादेव की पूजा करने से भगवान शिव की कृपा से जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
गुरु प्रदोष तिथि एवं शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी आरंभः 01.18 PM (19 जनवरी 2023, गुरुवार) से
त्रयोदशी समाप्तः सुबह 05.49 AM (20 जनवरी 2023, शुक्रवार) से
चूंकि प्रदोष व्रत में पूजा-अनुष्ठान प्रदोष काल (सायंकाल) में की जाती है, इसलिए यह व्रत एवं पूजा 19 जनवरी को रखा जायेगा.
पूजा का शुभ मुहूर्तः 05.49 PM से 08.30 PM (19 जनवरी 2023) तक
गुरु प्रदोष पर ऐसे करें व्रत एवं पूजा
गुरु प्रदोष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात शिवजी का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
'अहमद्य महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये'
पूरे दिन व्रत रखते हुए लाल रंग की साड़ी पहनकर प्रदोष काल में भगवान शिव एवं पार्वती के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. इसके पश्चात षोडशोपचार विधि से पूजा करते हुए शिवलिंग पर विल्व-पत्र, सफेद चंदन, गंगाजल, दूध, फल, फूल एवं खोये की मिठाई अर्पित करें. इसके बाद शिव जी की आरती उतारें. इसके पश्चात शिव चालीसा का पाठ करें और गुरु प्रदोष व्रत की कथा सुनें. शिवजी की पूजा अराधना करने के बाद अन्न-जल ग्रहण करें.
गुरु प्रदोष व्रत कथा
एक बार वृत्तासुर की सेना ने देवताओं पर आक्रमण किया, देवों ने असुरों को हरा दिया. इससे वृत्तासुर क्रोधित हो उठा, उसने विकराल रूप धारण कर देवों पर आक्रमण कर दिया. उसे देख देवता भयभीत हो गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे. बृहस्पति ने उन्हें बताया कि कैसे वृत्तासुर ने गंधमादन पर्वत पर कठोर तप करके शिवजी को प्रसन्न कर लिया. पूर्व जन्म में वह राजा चित्ररथ था. उसने कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव और माता पार्वती का उपहास उड़ाया. पार्वतीजी ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया, जिससे चित्ररथ राक्षस योनि में वृत्तासुर के रूप में जन्म लिया. गुरु बृहस्पति ने इंद्र से कहा कि वृत्तासुर अपने बाल्यकाल से शिवजी का परम भक्त रहा है. सभी देवों को गुरु प्रदोष का व्रत कर, भोलेनाथ को प्रसन्न करना होगा. देव गुरु के अनुसार इंद्र देव ने गुरु प्रदोष व्रत रखा, तब शिवजी के आशीर्वाद से इंद्र ने वृत्तासुर को परास्त किया, और देवलोक में शांति की स्थापना हुई. इसके बाद से ही गुरु प्रदोष व्रत की परंपरा चली आ रही है.