हिंदी कैलेंडर के अनुसार सिखों के प्रथम गुरु नानकदेवजी का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था, यह पर्व भी दीपावली की तरह बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है, इसीलिए इस दिन को ‘गुरु पर्व’, ‘प्रकाश पर्व’ अथवा ‘गुरु पूरब’ के नाम से भी जाना जाता है, सिख समुदाय के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है. गुरु नानकदेवजी सिख धर्म के जन्मदाता एवं प्रथम गुरु थे. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष गुरु नानकदेवजी का जन्म 19 नवंबर दिन शुक्रवार 2021 को मनाया जायेगा. आइए जानें उनके ‘मुंशी’ से ‘महात्मा’ बनने की रोचक मगर प्रेरक बातें.
जन्म
नानक देवजी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब स्थित रायभोई की तलवंडी (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. यह जगह आज भी ननकाना नाम से लोकप्रिय है. नानकदेवजी का मन बालपन से ही आध्यात्म की ओर ज्यादा लगता था, जिस काल में नानकदेवजी का जन्म हुआ था, उस समय हर ओर अंधविश्वास एवं आडम्बर का बोलबाला था, इसलिए आध्यात्मिक होने के बावजूद नानकदेव जी अंधविश्वास एवं आडंबर के सख्त खिलाफ थे, और अपने हर उपदेश में लोगों को इससे दूर रहकर इंसानियत का पाठ पढ़ाते थे.
अंधविश्वास और पाखंड के विरोधी!
गुरु नानकजी ने हिंदू परिवार में जन्म लिया था, मगर वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे, लेकिन धर्म के नाम पर पाखंड के वे सख्त खिलाफ थे. कहते हैं कि जब वे 11 साल के थे, उन्होंने जनेऊ पहनने से स्पष्ट इंकार करते हुए कहा था कि, लोगों की आधारहीन परंपराओं को मानने की बजाय हमें अपने ज्ञान और गुणों पर ध्यान देना चाहिए.
विवाह के बावजूद रास नहीं आया गृहस्थ जीवन!
सूत्रों के अनुसार साल 1496 में नानकदेव जी की शादी हुई. कुछ समय बाद उनकी दो संतानें पैदा हुईं, लेकिन पिता बनने के बावजूद उनका मन कभी भी गृहस्थ जीवन में नहीं रमा, लेकिन उऩ्होंने कभी भी संन्यास अथवा घर त्यागने की पहल नहीं की. उनका कहना था कि अध्यात्म के लिए संन्यासी बनने या कर्तव्य एवं दायित्वों को छोड़ने की कोई जरूरत नहीं.
साधुओं एवं मौलवियों पर सवाल?
गुरु नानकजी ने 30 सालों तक भारत, तिब्बत और अन्य देशों की तमाम धार्मिक यात्राएं की. इस दौरान उन्होंने सारे धर्मों का ना केवल अध्ययन किया, बल्कि भ्रमित करनेवाली बातों के खिलाफ लोगों को जागरुक भी किया. उन्होंने साधुओं और मौलवियों की गलत नीतियों एवं आडंबर पर खुलकर सवाल उठाये. गुरु नानकदेव का मानना था कि किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना अथवा रस्म-रिवाज़ निभाने के लिए ना पुजारी की जरूरत है ना ही मौलवी की. उनके अनुसार ईश्वर एक है. गुरु नानकदेव जी वस्तुतः लोगों की नकारात्मक सोच में बदलाव लाना चाहते थे. अपने हर उपदेश में वे यही कहते थे कि लोभ, लालच एवं पाखंड नकारात्मक बाते हैं. बेहतर होगा इंसान अपने भीतर दूसरों के प्रति प्रेम, एकता, एवं भाई-चारा की भावना व्यक्त करे, यही सच्चा धर्म होता है. यह भी पढ़ें : Tulsi Vivah 2021 HD Images: तुलसी विवाह के इन शानदार Photo SMS, WhatsApp Wishes, GIF Greetings, Wallpapers को भेजकर दें सबको हार्दिक बधाई
मुंशी से महात्मा तक का सफर
गुरु नानकदेव जी ने युवावस्था में कुछ समय तक मुंशी का कार्य भी किया, लेकिन उनका उद्देश्य आय अर्जित करना कभी नहीं था. बहुत जल्दी उनका मन इस काम से भी उचाट हो गया. इसके बाद से ही उन्होंने अपना अधिकांश समय आध्यात्मिक कार्यों में लगाना शुरू किया. उनका मानना था कि धर्म एवं आध्यात्म की राह सिर्फ चिंतन-मनन से निकलती है.
निधन
जीवन के अंतिम दिनों में गुरु नानकदेव जी की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी. इनके विचारों से लोगों में जागरुकता एवं परिवर्तन भी देखा गया. मानवता एवं भाईचारा के साथ-साथ उन्होंने परिवार को भी प्रमुखता दिया. उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है. यहीं पर उन्होंने एक धर्मशाला बनवाया. आश्विन मास के कृष्णपक्ष की दशमी 1597 (22 सितम्बर 1539) के दिन इसी स्थान पर उन्होंने अंतिम सांस ली.