गोवत्स द्वादशी 2018: इस दिन गौ सेवा करने से दूर हो जाता है अकाल मृत्यु का भय, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

इस साल गोवत्स द्वादशी का पर्व धनतेरस से एक दिन पहले यानी 4 नवंबर, 2018 को मनाया जाएगा. इस दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं. कहा जाता है कि इस दिन गौ सेवा करने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय सदा के लिए टल जाता है.

गोवत्स द्वादशी 2018 (File Image)

गोवत्स द्वादशी 2018:  कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सुबह उठकर अपने नित्यकर्म से निवृत्त होकर गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है व उनकी सेवा की जाती है. इस साल गोवत् पर्व धनतेरस से एक दिन पहले यानी 4 नवंबर, 2018 को मनाया जाएगा. इस दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं. कहा जाता है कि इस दिन गौ सेवा करने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय सदा के लिए टल जाता है. हालांकि इससे पहले भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को भी यह पर्व मनाया जाता है, जिसे वत्स द्वादशी या बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है.

मान्यता है कि इस दिन अगर घर के आसपास गाय और बछड़ा न मिले तो गिली मिट्टी से गाय और बछड़े की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजन करना चाहिए. बता दें कि इस व्रत में गाय के दूध से बनी चीजों का उपयोग करना वर्जित माना जाता है.

भगवान श्रीकृष्ण को अति प्रिय है गौ माता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गौ माता भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय हैं. कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था. गौ माता पृथ्वी का प्रतीक हैं और उनमें सभी देवताओं के तत्व निहित होते हैं, इसलिए कहा जाता है कि गौ में समस्त देवी-देवता वास करते हैं.

धार्मिक पुराणों में भी गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कही गई है. मान्यता है कि गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता. इसलिए इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्यक्ति को पृथ्वी पर ही शयन कना चाहिए. इस दिन शुद्ध मन से भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन करना चाहिए. यह भी पढ़ें: Diwali 2018: इस दिवाली बन रहा है बहुत ही शुभ संयोग, लक्ष्मी पूजन के दौरान बरतेंगे ये सावधानियां तो होगा धन लाभ

पूजन का शुभ मुहूर्त 

शुभ मुहूर्त- शाम 06.00 से रात 08.32 बजे तक.

व्रत और पूजन विधि 

गोवत्स द्वादशी का महत्व 

गोवत्स द्वादशी को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा उत्तानपाद ने पृथ्वी पर इस व्रत को आरंभ किया और उनकी पत्नी सुनीति ने इस व्रत को किया. जिसके प्रभाव से उन्हें बालक ध्रुव की प्राप्ति हुई. तब से लेकर यह मान्यता चली आ रही है कि इस व्रत को विधि पूर्वक करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है.

मान्यता है कि दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है. इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी‍ और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है, इस दिन गाय के दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है.

हमारे शास्त्रों में इसका माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि गोवत्स द्वादशी के दिन जिस घर की महिलाएं गौ माता का पूजन-अर्चन करती हैं. उसे रोटी और हरा चारा खिलाकर तृप्त करती हैं, उस घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और उस परिवार में कभी भ‍ी अकाल मृत्यु नहीं होती है.

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